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संदेश

कतका झन देखे हें-

एक दर्जन दोहा

1. दोष निकालब कोखरो, सबले सस्ता काम । अपन दोष ला देखना, जग के दुश्कर काम ।। 2. अपन हाथ के मइल तो, नेता मन ला जान । नेता मन के खोट ला, अपने तैं हा मान ।। 3. मुगल आंग्ल मन भाग गे, भागे ना वो सोच । संस्कृति अउ संस्कार मा, करथें रोज खरोच ।। 4. अपन देश के बात ला, धरे न शिक्षा नीति । लोकतंत्र के राज मा, हे अंग्रेजी रीति । 5. कोनो फोकट मा घला, गाय रखय ना आज । गाय ल माता जे कहय, आय न ओला लाज ।। 6. पानी चाही काल बर, तरिया कुँआ बचाव । बोर खने के सोच मा, तारा अभे लगाव ।। 7. तरिया नरवा गाँव के, गंदा हावे आज । पानी बचाव योजना, मरत हवे गा लाज ।। 8. रद्दा पूछत मैं थकँव, पता बतावय कोन । लइका हे ये शहरिया, चुप्पा देखय मोन । । 9. बाबू मोरे कम पढ़े, कइसे होय बिहाव । नोनी मन जादा पढ़े, बहू कहां ले आय ।। 10. सीख सबो झन बाँटथे, धरय न कोनो कान । गोठ आन के छोट हे, अपने भर ला मान ।। 11. दारु बोकरा आज तो, ठाढ़ सरग के धाम । खीर पुरी ला छोड़ तैं, ओखर ले का काम ।। 12. काम नाम ला हे गढ़े, नाम गढ़े ना काम । काम बुता ले काम हे, परे रहन दे नाम ।।

हाथ बर कामे मांगव

मांगय अब सरकार ले, केवल हाथ म काम । येमा-वोमा छूट ले, हमर चलय ना काम । हमर चलय ना काम, हाथ होवय जब खाली । बिना बुता अउ काम, हमर हालत हे माली ।। सुनलव कहय रमेश, कटोरा खूंटी टांगव । छोड़व फोकट छूट, हाथ बर कामे मांगव ।।

नई चाही कुछ फोकट

फोकट मा तो  खाय बर, छोड़व यार मितान । हमर आड़ मा देश के, होत हवय नुकसान ।। होत हवय नुकसान, देश के नेता मन ले । फोकट के हर एक, योजना ला तैं गन ले ।। देथें पइसा चार, हजारों खाथें टोकत । हमला चाही काम, नई चाही कुछ फोकट ।।

अइसे कोनो रद्दा खोजव, जुरमिल रेंगी साथ

मोटर गाड़ी के आए ले, घोड़ा दिखय न एक । मनखे केवल अपन बाढ़ ला, समझत हावे नेक ।। जोते-फांदे अब टेक्टर मा, नांगर गे नंदाय । बइला-भइसा कोन पोसही, काला गाय ह भाय ।। खातू-माटी अतका डारे, चिरई मन नंदात । खेत-खार मा महुरा डारे, अपने करे अघात ।। आघू हमला बढ़ना हावे, केवल धरे मशीन । मन मा अइसन सोच रहे ले, धरती जाही छीन ।। जीव एक दूसर के साथी, रचे हवय भगवान । मनखे एखर संरक्षक हे, सबले बड़े महान ।। बड़े मनन घुरवा होथे, कहिथे मनखे जात । झेल झपेटा जेने सहिथे, मांगय नही भात ।। अइसे कोनो रद्दा खोजव, जुरमिल रेंगी साथ । जीव पोसवा घर के बाचय, धर के हमरे हाथ ।।

गाय अब केती जाही

टेक्टर चाही खेत बर, झट्टे होही काम । नांगर बइला छोड़ दे, कहत हवय विज्ञान । कहत हवय विज्ञान, धरम प्रगती के बाधक । देवय कोन जवाब, मौन हे धरमी साधक । पूछत हवे "रमेश", गाय अब केती जाही । बइला ला सब छोड़, कहय जब टेक्टर चाही ।। -रमेश चौहान

पांचठन दोहा

 कदर छोड़ परिवार के, अपने मा बउराय । अपन पेट अउ देह के, चिंता मा दुबराय ।। अपन गांव के गोठ अउ, अपन घर के भात । जिनगी के पानी हवा, जिनगी के जज्बात ।। काम नाम ला हे गढ़े, नाम गढ़े ना काम । काम बुता ले काम हे, परे रहन दे नाम ।। दारु बोकरा आज तो, ठाढ़ सरग के धाम । खीर पुरी ला छोड़ तैं, ओखर ले का काम ।। सीख सबो झन बाँटथे, धरय न कोनो कान । गोठ आन के छोट हे, अपने भर ला मान ।।

छंद चालीसा (छत्तीसगढ़ी छंद के कोठी)

"छंद चालीसा" (छत्तीसगढ़ी छंद के कोठी) । http://www.gurturgoth.com/chhand-chalisa/ ये लिंक म देख सकत हव ये किताब मा 40 प्रकार के छंद के नियम-धरम ला उदाहरण सहित समझाये के कोशिश करे हंव ।  येखर संगे-संग कई प्रकार के कविता कई ठन विषय मा पढ़े बर आप ला मिलही । येला पढ़के अपन प्रतिक्रिया स्वरूप आर्शीवाद खच्चित देहू 

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