कुकुभ छंद जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे। जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।। नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे । उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।। ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे । कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे । जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे । लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।। करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे । मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे। जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे । संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।। जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे । मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
-
मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
2 माह पहले