छत्तीसगढ़ी छत्तीसगढ़ प्रांत की मातृभाषा एवं राज भाषा है । श्री प्यारेलाल गुप्त के अनुसार ‘‘छत्तीसगढ़ी भाषा अर्धभागधी की दुहिता एवं अवधी की सहोदरा है ।‘‘1 लगभग एक हजार वर्ष पूर्व छत्तीसगढ़ी साहित्य का सृजन परम्परा का प्रारम्भ हो चुका था । अतीत में छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजन की रेखयें स्पष्ट नहीं हैं । सृजन होते रहने के बावजूद आंचलिक भाषा को प्रतिष्ठा नहीं मिल सकी तदापी विभिन्न कालों में रचित साहित्य के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं । छत्तीसगढ़ी साहित्य एक समृद्ध साहित्य है जिस भाषा का व्याकरण हिन्दी के पूर्व रचित है । जिस छत्तीसगढ़ के छंदकार आचार्य जगन्नाथ ‘भानु‘ ने हिन्दी को ‘छन्द्र प्रभाकर‘ एवं काव्य प्रभाकर भेंट किये हों वहां के साहित्य में छंद का स्वर निश्चित ध्वनित होगा । छत्तीसगढ़ी साहित्य में छंद के स्वरूप का अनुशीलन करने के पूर्व यह आवश्यक है कि छंद के मूल उद्गम और उसके विकास पर विचार कर लें । भारतीय साहित्य के किसी भी भाषा के काव्य विधा का अध्ययन किया जाये तो यह अविवादित रूप से कहा जा सकता है वह ‘छंद विधा‘ ही प्राचिन विधा है जो संस्कृत, पाली, अपभ्रंष, खड़ी बोली से होते हुये आज के हिन्दी ए
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
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मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
2 माह पहले