काठी के नेवता कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक । बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।। टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो ठोकरी । मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।। अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा । हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।। रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा । सजे धजे मटकत रहिस, मारत ओहर शान गा ।। देख देख ये बात ला, मैं हा सोचॅव बात गा । मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा । मोला जब मरने हवय, मरहूॅ मैं हा शान ले । जइसे मैं जीयत हॅवव, तुहर मया के मान ले ।। भेजत हवॅव मैं हा अपन, अब काठी के नेवता । दिन बादर ला जान के, आहू बनके देवता ।। अपने काठी के खबर मैं हा आज पठोत हंव। जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
2 माह पहले