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संदेश

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कतका झन देखे हें-

नवा साल के बधाई

नवा साल के आप ला, हवय बधाई खूब । नवा साल मा रात दिन, रहव खुशी मा डूब ।। दुख हा भागय तोर ले, कोसो कोसो दूर । खुशी मिलय गा रात दिन, अन्न-धन्न भरपूर ।।

नवा बछर

नवा बछर तिहार असन, बाॅटय खुशी हजार । ले लव ले लव तुम अपन, दूनों हाथ पसार ।। नवा नवा मा हे भरे, नवा खुशी के आश । छोड़ बात दुख के अपन, मन मा भर बिसवास ।। काली होगे काल के, ओखर बात बिसार । नवा बछर तिहार असन नवा बछर के आय ले, मिटही सब तकलीफ । जेन चोर बदमाश हे, बनही बने शरीफ । काम बुता जब हाथ मा, होही झारा झार । नवा बछर तिहार असन चमकत हे परकाश कस, नवा बछर हा घोर । अंधियार ला मेटही, धरे हवे अंजोर ।। मन मा धर बिसवास तै, अपने काम सवार । नवा बछर तिहार असन

पटक बैरी ला हटवारा मा

अमरबेल के नार बियार, कइसन छाये तोर डारा मा । अतका कइसे तैं निरबल होगे, नाचे ओखर इसारा मा । कुकरी  मछरी होके कइसे, फसगे ओखर चारा मा । दरूहा  कोडिहा  होके कइसे, अपन पगडी बेचे पै बारा मा । दूसर के हितवार्ती होके, भाई ला बिसारे बटवारा मा । तै मनखे हस के बइला भइसा, बंधे ओखर पछवारा मा । तै छत्तीसगढ़ीया बघवा के जाये, परे मत रह कोलिहा के पारा मा । जान पहिचान अपन आप ला, अपन मुॅह देख दरपण ढारा मा । ओखर ले तैं कमतर कहां हस, पटक बैरी ला हटवारा मा ।।

छोड़व छोड़व गौटिया

छोड़व छोड़व गौटिया, बेजाकब्जा धाक। गली खोर बन कोलकी, बस्ती राखे ढाक ।। काली के गाड़ी रवन, पयडगरी हे आज । कते करे ले आय अब, घर डेहरी सुराज ।। गाड़ी मोटर फटफटी, राखय कोने ताक । छोड़व छोड़व गौटिया चरिया परिया गांव के, नदिया नरवा झार । रोवत कहरत घात हे, बेजाकब्जा टार ।। कोन बचावय आज गा, तोर गांव के नाक । छोड़व छोड़व गौटिया चवरा राखे डेहरी, सोचे ना नुकसान । का तोरे ये मान हे, का तोरे ये शान ।। चक्कर दू आंगूर के, करे गांव ला खाक । छोड़व छोड़व गौटिया,

खनक खनक के हाथ मा

खनक खनक के हाथ मा, चूऱी बोले बोल । मोर मया के राज ला, जग मा देवय खोल ।। चूरी मोरे हाथ के, हवय तोर पहिचान । रूप सजाये मोर तो, देवय कतका मान ।। खनर खनर जब बोलथे, जियरा जाथे डोल  ।।खनक खनक के हाथ मा लाली हरियर अउ पियर, रंग रंग के रंग । सबो रंग मा तो दिखय,  केवल तोरे संग ।। तोर संग ला पाय के, हाथ बने बड़ बोल ।। खनक खनक के हाथ मा

छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता

"छत्तीसगढी मंच" फेसबु समूह मा छत्तीसगढी कविता के प्रतियोगिता "छत्तीसगढ के पागा" के नाम ले चलत हवय । रचना प्रेमी संगी मन ये लिंक मा जाके ये समूह के सदस्य बन के पाठक या प्रतिभागी के रूप साहित्य के सेवा कर सकत हें ।   https://www.facebook.com/photo.php?fbid=523005337852382&set=gm.1005180262833929&type=3

महिना आगे पूस के

महिना आगे पूस के, दिन भर लागय जाड़ । हाथ-पाव हा कापथे,  जइसे डोले झाड़ ।। हू हू मुॅह हा तो करय, जइसे सिसरी बोल । परे जाड़ जब पूस के, मुक्का होजय ढोल ।। महिना आगे पूस के, लेही मोर परान । ना कदरी ना गोदरी, ना परछी रेगान ।। कांटा न झिटी गांव मा, दिखे न कोनो खार । कहय डहत ये पूस हा, अब तो भूरी बार । जानय ना धनवान हा, कइसे होथे पूस । कांपत हम बिन चेंदरा, ओ पहिरे हे ठूस ।।

