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संदेश

कतका झन देखे हें-

मया के रंग

खरे मझनिया जेठ के, सावन अस तो भाय । ठुड़गा ठुड़गा रूख घला, पुरवाही बरसाय ।। तोर मया के रंग ले, जब रंगे मन मोर । फांदा के चारा घला, मोला गजब मिठाय ।

लगे देश मा रोग

जब तक जागय न मनखे, सबकुछ हे बेकार । सबो नियम कानून अउ, चुने तोर सरकार । मांगय भर अधिकार ला, करम ल अपन भुलाय । । लोक लाज ला छोड़ के, छोड़े हे संस्कार ।। धरे कटोरा हे खड़े, एक गोड़ मा लोग । फोकट मा सब बांटही, दुनिया के हर भोग । हमर देश सरकार हे, फोकट हा अधिकार । खास आम के सोच ले, लगे देश मा रोग ।।

परय पीठ मा लोर

मुॅह बांधे रहिके ददा, चीज रखे हे जोर । जोर जोर पइली पसर, कोठी राखे घोर ।। घोर घोर जब बेटवा, थुक मा लाडू बांध । मांगे बाटा बाप ले, परय पीठ मा लोर ।।

केत

बहरा भर्री बन जथे, परता रहे म खेत। खेत खार बर कोढि़या, बन जाथे गा केत ।। केत एक अउ दारू हे, जेन रखय गा पेर । पेर पेर हमला रखय, दारू कोढि़या नेत ।

बेचे रिश्ता रोज

घर घर मा दुकान हवे, बेचे रिश्ता रोज । रोज खरीदे कोन हा, कर लव एखर खोज ।। खोज कोन हा टोरथे, तोरे घर परिवार । लालच मा जे आय के, देथे पैरा बोज ।।

सही म ओही रोठ

लाठी जेखर हाथ मा, लहिथे ओखर गोठ । गोठ होय बदरा भले, पर मानय सब पोठ ।। पोठ गोठ लदकाय हे, बोल सके ना बोल । बोल पोठ जे बोलथे, सही म ओही रोठ ।।

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन, तैं मन भीतर राख मया । अब हे अपने दुनिया गढना, भर ले मन मा सुख आस नवा ।। मइके घर हा पहुना अब तो ससुरार नवा घर द्धार हवे । बिटिया भल मानव ओ ससुरार म जीवन के रस धार हवे ।।

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