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संदेश

कतका झन देखे हें-

मैं भौरा होगेंव ओ.... (करमा गीत)

//करमा गीत// नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगेंव न, तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न। नायक- फूल पतिया कस, गाल लाली-लाली... ओठ जइसे मधुरस ले, भरे कोनो थारी नायिका- तोर बहिया पलना, झूलना कस लागे.. तोर मया के पुरवाही, तन-मन मा छागे नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगेंव न, तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न तोर मया बदरवा, मैं चिरइया होगेंव न। नायक- फूल कस ममहावय, मुच-मुच हाँसी .... अरझ के रहि जाये, जीयरा करे फासी नायिका- तोर मया के रंग, बदरा कस लागे देखे बर तोला रे, मन म पाखी जागे नायक- मैं भौरा होगेंव ओ....., मैं भौरा होगेंव न, तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न तोर मया ह फूलवा, मन भौरा होगेंव न । नायिका- मैं चिरइया होगेंव गा...., मैं चिरइया होगे

जिया म जगाये अनुराग (करमा गीत)

//करमा  गीत// नयिका- जमुना कछार कदम डार, छेड़े मया के राग कान्हा मुरली बजा के, -2 तन-मन मोहनी डार, जिया म जगाये अनुराग नायक- बाजत गैरी बोलत पैरी, मेटे हे बैराग राधा हँस मुस्का के-2 नैना म नैना डार, जिया म जगाये अनुराग नायक- छलछल जमुना के पानी जइसे बानी आँखी तोरे छलकाये बोली तोर गुरतुर गुरतुर अमरित नैन मया उपजाये तैं मया के पराग, मोर बंषी के राग जोड़े अंतस के ताग, जिया म जगाये अनुराग नायिका- मया के हे मूरत, कान्हा तोरे सूरत देखते मदन मर जाये जस कमल के पाती, पानी रहय न थाती मोह बिन मया सिरजाये काम रखे न पाग, प्रीत के तही सुहाग जगा के मोरे भाग, जिया म जगाये अनुराग नयिका- जमुना कछार कदम डार, छेड़े मया के राग कान्हा मुरली बजा के -2 तन-मन मोहनी डार, जिया म जगाये अनुराग नायक- बाजत गैरी बोलत पैरी, मेटे हे बैराग राधा हँस मुस्का के-2 नैना म नैना डार, जिया म जगाये अनुराग

सहे अत्याचार (रूपमाला छंद)

शत्रु मारे देश के तैं, लांघ सीमा पार । हमर ताकत हवय कतका, जानगे संसार ।। नोटबंदी झेल जनता, खड़े रहिगे संग । देश बर हे मया कतका, शत्रु देखे दंग ।। हमर सैनिक हमर धरती, हमर ये पहिचान । मान अउ सम्मान इंखर, हमर तैं हा जान । झेल पथरा शत्रु के तै, सहे अत्याचार । हमर सैनिक मार खावय, बने तै लाचार ।। फैसला तैं खूब लेथस, मौन काबर आज । सहत हस अपमान काबर, हवय तोरे राज ।।

चना होरा कस, लइकापन लेसागे

चना होरा कस, लइकापन लेसागे पेट भीतर लइका के संचरे ओखर बर कोठा खोजत हे, पढ़ई-लिखई के चोचला धर स्कूल-हास्टल म बोजत हे देखा-देखी के चलन दाई-ददा बउरागे सुत उठ के बड़े बिहनिया स्कूल मोटर म बइठे बेरा बुड़ती घर पहुॅचे लइका भूख-पियास म अइठे अंग्रेजी चलन के दौरी म लइका मन मिंजागे बारो महिना चौबीस घंटा लइका के पाछू परे हे खाना-पीना खेल-कूद सब अंग्रेजी पुस्तक म भरे हे पीठ म लदका के परे बछवा ह बइला कहागे चिरई-चिरगुन, नदिया-नरवा अउ गाँव के मनखे लइका केवल फोटू म देखे सउहे देखे न तनके अपने गाँव के जनमे लइका सगा-पहुना कस लागे साहेब-सुहबा, डॉक्टर-मास्टर हो जाही मोर लइका जइसने बड़का नौकरी होही तइसने रौबदारी के फइका पुस्तक के किरा बिलबिलावत देष-राज म समागे बंद कमरा म बइठे-बइठे साहब योजना अपने गढ़थे घाम-पसीना जीयत भर न जाने पसीना के रंग भरथे भुईंया के चिखला जाने न जेन सहेब बन के आगे

मूरख हमला बनावत हें

बॉट-बॉट के फोकट म मूरख हमला बनावत हे पढ़े-लिखे नोनी-बाबू के, गाँव-गाँव म बाढ़ हे काम-बुता लइका मन खोजय येखर कहां जुगाड़ हे बेरोजगारी भत्ता बॉट-बॉट वाहवाही तो पावत हे गली-गली हर गाँव के बेजाकब्जा म छेकाय हे गली-गली के नाली हा लद्दी म बजबजाय हे छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया गाना हमला सुनावत हे जात-पात म बाँट-बाँट के बनवात हे सामाजिक भवन गली-खोर उबड़-खाबड़ गाँव के पीरा काला कहन सपना देखा-देखा के वोट बैंक बनावत हे मास्टर पढ़ाई के छोड़ बाकी सबो बुता करत हे हमर लइका घात होषियार आघूच-आघूच बढ़त हे दिमाग देहे बर लइका मन ला थारी भर भात खवावत हे गाँव म डॉक्टर बिन मनखे बीमारी मा मरत हे कोरट के पेशी के जोहा म हमर केस सरत हे करमचारी के अतका कमी अपने स्टाफ बढ़ावत हे महिला कमाण्ड़ो घूम-घूम दरूवहा मन ला डरूवावय गाँव के बिगड़े शांति ल लाठी धर के मनावय जनता के पुलिस ला धर वो हा दारू बेचवावत हे

चारो कोती ले मरना हे

झोला छाप गांव के डॉक्टर, अउ रद्दा के भठ्ठी  । करना हावे बंद सबो ला, कोरट दे हे पट्टी ।। क्लिनिक सील होगे डॉक्टर के, लागे हावे तारा । सड़क तीर के भठ्ठी बाचे, न्याय तंत्र हे न्यारा ।। सरदी बुखार हमला हावय , डॉक्टर एक न गाँव म । लू गरमी के लगे थिरा ले, तैं भठ्ठी के छाँव म।। हमर गाँव के डॉक्टर लइका, शहर म जाके रहिथे । नान्हे-नान्हे लइका-बच्चा, दरूहा ददा ल सहिथे ।। गरीबहा भगवान भरोसा, सेठ मनन सरकारी । चारो कोती ले मरना हे, अइसन हे बीमारी ।।

अब आघू बढ़ही, छत्तीसगढ़ी

अब आघू बढ़ही, छत्तीसगढ़ी, अइसे तो लागत हे । बहुत करमचारी, अउ अधिकारी, येला तो बाखत हे ।। फेरे अपने मन, लाठी कस तन, खिचरी ला रांधत  हे । आके झासा मा, ये भाषा मा, आने ला सांधत हें ।।

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