छेरछेरा

आज छेरछेरा परब, दे कोठी के धान । अन्न दान ले ना बड़े, जग मा कोनो दान । जय हो दानी तोर ओ, करे खूब तैं दान । आज छेरछेरा परब, राखे ऐखर मान । दान करे मा धन बढ़य, जइसे बाढ़े धान । देवत हम आशीष हन, बने रहव धनवान ।। पायेंन बहुत दान हम, मालिक तोर दुवार । जीयव हजार साल तुम, आशीष लव हमार ।।

सरकारी स्कूल मा

हर सरकारी स्कूल मा, एक बात हे नेक । लइका मन कुछु करय, कोनो रखे न छेक ।। थारी लोटा ठोक के, लइका खेले खेल । गुरूजी गे हे सर्वे मा, होत कहां हे मेल ।। बाल देव भव हे लिखे, सबो स्कूल मा देख । भोग लगा पूजा करव, पथरा माथा टेक ।। पढ़ई लिखई छोड़ के, ले लव कुछु भी काम । गुरूजी हा ठलहा हवय, मास्टर ओखर नाम । बात करू हे लीम कस, कोनो दय ना ध्यान । नेता अउ सरकार हा, रखे कहां हे मान ।। हमरो गुरूजी मन घला, कहां सोचथे बात । लइका हा कइसे पढ़य, मेटय कइसे रात ।। तनखा अपन बढ़ाय बर, खूब करे हड़ताल । शिक्षा सुधरय सोच के, करे कभू पड़ताल ।।

मोर जवानी

घेरी घेरी ये ओढ़नी, कइसन सरकत जाय । कोन जनी का होय हे, मोला कुछु ना भाय ।। अपने तन हा गरू लगय, रेंगव जब मैं खोर । जेला देखव तेन हा, देखय आंखी फोर ।। सुन्ना होवय जब गली, रेंगब नई सुहाय । घेरी घेरी ये ओढ़नी सगली भतली खेल हा, लइका मन के खेल । पुतरा पुतरी संग अब, मन हा करे न मेल ।। संगी साथी छूट गे, नान्हे पन बिसराय । घेरी घेरी ये ओढ़नी हिरणी कस मन खोजथे, कूद कूद के घात । कइसन के ममहाय हे, आये समझ न बात ।। मोर जवानी आज तो, कस्तूरी बन आय । घेरी घेरी ये ओढ़नी

जब ले तोला पांय हव

जब ले तोला पांय हव, मया मरम जानेंव । जस जस बेरा हा बितय, अंतस मा लानेंव ।। काल परी कस तै रहे, आज घला हस हूर । दमक रहय तब चेहरा, आज घला हे नूर ।। हाड़ मास के का रखे, आत्मा ला जानेंव । जब ले तोला पांय हव सुख के संगी सब रहिन, दुख मा तैं अकेल । छोड़े जब संसार हा, तैं हर रखे सकेल ।। मया देह ले होय ना, आज बने जानेंव ।। जब ले तोला पांय हव एक दुसर बर हम हवन, जोर सांस के डोर । तोर जीनगी मोर हे, मोर जीनगी तोर । सातो फेरा के मरम, मैं हर पहिचानेंव । जब ले तोला पांय हव

गुरूवर घासी दास के

गुरूवर घासी दास के, अंतस धर संदेश । झूठ लबारी छोड़ के, सच सच बोल ‘रमेश‘ ।। सच सच बोल ‘रमेश‘, आच सच ला ना आये । मनखे मनखे एक, बात गुरू बबा बताये । जहर-महूरा दारू, जुवा चित्ती हे फासी । अइसन चक्कर छोड़, कहे हे गुरूवर घासी ।।

मुखिया

होथे जस दाई ददा, होवय मुखिया नेक । गांव  राज्य  या देश के, मुखिया मुखिया एक । मुखिया के हर काम के, एक लक्ष्य तो होय । रहय मातहत हा बने, कोनो झन तो रोय ।। काम बुता मुखिया करय, जइसे भइसा ढोय । अपने घर परिवार बर, सुख के बीजा बोय ।। घुरवा कस मुखिया बनय, सहय ओ सबो झेल । फेके डारे चीज के, करय कदर अउ मेल ।। सोच समझ मुखिया बनव, गांव होय के देश । मुखिया मुॅंह कस होत हे, जेन मेटथे क्लेश ।।

