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संदेश

कतका झन देखे हें-

सुन रे भोला

ये मनखे चोला, सुन रे भोला, मरकी जइसे, फूट जथे । ये दुनियादारी, चार दुवारी, परे परे तो, छूट जथे ।। मनखेपन छोड़े, मुँह ला मोड़े, सबो आदमी, ठाँड़ खड़े । अपने ला माने, छाती ताने, मारत शाने, दांव लड़े ।।

देख महंगाई

ये चाउर आटा, भाजी भाटा, आही कइसे, दू पइसा । देखव महँगाई, बड़ करलाई, मनखे होगे, जस भइसा ।। वो दिन अउ राते, काम म माते, बस पइसा के, चक्कर मा । माथा ला फोरे, जांगर टोरे, अपन पेट के, टक्कर मा ।

मुक्तक

मुक्तक 122 222, 221 121 2 सुते मनखे ला तै, झकझोर उठाय हस । गुलामी के भिथिया, तैं टोर गिराय हस ।। उमा सुत लंबोदर, वो देश ल देख तो । भरे बैरी मन हे, तैं आज भुलाय हस । -रमेश चौहान

मुक्तक

मुक्तक 222 212, 211 2221 आखर के देवता, ज्ञान भरव महराज । बाधा के हरइया, कष्ट हरव महराज ।। जग के गण राज तैं, राख हमर गा मान । हम सब तोरे शरण, हाथ धरव महराज ।। -रमेश चौहान

जस चश्मा के रंग होय

जस चश्मा के रंग होय । तइसे मनखे दंग होय भाटा कइसे हवय लाल । पड़े सोच मा खेमलाल चश्मा ला मन मा चढ़ाय । जग ला देखय हड़बड़ाय करिया करिया हवय झार । ओ हा कहय मन ला मार अपन सोच ले दुनिया देख । मनखे जग के करे लेख तोर मोर हे एक रंग । कहिथे जब तक रहय संग दुनिया हा तो हवय एक । दिखथे घिनहा कभू नेक दुनिया के हे अपन हाल । तोरे मन के अपन चाल दस अँगरी हे तोर हाथ । छोटे बड़े हवे एक साथ मुठ्ठी बनके रहय संग । काबर होथव तुमन तंग

बादर पानी मा कभू

बादर पानी मा कभू, चलय न ककरो जोर । कब होही बरखा इहां, जानय वो चितचोर ।। जानय वो चितचोर, बचाही के डूबोही । वोही लेथे मार, दया कर वो सिरजोही । माथा धरे रमेश, छोड़ बइठे हे मादर । कइसे करय उमंग, दिखय ना पानी बादर ।।

तीजा

करू करेला तैं हर रांध । रहिबो तीजा पेट ल बांध तीजा मा निरजला उपास । नारीमन के हे विश्वास छत्तीसगढ़ी ये संस्कार । बांधय हमला मया दुलार धरके श्रद्धा अउ विश्वास । दाई माई रहय उपास सीता के हे जइसे राम । लक्ष्मी के हे जइसे श्याम गौरी जइसे भोला तोर । रहय जियर-जाँवर हा मोर अमर रहय हमरे अहिवात । राखव गौरी हमरे बात मांघमोति हा चमकय माथ । खनकय चूरी मोरे हाथ नारी बर हे पति भगवान । मांगत हँव ओखर बर दान काम बुता ला ओखर साज । रख दे गौरी हमरे लाज

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