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संदेश

कतका झन देखे हें-

अइसे कोनो रद्दा खोजव, जुरमिल रेंगी साथ

मोटर गाड़ी के आए ले, घोड़ा दिखय न एक । मनखे केवल अपन बाढ़ ला, समझत हावे नेक ।। जोते-फांदे अब टेक्टर मा, नांगर गे नंदाय । बइला-भइसा कोन पोसही, काला गाय ह भाय ।। खातू-माटी अतका डारे, चिरई मन नंदात । खेत-खार मा महुरा डारे, अपने करे अघात ।। आघू हमला बढ़ना हावे, केवल धरे मशीन । मन मा अइसन सोच रहे ले, धरती जाही छीन ।। जीव एक दूसर के साथी, रचे हवय भगवान । मनखे एखर संरक्षक हे, सबले बड़े महान ।। बड़े मनन घुरवा होथे, कहिथे मनखे जात । झेल झपेटा जेने सहिथे, मांगय नही भात ।। अइसे कोनो रद्दा खोजव, जुरमिल रेंगी साथ । जीव पोसवा घर के बाचय, धर के हमरे हाथ ।।

गाय अब केती जाही

टेक्टर चाही खेत बर, झट्टे होही काम । नांगर बइला छोड़ दे, कहत हवय विज्ञान । कहत हवय विज्ञान, धरम प्रगती के बाधक । देवय कोन जवाब, मौन हे धरमी साधक । पूछत हवे "रमेश", गाय अब केती जाही । बइला ला सब छोड़, कहय जब टेक्टर चाही ।। -रमेश चौहान

पांचठन दोहा

 कदर छोड़ परिवार के, अपने मा बउराय । अपन पेट अउ देह के, चिंता मा दुबराय ।। अपन गांव के गोठ अउ, अपन घर के भात । जिनगी के पानी हवा, जिनगी के जज्बात ।। काम नाम ला हे गढ़े, नाम गढ़े ना काम । काम बुता ले काम हे, परे रहन दे नाम ।। दारु बोकरा आज तो, ठाढ़ सरग के धाम । खीर पुरी ला छोड़ तैं, ओखर ले का काम ।। सीख सबो झन बाँटथे, धरय न कोनो कान । गोठ आन के छोट हे, अपने भर ला मान ।।

छंद चालीसा (छत्तीसगढ़ी छंद के कोठी)

"छंद चालीसा" (छत्तीसगढ़ी छंद के कोठी) । http://www.gurturgoth.com/chhand-chalisa/ ये लिंक म देख सकत हव ये किताब मा 40 प्रकार के छंद के नियम-धरम ला उदाहरण सहित समझाये के कोशिश करे हंव ।  येखर संगे-संग कई प्रकार के कविता कई ठन विषय मा पढ़े बर आप ला मिलही । येला पढ़के अपन प्रतिक्रिया स्वरूप आर्शीवाद खच्चित देहू 

तर्क ज्ञान विज्ञान कसौटी

तर्क ज्ञान विज्ञान कसौटी, पढ़ई-लिखई के जर आवय । काबर कइसे प्रश्न खड़ा हो, जिज्ञासा ला हमर बढ़ावय ।। रटे-रूटाये तोता जइसे, अक्कल ला ठेंगा देखावय । डिग्री-डिग्री के पोथा धर के, ज्ञानी-मानी खुदे कहावय ।। जिहां तर्क के जरूरत होथे, फांदे ना अक्कल के नांगर । आस्था ला टोरे-भांजे बर, अपन चलावत रहिथे जांगर ।। ज्ञान परे आखर पोथी ले, कतको अनपढ़ ज्ञानी हावय । सृष्टि नियम विज्ञान खोजथे, ललक-सनक ला जेने भावय ।। सुख बीजा विज्ञान खोचथे, भौतिक सुविधा ला सिरजावय । खुद करके देखय अउ जानय, वोही हा विज्ञान कहावय ।। सृष्टि रीत जे जानय मानय, मानवता जे हर अपनावय । अंतस सुख के जे बीजा बोवय, वो ज्ञानी आदमी कहावय ।। एक ध्येय ज्ञानी विज्ञानी के, मनखे जीवन डगर बहारय । एक लक्ष्य अध्यात्म धर्म के, मनखे मन के सोच सवारय ।। अपन सुवारथ लाग-लपेटा, फेर कहां ले मनखे पावय । अपने घर परिवार बिसारे, अपने भर ला कइसे भावय ।। 

खून पसीना मा झगरा हे

खून पसीना मा झगरा हे, परे जगत के फेर बने-बुनाये सड़क एक बर, सरपट-सरपट दउड़े । एक पैयडगरी गढ़त हवे अपन भाग ला डउडे़ ।। (डउड़ना-सवारना) केवल अधिकार एक जानय, एक करम के टेर जेन खून के जाये होथे, ओखर चस्मा हरियर । जेन पसीना ला बोहाथे, ओखर मन हा फरियर ।। एक धरे हे सोना चांदी, दूसर कासा नेर ।।

बरखा ला फोन करे हे

नवगीत मोर गांव के धनहा-डोली, बरखा ला फोन करे हे । तोर ठिठोली देखत-देखत, छाती हा मोर जरे हे ।। रोंवा-रोंवा पथरा होगे, परवत होगे काया । पानी-माटी के तन हा मोरे समझय कइसे माया धान-पान के बाढ़त बिरवा, मुरछा खाय परे हे एको लोटा पानी भेजव, मुँह म छिटा मारे बर कोरा के लइका चिहरत हे, येला पुचकारे बर अब जिनगी के भार भरोसा ऊपर तोर धरे हे फूदक-फुदक के गाही गाना, तोर दरस ला पाके घेरी-घेरी माथ नवाही तोर पाँव मा जाके कतका दिन के बिसरे हावस सुन्ना इहां परे हे ।

मोर दूसर ब्लॉग