मुखिया

ये मुखिया के नाम मा, मुखिया के सब भाव । मुॅह होथे जस देह मा, मुखिया ओही ठांव ।। मुखिया ओही ठांव, जिहां तो सबो थिराये । कुकुर बिलइ अउ गाय, सबो ला एके भाये ।। सुन लव कहे ‘रमेश‘, रहय मत कोनो दुखिया । जर होथे जस पेड़, होय संगी ये मुखिया ।।

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन भात-बासी, दूध-दही सब खाथे-पीथे मुॅह हा, सबो अंग मा एक बराबर, ताकत जगाथे मुॅह हा। देह मा मुॅह हा होथे जइसन.... देह मा मुॅह हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन डारा-पाना, फर-फूलवा सब रूखवा के हरिआये खातू-माटी, पानी-पल्लो, जब बने जर मा पाये रूखवा के जर हा होथे जइसन.... रूखवा के जर हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन बघवा-भालू, साप-नेवला पानी पिये एक घाट मा गरीब-गुरबा, गौटिया-बड़हर एक लगे हे राम राज मा राजा मा राम हा होय हे जइसन... राजा मा राम हा होय हे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन

आतंकी के धरम कहां होथे

मुक्तक बहर 222 212 1222 आतंकी के धरम कहां होथे । बहिया मन के करम कहां होथे ।। गोली मारव कुकर ल जब चाबय अइसन बेरा शरम कहां होथे ।। -रमेश चौहान

मनखे के बांटा

कांटा मा पांव परय के पांव मा परय कांटा चाहे तो डांट परय के गाल मा परय चांटा पथरा लोहा म करेजा के धधक कहां होथे पीरा अउ आंसु परय मनखे के रात दिन बांटा ।

अइसन शिक्षा नीति हे

अइसन शिक्षा नीति हे, नम्बर के सब खेल । नम्बर जादा लाय के, झेले लइका झेल ।। पढ़े लिखे ना ज्ञान बर, नम्बर के हे होड़ । अइसन सोच समाज के, बचपन लेवय तोड़ ।। पढ़े लिखे के बोझ मा, लदकाये हे जवान । पढ़े लिखे के नाम मा, कतका देवय जान ।। अव्वल आय के फेर मा, झेल सकय ना झेल । पढ़त पढ़त तो कई झन, करय मउत ले मेल ।। पढईया लइका सुनव, करहू मत तुम भूल । नम्बर  के ये फेर ला, देहूं झन तुम तूल ।।

दूसर के दरद मा रोना रोना होथे

आगी मा तिपे ले सोना सोना होथे । मन के सब मइल ला धोना धोना होथे । अपने के दरद मा जम्मा मनखे रोथे । दूसर के दरद मा रोना रोना होथे ।

अपन ददा के आज तै

तोरे सेती जेन हा, सहे रात दिन घाम । अपन ददा के आज तै, रखे डोकरा नाम । जर मा पानी छींच के, तोला झाड़ बनाय । पथरा मा मूरत असन, तोला जेन सजाय ।। आज ओखरे जीनगी, काबर हवे हराम । अपन ददा के आज तै... बर पीपर के छांव बन, देखे घर परिवार । खून छींच के आज तक, रखे जेन सम्हार । काम बुता ले ओखरे, सकला गे हे चाम ।। अपन ददा के आज तै... घूम घूम के खोज ले, ददे हे भगवान । ब्रम्हा कस ओ रचे, पाले बिष्णु समान ।। अइसन पालन हार के, कर सेवा के काम । अपन ददा के आज तै...

