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संदेश

कतका झन देखे हें-

दरत हवय छाती मा कोदो

दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । हमरे घर मा संगे रहिके, मुॅह ले फोरय लाई ।। कोड़त हावे घर के भिथिया, हाथ धरे ओ साबर । ऐही घर मा पले बढ़े हे, बैरी होगे काबर ।। बात परोसी के माने हे, घर मा कोड़े खाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । हम जेला तो आमा कहिथन, ओ हर कहिथे अमली । घात करे बर बइठे रहिथे, ओढ़े ओ हर कमली । जुझय नही ओ बैरी मेरा, घर मा करे लड़ाई  । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । अपने घर ला फोर खड़े हे, तभो कहय मैं बेटा । मुॅह मा ओखर आगी लागे, घर हा फसे चपेटा । करे हवय ये बारे आगी, बैरी के अगुवाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । बेटा ओ तो ओखर  आवय, ये घर जेन बसाये । काखर फांदा फस के वो हर, आगी इहां लगाये । दाई के अचरा छोड़े अब, माने ना वो दाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई । दाई के आॅखी ले झरथे, झरर झरर अब पानी । सहत हवे अंतस मा पीरा , सुन सुन जहर जुबानी । देख सकव ता देखव बेटा, दाई तोरे अकुलाई । दरत हवय छाती मा कोदो,  होके हमरे भाई ।

झूमरत गावय फाग

परसा फूले खार मा, आमा मउरे बाग । देखत झूमय कोयली, छेड़े बसंत राग ।। महुॅवा माते राग मा, नाचय सरसो फूल । मनखे मनखे गांव मा, झूमरत गावय फाग ।।

चाह करे मा राह हे

हाथ गोड़ सब मारथे, रखे जिये के चाह । चाह करे मा राह हे, ले नदिया के थाह ।। थाह हार के हे कहां, जब मन जावय हार । हार हारथे चाह ले, चाहत मेटय दाह ।।

आवय हमला लाज

मनखे मनखे जोर लव, अपने दिल के साज । साज बाज अइसे गढ़व, होवय सबके काज ।। काज एक जुरमिल करव, गढ़व देश के मान । मान जाय मा देश के, आवय हमला लाज ।

नाचत गात मनावत होरी (सवैया)

नाचत गात मनावत होरी (सवैया) ढोलक मादर झांझ बजावत हाथ लमावत गावत फागे। मोहन ओ छलिया नट नागर रास रचावव रंग जमाके । आवव आवव भक्त बुलावत। गावत फाग उडावत रोरी । फागुन मा रसिया रस लावत नाचत गात मनावत होरी ।। हे सकलावत आवत जावय छांट निमार बनावत टोली । भांग धरे छलकावत जावत बांटत बांटत ओ हमजोली। रंगत संगत के दिखथे जब रंग लगाय करे मुॅह-जोरी छोट बड़े सब भेद भुलावत नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ धरे पिचका लइका मन रंग भरे अउ मारन लागे । आवय जावय जेन गलीन म ओहर तो मुॅह तोपत भागे । मारत हे पिचका मुॅह ऊपर ओ लइका मन हा बरजोरी  । आज बुरा मत मानव जी कहि नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ गुलाल धरे दउडावत नंनद देखत भागत भौजी । भागत देखत साजन आवय रंग मले मुॅह मा मन मौजी । रंगय साजन रंग म हाॅसत लागय ओ जस चांद चकोरी रंगय रंग दुनों इतरावत नाचत गात मनावत होरी ।।

दाेहा के मरम

कविता के हर शब्द मा, अनुशासन के बंद । आखर आखर के परख, गढ़थे सुघ्घर छंद ।। चार चरण दू डांड़ के, होथे दोहा छंद । तेरा ग्यारा होय यति, रच ले तै मतिमंद ।। विषम चरण के अंत मा, रगण नगण तो होय । तुक बंदी  सम चरण रख, अंत गुरू लघु होय ।। समुदर ला धर दोहनी, दोहा हा इतराय । अंतस बइठे जाय के, अपने रंग जमाय ।। बात बात मा बात ला, मनखे ला समझाय । दोहा अइसन छंद हे, जेला जन जन भाय ।। दोहा हिन्दी साहित्य के, बने हवय पहिचान । बीजक संत कबीर के, तुलसी मानस गान ।। छत्तीसगढ़ी मा घला, दोहा के हे मान । धनीधरम जी हे रचे, जाने जगत जहान ।। विप्र दलित मन हे रचे, रचत हवे बुधराम । अरूण निगग ला देख ले, रचत हवय अविराम  ।। बोली ले भासा गढ़ी, रखी सोच ला रोठ । शिल्प विधा मा हम रची, जुर मिल रचना पोठ ।। अनुसासन के पाठ ले, बनथे कोनो छंद । देख ताक के शब्द रख, बन जाही मकरंद ।। छोट बुद्धि तो मोर हे, करत हंवव परयास । चतुरा चतुरा बड़ हवय, लाही जेन उजास ।।

मया के रंग

लुहुर तुहुर मोरे मन होगे,तोरे बर रुझवाये । तोरे मुच मुच हँसना गोरी, मोला गजब सुहाये। बैइही बरन मोला लागे, सुन सुन भाखा तोरे । मया घोरे बोली हा तोरे, चिरे करेजा मोरे । कारी कारी चुन्दी तोरे, बादर बन के छाये । झाकत तोरे मुखड़ा गोरी, मोला बड़ भरमाये । आँखी आँखी म मया बोरे, अँखिया बाण चलाये । घायल हिरणीया मन मोरे, तड़प तड़प मर जाये ।। मोरे मन हा अंतस तोरे, बुड़े मया के दहरा । लहर लहर कतका लहराये, तोर मया के लहरा ।। तोर मया मा मन हा रंगे, जइसे दूध म पानी । तैं हर मोरे मन के राजा, मैं हर तोरे रानी ।।

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