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संदेश

कतका झन देखे हें-

परगे आदत

रहत-रहत हमला, परगे आदत, हरदम रहत गुलाम । रहिस हमर जीवन, काम-बुता सब, मुगल आंग्ल के नाम ।। बड़ अचरज लगथे, सुनत-गुनत सब, सोच आन के लाद । कहिथन अब हम सब, होगे हन गा, तन मन ले आजाद ।।

लोकतंत्र के देवता

रोजी-रोटी के प्रश्न के, मिलय न एक जवाब । भिखमंगा तो जान के, मुफत बांटथे जनाब ।। फोकट अउ ये छूट के, चलन करय सरकार । जेला देखव तेन हा, बोहावत हे लार । सिरतुन जेन गरीब हे, जानय ना कुछु एक । जेन बने धनवान हे, मजा करत हे नेक । काबर कोनो ना कहय, येला भ्रष्टाचार । जनता अउ सरकार के, लगथे एक विचार ।। हर सरकारी योजना, मंडल के रखवार । चिंता कहां गरीब के, मरजय धारे धार । फोकट बांटे छोड़ के, केवल देवय काम । काम बुता हर हाथ मा, मनखे सुखी तमाम । लोकतंत्र के देवता, माने खुद ला आन । चढ़े चढ़ावा देख के,  बने रहय अनजान ।। -रमेशचौहान

छत्तीसगढ़ी ला पोठ बनाव

भाषा अपन बिगाड़ मत, देखा- शे खी आन कहाये । देवनागरी के सबो,  बावन अक्षर घात सुहाये ।। छत्तीसगढ़ी  मा भरव,  सबो वर्ण ले शब्द बनाए । कदर बाढ़ही एखरे , तत्सम आखर घला चलाए ।। पढ़े- लिखे अब सब हवय, उच्चारण ला पोठ बनाही। दूसर भाषा संग तब, अपने भाषा हाथ मिलाही । करव मानकीकरण अब, कलमकार सब एक कहाये । पोठ करव लइका अपन, भाषा अपने पोठ धराये ।।

कभू आय कभू तो जाय

कभू आय कभू तो जाय, सुख बादर जेन कहाये। सदा रहय नहीं गा साथ, दुख जतका घाम जनाये ।। बने हवय इहां दिन रात, संघरा कहां टिक पाये । बड़े होय भले ओ रात, दिन पक्का फेर सुहाये ।।

कती खोजी

कती जाई कती पाई, खुशी के ओ ठिकाना ला । कती खोजी गँवाये ओ, हँसे के रे बहाना ला ।। फिकर संसो जिये के अब, नदागे लइकुसी बेरा । बुता खोजी हँसी खोजी, चलय कइसे नवा डेरा ।।

ये गाँव ए

ये गाँव ए भल ठाँव ए,  इंसानियत पलथे जिहां। हर राग मा अउ गीत मा, स्वर प्रेम के मिलथे इहां  ।। हे आदमी बर आदमी, धर हाथ ला सब संग मा । मनखे जियत तो हे जिहां, मिलके धरा के रंग मा । संतोष के अउ धैर्य के, ये पाठशाला  आय गा । मन शांति के तन कांति के, रुखवा जिहां लहराय गा ।। पइसा भले ना हाथ मा, जिनगी तभो धनवान हे । खेती किसानी के बुते, हर आदमी भगवान हे ।।

छोड़ शांति के खादी

घात प्रश्न तो आज खड़े हे, कोन देश ला जोरे । भार भरोसा जेखर होथे, ओही हमला टोरे ।। नेता-नेता बैरी दिखथे, आगी जेन लगाथे । सेना के जे गलती देखे, आतंकी ला भाथे ।। काला घिनहा-बने कहँव मैं, एके चट्टा-बट्टा । सत्ता धरके दिखे जोजवा, पाछू हट्टा-कट्टा ।। देश पृथ्ककारी के येही, रक्षा काबर करथे । बैरी मन के देख-रेख मा, हमरे पइसा भरथे ।। देश पृथ्ककारी हे जेने, ओला येही पोसे । दोष अपन तो देख सकय ना, दूसर भर ला कोसे ।। थांघा आवय आतंकी मन, पेड़ अलगाववादी । जड़ ले काटव अइसन रूखवा, छोड़ शांति के खादी ।।

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