बैरी ला हम मारबो

फूॅक ले उड़ा जई अइसन धुररा नो हन । जाड़ मा जड़ा जई अइसन मुररा नो हन ।। हाथ मा कफन धरे बैरी ला हम मारबो । मौत ले डरा जई अइसन सुररा नो हन ।।

पढई ले का फायदा

पढई ले का फायदा, अउ का हे नुकसान । तउल तराजू देख ले, अनपढ अउ विद्वान ।। कुवर गोफरी कस कुवर, पढ़ के मनखे होय । आखर आखर बूॅद ले, अपन केरवछ धोय । विद्या ले आथे विनय, विनय बनाथे योग्य । योग्य बने धन आय हे, धन ले धरमी भोग्य । सही गलत के फैसला, करथे सोच विचार । दुनिया-दारी जान के, करथे सद् व्यवहार ।। शिक्षा के ये लक्ष्य हा, लगथे आज गवाय । पाये बर तो नौकरी, लोगन सबो पढ़ाय ।। जेला देखव तेन हा, कहय एक ठन बात । पढ़े लिखे मा काम के, मिलथे भल सौगात ।। काबर कोनो ना कहय, पाये बर संस्कार । नीत-रीत ला जान लय, लइका पढ़े हमार । पढ़े लिखे मनखे इहां, बिसराये संस्कार । अंग्रेजी के चोचला, चारो कोती झार । हिरदय मा धर हाथ तै, एक बार तो सोच । चलन घूस के देश मा, कइसे आये नोच । कोन अंगूठा छाप हा, काला दे हे घूस । पढ़े-लिखे बाबू मनन, पढ-लिख ले हे चूस । अपने दाई अउ ददा, करे निकाला कोन । पढ़े-लिखे ले पूछ ले, कइसे साधे मोन ।। खेत खार ला बेच के, जेला ददा पढ़ाय । साहब होके बेटवा, ओही ला भूलाय ।। पढ़े लिखे के चोचला, अपन रौब देखाय । पार्टी-सार्टी ओ करय, दारू-मंद बोहाय ।। पढ़े ल

धनी मया हा तोर

तन मन मा तो छाय हे, धनी मया हा तोर । मोर हाल ला देख के, मचे गांव मा शोर ।। महर महर करथे मया, चारो कोती छाय  । मोरे मन के हाल हा, छूपय नही छुपाय।। तोर मया बिन रात हे, होत नई हे भोर । तन मन मा ... आंखी खोजे रात दिन, चारो डहर निहार । मन फंसे आठो पहर, तोरे करत बिचार ।। निंद भूख लागय नही, आथे सपना घोर । तन मन मा ... ये दुनिया के बंधना, लागे हे जंजीर । तोर बिना बेकार हे, जिनगी मोरे हीर ।। तोर मया के छांव बर, रेंगव कोरे कोर । तन मन मा ...

दरुहा

का निरधन धनवान का, दारू पिये सब ठाठ । का कुरिया अउ का महल, का रद्दा अउ बाट ।। का सुख अउ दुख के बखत, का दिन अउ का रात । जेती पावव देख लव, बइठे चार जमात ।। दारु पिये ले आदमी, दरुहा नई कहाय । दारु पिये इंसान ला, तब दरुहा बन जाय ।। दरुहा होथे कुकुर अस, लहके जीभ लमाय । दारु पाय बर जेन हा, पूछी अपन हलाय ।। दारु पिये ओ कोलिहा, बघवा कस नरिआय । बघवा ले बधिया बनय, लद्दी मा धस जाय ।।

बिना काम के आदमी

लात परे जब पीठ मा, पीरा कमे जनाय । लात पेट मा जब परय, पीरा सहे न जाय ।। काम बुता ले हे बने, पूरा घर परिवार । काम छुटे मा हे लगे, अपने तन हा भार ।। लगे काम ला कोखरो, काबर तैं छोड़ाय । मारे बर तैं मार ले, अब कोने जीआय ।। काम बुता के नाम हा, जीवन इहां कहाय । बिना काम के आदमी, जीयत मा मर जाय ।।

अपन भाखा

बासी मा मही ला घोर के तो देख । रोटी ला दूध मा बोर के तो देख । पावन हो जाही ना कंठ हा तो तोरे, भाखा ला अपन तैं बोल के तो देख ।।

माटी हमरे गांव के...

माटी हमरे गांव के, महर महर ममहाय । चंदन ले आगर लगय, माथा देव चढ़ाय ।। दाई के कोरा असन, माटी हवय महान । अपन गांव के ये मया, मिलय न कहूं जहान उपजे बाढे हन जिहां, धुररा देह लगाय । माटी हमरे गांव के...... खेेले कूदे हन जिहां, आनी बानी खेल । संगी संगी हम रहन, करके सबले मेल ।। नरवा तरिया के मया, हमला रहय लुभाय ।। माटी हमरे गांव के...... चांव चांव चिरई करय, अपने पाखी खोल । हरियर हरियर खार मा, मनुवा नाचय डोल ।। अमराई बोइर झरी, अपने तीर बलाय।। माटी हमरे गांव के...... कहां मोर लइका हवय, कइसन ओखर हाल । कइसे ओ बिसराय हे, मोर हाल बेहाल ।। गांव तोर सुरता करय, आंखी आंसु ढराय । माटी हमरे गांव के...

