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संदेश

कतका झन देखे हें-

जाके बेटा खेत डहर

जाके बेटा खेत डहर, कांटा ला सकेल । आवत हावे मानसून, खातू ला ढकेल ।। बोना हावय धान-पान, खेत-खार निढाल । बीज-भात ला साफ करत, नांगर ला निकाल ।।

जांघ अपने काट के हम, बनावत हन साख

धर्म अउ संस्कार मा तो, करे शंका आज । आंग्ल शिक्षा नीति पाले, ओखरे ये राज ।। देख शिक्षा नीति अइसन, आय बड़का रोग । दासता हे आज जिंदा, देश भोगत भोग ।। देख कतका देश हावे, विश्व मा घनघोर । जेन कहिथे जांघ ठोके, धर्म आवय मोर ।। लाख मुस्लिम देश हावय, लाख क्रिश्चन देश । धर्म शिक्षा नीति मानय, राख अपने वेष ।। हिन्द हिन्दू धर्म बर तो, लाख पूछत प्रश्न । आन शिक्षा नीति देखव, मनावत हे जश्न ।। आज हिन्दू पूत होके, प्रश्न करके लाख । जांघ अपने काट के हम, बनावत हन साख ।।

समय हृदय के साफ

समय हृदय के साफ, दुवाभेदी ना जानय । चाल-ढाल रख एक, सबो ला एके मानय । पानी रहय न लोट, कमल पतरी मा जइसे । ओला होय न भान, हवय सुख-दुख हा कइसे । ओही बेरा एक, जनम कोनो तो लेथे । मरके कोनो एक, सगा ला पीरा देथे ।। अपन करम के भोग, भोगथे मनखे मनखे । कोनो बइठे रोय, हाँसथे कोनो तनके ।।

अरे जवानी

अरे जवानी भटकत काबर, रद्दा छोड़ । परे नशा पानी के चक्कर, मुँह ला मोड़ ।। धरती के सेवा करना हे, होय सपूत । प्यार-व्यार के चक्कर पर के, हवस कपूत ।।

बेजाकब्जा गाँव-गाँव

बेजाकब्जा गाँव-गाँव, लगत हवय कोढ़ । अपन बिमारी रखे तोप, कमरा ला ओढ़ ।। अंधरा-भैरा साधु चोर, हवय एक रंग । बचही कइसे एक गाँव, दिखय नहीं ढंग ।। -रमेश चौहान

भाव

भाव में दुख भाव मेॆं सुख, भाव में भगवान । भाव  जग व्यवहार से ही, संत है इंसान । भाव चेतन और जड़ में,  भाव से ही धर्म । भाव तन मन ओढ़ कर ही, करें अपना कर्म ।।

दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे

दोष देत सरकार ला, सब पिसत दांत हे । ओखर भीतर झाक तो, ओ बने जात हे । जनता देखय नही, खुद अपन दोष ला । अपन स्वार्थ मा तो परे, बांटथे  रोष ला ।। वो लबरा हे कहूॅं, तैं सही होय हस ? गंगा जल अउ दूध ले, तैं कहां धोय हस ?? तैं सरकारी योजना, का सही पात हस ? होके तैं हर गौटिया, गरीब कहात हस ?? बेजाकब्जा छोड़ दे, तैं अपन गांव के । चरिया परिया छोड़ तैं, रूख पेड़ छांव के । लालच बिन तैं वोट कर, आदमी छांट के । नेता नौकर तोर हे, तैं राख हांक के ।।

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