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संदेश

कतका झन देखे हें-

नानपन ले काम करव

आज करबे काल पाबे, जानथे सब कोय । डोलथे जब हाथ गोड़े, जिंदगी तब होय ।। काम सुग्घर दाम सुग्घर, मांग लौ दमदार । काम घिनहा दाम घिनहा, हाथ धर मन मार ।। डोकरापन पोठ होथे, ढोय पहिली काम । नानपन ले काम करके, पोठ राखे चाम ।। नानपन मा जेन मनखे, लात राखे तान । भोगही ओ काल जूहर, बात पक्का मान ।। नानपन ले काम कर लौ, देह होही पोठ । आज के ये तोर सुख मा, काल दिखही खोट ।। कान अपने खोल सुन लौ, आज दाई बाप । खेल खेलय तोर लइका, मेहनत ला नाप ।। देह बर तो काम जरुरी, बात पक्का मान । खेल हा तो काम ओखर, गोठ सिरतुन जान ।। तोर पढ़ई काम भर ले, बुद्धि होही पोठ । काम बिन ये देह तोरे, होहि कइसे रोठ ।। खेल मन भर नानपन मा, खोर अँगना झाक । रात दिन तैं फोर आँखी, स्क्रीन ला मत ताक ।। नानपन ले जेन जानय, होय कइसे काम । झेल पीरा आज ओ तो, काल करथे नाम ।। -रमेश चौहान

चल तरिया जाबो

चल तरिया जाबो, खूब नहाबो, तउड-तउड़ के संगी । खूब मजा पाबो, दम देखाबो, नो हय काम लफंगी ।। तउड़े ले होथे, काया पोठे, तबियत सुग्घर रहिथे । पाछू सुख पाथे, तउड़ नहाथे, आज झेल जे सहिथे ।। जब तरिया जाबे, संगी पाबे, चार बात बतियाबे । गोठ गोठियाबे, मया बढ़ाबे, पीरा अपन सुनाबे ।। दूसर के पीरा, सुनबे हीरा, मनखे बने कहाबे । घर छोड़ नहानी, करत सियानी, तरिया जभे नहाबे ।। हे लाख फायदा, देख कायदा, धरती बर तरिया के । धरती के पानी, धरे जवानी, बड़ झूमे छरिया के ।। पानी के केबल, वाटर लेबल, तरिया बने बनाथे । बाते ला मानव, ये गुण जानव, कहिदव तरिया भाथे ।।

जल्दी उठ ले

मुँहझुंझुल उठ ले,  जल्दी पुट ले,  खटिया छोड़े,  खुशी धरे । हे अनमोल दवा, सुबे  के हवा, पाबे फोकट, बाँह भरे ।। रेंग कोस भर गा, छोड़व डर गा, रहिही तबियत, तोर बने । डाॅक्टर के चक्कर, करथे फक्कड़, पइसा-कौड़ी, लेत हने ।। काबर रतिहा ले, तैं बतिया ले, सुते न जल्दी, लेट  करे । मोबाइल धर के, गाड़ा भर के, फोकट-फोकट, चेट करे ।। जे जल्दी सुतही, जल्दी उठही, पक्का मानव, बात खरा । जाने हे जम्मा, तभो निकम्मा, काबर रहिथे, गोठ ढरा ।। हे नवा जमाना, नवा बहाना, गोठ नवा भर, इहां हवे । हे धरती जुन्ना, बाते गुन्ना, जेखर ले तो, देह हवे ।। माटी मा माटी, बनके साथी, जेने रहिथे,  स्वस्थ हवे। करथे हैरानी, धरे जवानी, अइसन मनखे, बने हवे ।। -रमेश चौहान

सपना मा आवत हे रे

//गीत// टूरा- खुल्ला चुन्दीवाली टूरी, सपना मा आवत हे रे । मोरै तन मन के बादर मा, बदरी बन छावत हे रे ।। टूरी- लंबा चुन्दी वाले टूरा, सपना मा आवत हे रे । मोरे तन मन के बदरी मा, बादर बन छावत हे रे ।। टूरा- चढ़े खोंजरारी चुन्दी हा, माथा मा जब-जब ओखर । घेरी-बेरी हाथ हटाये, लगे चेहरा तब चोखर । झमझम बिजली चमकय जइसे, चुन्दी चमकावत हे रे । खुल्ला चुन्दीवाली टूरी, सपना मा आवत हे रे । .टूरी- फुरुर-फुरुर पुरवाही जइसे, झुलुप केस हा बोहावय । जेने देखय अइसन बैरी, ओखर बर तो मोहावय । चिक्कन-चांदन गाल गुलाबी, घात नशा बगरावत हे रे । लंबा चुन्दी वाले टूरा, सपना मा आवत हे रे । टूरा- खुल्ला चुन्दीवाली टूरी, सपना मा आवत हे रे । मोरै तन मन के बादर मा, बदरी बन छावत हे रे ।। टूरी- लंबा चुन्दी वाले टूरा, सपना मा आवत हे रे । मोरे तन मन के बदरी मा, बादर बन छावत हे रे ।।

हवय बिमारी शुगर के

कटय बिमारी शुगर के, करू करेला रांध । रोटी भर खाना हवय, अपन पेट ला बांध ।। अपन पेट ला,  बांध रखे हँव, लालच छोड़े । गुरतुर-गुरतुर, स्वाद चिखे बर, मुँह ला मोड़े ।। नीम बेल अउ, तुलसी पत्ता, हे गुणकारी । रोज बिहनिया, दउड़े ले तो, कटय बिमारी ।। -रमेश चौहान

ये राजा मोरे

//गीत// (नायिका बर एकल गीत)  नायक वर्णन ये राजा मोरे, आँखी के तोरे, करिया-करिया काजर । लागत हे मोला, आँखी मा तोरे, हवय मया के सागर ।। आँखी-आँखी के, ये वोली बतरस, लागय गुरतुर आगर ।। एक कान के, सुग्घर बाली, अउ अँगठा के छल्ला । जब-जब तोला, देखँव राजा, होथे मन मा हल्ला ।। तोरे दाढ़ी के, ये करिया चुन्दी, लागय जइसे बादर । ये राजा मोरे, तोरे आँखी के, करिया-करिया काजर ।। आधा बाही, वाले कुरता, तोला अब्बड़ सोहे । खुल्ला-खुल्ला, तोर भुजा ये, मोला अब्बड़ मोहे ।। दूनों बाँह के, तोरे गोदना, मोला जलाय काबर । ये राजा मोरे, तोरे आँखी के, करिया-करिया काजर ।।

बनिहार

//बनिहार// आज जेला  देखव तेने हा बनिहार के गुण गावत नई अघावत हे चारोकोती आँखी मा जउन कुछ दिखत हे बनिहार के पसीना मा सनाय हे काली मोर गाँव के दाऊ कहत रहिस काली जेन बनिहार हमर पाँव परत रहिस आज ओखर पाँव परे ला होगे हे सालेमन के ओहू आज लिखिस "मजदूर दिवस की शुभकामना"

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