गुटका के अइसन चलन

नवा जमाना के चलन, गुटखा पाउच देख। गली सड़क मा थूक ले, चित्र गढ़े अनलेख ।। चगल चगल के रात दिन, छेरी कस पगुराय । गुटका पाउच खाय के, गली खोर रंगाय ।। पथरा रंगे थूक ले,घसरे मा ना जाय । रंग करेजा मा भरे, अइसन गुटका भाय ।। पान सुपारी हे कहां, गुटका सबे लमाय । फेषन के ये फेर मा, सरहा सरहा खाय ।। का का के धुररा हवय, काला कोन बताय । गुटका के अइसन चलन, सबो बात बिसराय ।।

सहिष्णुता

सहिष्णुता काला कहिथे, पूछय लइका आज । कोन जनी गा बेटवा, आवत मोला लाज ।। प्रश्न उठे ना आज तक, का होगे अब बात । हीरो पिक्चर के कहे, समझ नई तो आत ।। टी.वी. भूकय रात दिन, काखर पइसा पाय । सहिष्णुता आय का, कोनो नई बताय ।। मोला लगथे ये हवे, जइसे हरही गाय । हरियर हरियर खेत मा, मनमाफिक तो जाय । मोर सोच मा बेटवा, सहिष्णुता हे सोच । सोच सोच ले सोच के, माथा कलगी खोच ।। सागर मा नदिया भरय, घर कुरिया मा गांव । सब ला तो एके लगय, बर पीपर के छांव ।। धरती पानी अउ हवा, सहिष्णुता के मूर्ति । जीव जीव हर जीव के, करथे इच्छा पूर्ति ।।

कचरा करे सवाल

काबर पैदा होय हॅव, कचरा करे सवाल । फेके डारे बर घला, माचे हवय बवाल ।। घर ले फेके अंगना, लगे अंगना खोर । खोर खोर मा हे लगे, कतका कुढ़वा मोर ।। जतर कतर तो घात हे, गांव शहर के हाल । काबर पैदा होय हॅव.... नाक कान ला मूंद के, जाथें मोला छोड़ । अइसन अइसन सोच के, कइसे होही तोड़ ।। कोन खास अउ आम हे, सबके एके हाल । काबर पैदा होय हॅव... आये फेषन हे नवा, नेता ले शुरूवात । जब तक चमकय केमरा, चमचा संग बरात ।। झउहा रापा ला धरे, चले अपन ओ चाल । काबर पैदा होय हॅव.... ऐमा का परहेज हे, होय मोर उद्धार । साफ सफाई हे करे, भले दिखावा झार ।। संग होय सबके कहूं, कर लव मोरो ख्याल । काबर पैदा होय हॅव......

मइल हाथ के होत हे

मइल हाथ के होत हे, तोर चुने सरकार । अपन आप ला देख ले, फेर बोल ललकार ।। देश राज हा तोर हे, खुद ला मालिक जान । लोकतंत्र के राज मा, चलय तोर फरमान ।। अपन आप ला भूल के, गे नेता दरबार । लालच मा मतदान के, भोग सजा सौ बार ।। प्रांतवाद के बात हा, छाये काबर देश । काम आय हे वोट बर, मिटे कहां हे क्लेश ।। तोर रीति संस्कार हा, हे गा तोरे हाथ । अपने ला बिसराय के, ठोकत हस अब माथ ।।

हे गुरूनानक देव के

हे गुरूनानक देव के, आज परब परकास । अपन हाथ ला जोर के, करत हवंव अरदास । ओ तलवंडी गांव मा, बन आये भगवान । दाई तृप्ता हा रहिस, ददा रहिस कल्याण । सुघ्घर पावन दिन रहिस,कातिक पुन्नी मास । हे गुरूनानक देव के... रहिस नानपन ले अलग, जगत मोह ले दूर । अपने मा खोये रहय, रहय अपन मा चूर ।। पंडित मौली ले घला, करय प्रष्न ओ खास । हे गुरूनानक देव के... गुरू नानक के काम मा, चमत्कार ला देख । जेने जानय तेन हा, लेवय माथा टेक ।। करे फेर उपदेष हे, देत अपन आभास । हे गुरूनानक देव के... गुरूनानक हा हे कहे, ढोंगी दुनिया देख । मनखे मनखे एक हे, देवता घला एक ।। सिक्ख पंथ के नेह ला, रचे हवय जनवास । हे गुरूनानक देव के...

