सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3bDUwNnVma0NKMWM

मउत

मउत ह करिया बादर बन चौबीस घंटा छाये हे कभू सावन के बादर बन खेत खार ला हरियावय फल-फूल अन्न-धन्न  उपजाके जीव-जीव ला सिरजावय कभू-कभू गाज बनके आगी ल बरसाये हे ओही बादर ला देख मनखे झूमय नाचय आगी कस दहकत घाम ले मनखे-मनखे बाचय गुस्सा मा जब बादर फाटय पर्वत घला बोहाये हे एक बूँद बरसे न जब बादर चारो कोती हाहाकार मचे हे सृष्टि के हर अनमोल रचना ये चक्कर ले कहां बचे हे आवत-जावत करिया बादर सब ला नाच नचाये हे

मन के परेवना

मन के परेवना उड़ी-उड़ी के दुनिया भर घूमत हे ठोमहा भर मया होतीस सुकुन के पेड़ जेन बोतीस लहर लहर खुषी के लहरा तन मन ला मोर भिगोतीस आँखी मा सपना देखी-देखी के अपने तकिया चूमत हे अरझे सूत ला खोलत-खोलत अपने अपन मा बोलत-बोलत जीनगी के फांदा मा फसे चुरमुरावत हे डोलत-डोलत अपने हाथ ला चाब-चाब के अपने आँखी ला घूरत हे

गीत कोयली लीम करेला

गीत कोयली लीम करेला कउवा बोली आमा उत्ती के सुरूज, बुड़ती उवय बुड़ती के सुरूज उत्ती बुड़य मनखे नवा सोच ला पाये शक्कर मा मिरचा ला गुड़य होगे जुन्ना हा, जहर महुरा आये नवा जमाना डिलवा डिलवा डबरा होगे डबरा डबरा बिल्डिंग पोगे कका बबा के संगे छोड़े दाई ददा हा अलग होगे । माचिस काड़ी छर्री-दर्री समाही अब कामा झूठ लबारी उज्जर दिखय अंधरा मन इतिहास लिखय अपन भाषा हा पर के लागय पर के भाषा मनखे मन सीखय खड़े पेड़ ला टंगिया मा काटय बोये नवा दाना

अंधियारी मेट दे

(गीतिका छंद) ठान ले मन मा अपन तैं, जीतबे हर हाल मा । जोश भर के नाम लिख दे, काल के तैं गाल मा । नून बासी मा घुरे कस, दुख खुशी ला फेट दे । एक दीया बार के तै, अंधियारी मेट दे ।

मोर दूसर ब्लॉग