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संदेश

कतका झन देखे हें-

देखव शहर के गाँव मा

देखव शहर के गाँव मा, एके दिखे हे चाल ।। परदेश कस तो देश हा, कइसे कहँव मैं हाल।। अपने अपन मा हे मगन, बड़का खुदे ला मान । मतलब कहां हे आन ले, अपने अपन ला तान ।। फेशन धरे हे आन के,  अपने चलन ला टार । अपने खुशी ला देखथे, परिवार ला तो मार ।। दाई ददा बस पोसथे, लइका अपन सिरजाय । बड़का बढ़े जब बेटवा, दाई ददा बिसराय ।। बिगडे़ नई हे कुछु अभी, अपने चलन धर हाथ । जुन्ना अपन संस्कार धर, परिवार के धर साथ ।। भर दे खुशी ला आन के, पाबे खुशी तैं लाख । एही हमर संस्कार हे, एही हमर हे साख ।। -रमेश चौहान

दारु भठ्ठी बंद कर दे

गाँव होवय के शहर मा, एक सबके चाल हे ।। रोज दरूहा के गदर मा, आदमी बेहाल हे ।। हे मचे झगरा लड़ाई, गाँव घर परिवार मा ।। रोज के परिवार टूटय, दारू के ये मार मा ।। रात दिन सब एक हावे,, देख दरूहा हर गली । हे बतंगड़ हर गली मा, कोन रद्दा हम चली । जुर्म दुर्घटना घटे हे, आज जतका गाँव मा । देख आँखी खोल के तैं, होय दरूहा दाँव मा ।। सोच ले सरकार अब तैं, दारू के ये काम हे । आदमी बेहाल जेमा, दाग तोरे नाम हे ।। दारू भठ्ठी बंद कर दे, टेक्स अंते जोड़ दे । पाप के हे ये कमाई,  ये कमाई छोड़ दे । आदमी के सरकार तैं हा, आदमी खुद मान ले । आदमी ला आदमी रख, आदमी ला जान ले ।। काम अइसे तोर होवय, आदमी बर आदमी । आदमी के कर भलाई, हस तभे तैं आदमी ।। -रमेश चौहान

बड़का बड़े, ये देश

हर जात ले, हर धर्म ले, आघू खड़े, ये देश । हे मोर ले, अउ तोर ले, बड़का बड़े, ये देश ।। सम्मान कर, अभिमान कर, तैं भुला के, खुद क्लेष । ये मान ले, अउ जान ले, हे तोर तो, ये देश ।। विरोध करव, सरकार के, जनतंत्र मा, हे छूट । पर देश के, तै शत्रु बन, सम्मान ला, झन लूट ।। पहिचान हे, अभिमान हे, हमर सैनिक, हे वीर । अपन धरती, अउ देश बर, डटे रहिथे, धर धीर ।। -रमेश चौहान

//काम के अधिकार चाही//

छाती ठोक के, मांग करव अब, काम के अधिकार । हर हाथ मा तो, काम होवय, रहब न हम लचार ।। हर काम के तो, दाम चाही, नई लन खैरात । हो दाम अतका, पेट भर के, मिलय हमला भात ।। खुद गुदा खाथे, देत हमला, फोकला ला फेक । सरकार या, कंपनी हा, कहां कोने नेक ।। अब काम के अउ, दाम के तो, मिलय गा अधिकार । कानून गढ़ दौ, एक अइसन, देश के सरकार ।।

फोकट मा झन बाँट

फोकट मा झन बाँट तैं, हमर चुने सरकार । देना हे ता काम दे, जेन हमर अधिकार ।। जेन हमर अधिकार,  तोर कर्तव्य कहाये । स्वाभिमान ला मार, सबो ला ढोर बनाये  ।। पैरा-भूसा डार, अपन बरदी मा ठोकत ।  लालच हमर जगाय, लोभ मा बाँटत फोकट ।। फोकट फोकट खाृय के, मनखे होत अलाल । स्वाभिमान हा मरत हे, काला होत मलाल ।। काला होत मलाल, निठल्ला हवय जवानी । काम-बुता ना हाथ, करत शेखी शैतानी । पइसा पावय चार, अपन जांगर ला झोकत । अइसे करव उपाय, बाँट मत अब कुछु फोकट ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

मया बिना जीवन कइसे

बिना तेल के दीया-बाती, हे मुरझाय परे । बिना प्राण के काया जइसे, मुरदा नाम धरे ।। मया बिना जीवन कइसे, अपने दम्भ भरे । घाम-छाँव जीवन के जतका, सब ला मया हरे ।।

नीत-रीत दूसर बर काबर

निंद अपन आँखी मा आथे, अपन मुँह मा स्वाद । सुख ला बोहे हाँस-हाँस के, दुख ला घला लाद ।। अपने कोठी अपने होथे, आन के हर भीख । नीत-रीत दूसर बर काबर, खुदे येला सीख ।। -रमेश चौहान

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