हाइकू मोर देश के

जापानी विधा । हाइकू, तांका, चोका । देश मा छाये ।। कोन हे इहां छंद के पूछईया । कोन बताये । ये मोर देश मोर अपने आय घात सुहाये । देश के माटी पुराना परिपाटी आज नंदाये । नवा लहर मचाये हे कहर जुन्ना ला खाये । कोन देखे हे मौसम बदले मा आने धरती । कोनो पेेड मा नवा पत्ती के आये नवा जर हे । टुकना तोपे कोन डोकरा राखे काला ये भाते ।

खोजव खोजव चोर ला......

खोजव खोजव चोर ला, कोने मेर लुकाय । करके आघू आन ला, कइसे के भरमाय ।। दिखथे हमला मोहरा, हवय शकुनि के चाल । पै बारा ला देख के, होगे बारा हाल ।। काट मोहरा फेकथन, लेथे नवा बनाय । खोजव खोजव चोर ला...... कट्टरता के देह के, आतंकवाद नाम । जात धरम जानय नही, मारे ले हे काम ।। सोचे के तो बात हे, कट्टर कोन बनाय । खोजव खोजव चोर ला... जर मा पानी पाय के, बिरवा बनथे झाड़ । काटव जर ला खोज के, बाते लेवव ताड़ ।। मारव अइसन सोच ला, कट्टर जेन बनाय । खोजव खोजव चोर ला....

चार आंतकी के मारे ले

आल्‍हा छंद मनखे होके काबर मनखे, मनखे ला अब मार गिराय । जेती देखव तेती बैरी, मार काट के लाश बिछाय ।। मनखे होके पथरा लागे, अपन करेजा बेचे आय । जीयत जागत रोबोट बने, आका के ओ हुकुम बजाय ।। मनखे होके काबर मनखे, मनखे ला अब मार गिराय । जेती देखव तेती बैरी, मार काट के लाश बिछाय ।। मनखे होके पथरा लागे, अपन करेजा बेचे खाय । जीयत-जागत जींद बने ओ, आका के सब हुकुम बजाय ।। ओखर मन का सोच भरे हे, अपनो जीवन देत गवाय । काबर बाचा माने ओ हा, हमला तो समझ नई आय ।। चार आदमी मिल के कइसे, दुनिया भर ला नाच नचाय । लगथे कोनो तो परदा हे, जेखर पाछू बहुत लुकाय ।। रसद कहां ले पाथे ओमन, बइठे बइठे जउने खाय । पाथे बारूद बम्म कहां ले, अतका नोट कहां ले आय ।। हमर सुपारी देके कोने, घर बइठे-बइठे मुस्काय । खोजव संगी अइसन बैरी, आतंकी तो जउन बनाय । चार आतंकी के मारे ले, आतंकी तो नई सिराय । जेन सोच ले आतंकी हे, तेन सोच कइसे मा जाय ।। कब तक डारा काटत रहिबो, जर ला अब खन कोड़ हटाव । नाम रहय मत ओखर जग मा, अइसन कोनो काम बनाव ।। -रमेश चौहान

राउत दोहा बर दोहा-

तुलसी चौरा अंगना, पीपर तरिया पार । लहर लहर खेती करय, अइसन गांव हमार ।। गोबर खातू डार ले, खेती होही पोठ । लइका बच्चा मन घला, करही तोरे गोठ ।। गउचर परिया छोड़ दे, खड़े रहन दे पेड़ । चारा चरही ससन भर, गाय पठरू अउ भेड़ ।। गली खोर अउ अंगना, राखव लीप बहार । रहिही चंगा देह हा, होय नही बीमार  ।। मोटर गाड़ी के धुॅंवा, करय हाल बेहाल । रूख राई मन हे कहां, जंगल हे बदहाल ।। -रमेश चौहान

देवारी दोहा- देवारी के आड़ मा

दोहा चिट-पट  दूनों संग मा, सिक्का के दू छोर । देवारी के आड़ मा, दिखे जुआ के जोर ।। डर हे छुछवा होय के, मनखे तन ला पाय । लक्ष्मी ला परघाय के, पइसा हार गवाय ।। कोन नई हे बेवड़ा, जेती देख बिजार। सुख दुख ह बहाना हवय, रोज लगे बाजार ।। कहत सुनत तो हे सबो, माने कोने बात । सबो बात खुद जानथे, करय तभो खुद घात ।। -रमेश चौहान

अइसे दीया बार

अपने मन के कोनहा, अइसे दीया बार । रिगबिग रिगबिग तो दिखय, तोरे अवगुण झार ।। अपन कमी ला जान के, काही करव उपाय । बाचय मत एको अकन, मन मा तोरे समाय ।। देवारी दीया हाथ धर, अवगुण ला तैं मार । अपने मन के कोनहा... हमरे सुधरे मा जगत, सुधरय पक्का जान । छोड़ गरब गुमान अपन, छोड़ अपन अभिमान ।। अपन मया के बंधना, बांधव जी संसार ।। अपने मन के कोनहा... तोरे कस तो आन हे, सुघ्घर के इंसान । ना कोनो छोटे बड़े, ना कोनो हैवान ।। हवय भुले भटके भले, ओला तैं सम्हार । अपने मन के कोनहा... जाति पाति अउ पंथ के, कर देबो अब अंत । मनखे  हा मनखे रहय, मन से होबो संत ।। राम राज के कल्पना, करबो हम साकार । अपने मन के कोनहा...

जय जय हे धनवंतरी

जय जय हे धनवंतरी, दव हमला वरदान । स्वस्थ रहय तन मन हमर, स्वस्थ रहय सम्मान ।। धनतेरस के ये परब, आय जनम दिन तोर । हाथ जोड़ परनाम हे, विनती सुन ले मोर ।। भौतिकता के फेर मा, हम तोला बिसराय । जड़ी बुटी ला छोड़ के, धन के परब बनाय ।। हवय घोर गलती हमर, धरत हवन हम कान । आसो ले अब हर बरस, करबो तोरे मान ।। साफ सफाई राखबो, हम अपने घर द्वार । रखिहंव हमरे ध्यान तुम, होई मत बीमार ।।

दीया के दरद

माटी दीया हा कहय, काखर मेरा जांव । कोनो फटकय ना इहां, काला दरद बतांव ।   खाथें मोरे अन्न ला, सोथे मोरे छांव । मोरे कोरा छोड़ के, कहां करे हे ठांव ।। दीया बाती हा हवय, जस पानी मा मीन । रिगबिग ले बिजली बरे, फुटे फटाका चीन ।। पढ़े लिखे लइका इहां, बइठे आलू छील । काम करय ना चीन कस, देखत रहिथे झील ।। दर दर मांगय नौकरी, कागज ला देखाय । काम बुता जानय नही, कोने हुनर बताय ।। स्वाभिमान हा कति सुते, देश प्रेम बिसराय । माटी दीया बार लव, अपने मान जगाय ।।

देवारी

चिरई चिरगुन कस चहकय लइका । पाके आमा कस गमकय लइका । आगे    आगे      देवारी       आगे, कहि के बिजली कस दमकय लइका । खोर अंगना मा रंगोली पुरय लइका । ले सखी सहेली देखे बर जुरय लइका । रंग रंग के हे रंगोली सुघर अतका, देख फूल कस भवरा बन घुरय लइका ।। दीया म बाती ला बोरय लइका । बाती म आगी ला जोरय लइका ।। देवारी के अंजोरे बगरावय, देखव फटाका ला फोरय लइका । खोरे मा जब सिगबिग सिगबिग आगे लइका । चंदैनी कस रिगबिग रिगबिग छागे लइका । ऐती ओती चारो कोती कूदत नाचत, मुचमुच हासत सौंहे देवारी लागे लइका ।

दू ठन मुक्तक

1 गजल शेर के घला नियम होथे । लिखे बोले मा जिहां संयम होथे ।। रदिफ काफिया बिना जाने कतको गजलकार के इहां नजम होथे । 2 मन के पीरा हरय कोन । ठउरे ओखर भरय कोन ।। वो हर चलदिस जगत छोड़ । रहि के जींदा मरय कोन ।।

चुप हे ता सब कुछ बने

चुप हे ता सब कुछ बने, मुॅह खोलत बेकार । मनखे हिन्दूस्थान के, कबतक रहय गवार ।। सहत रहिन ता सब बने, जागे मा हे बेकार । का काठा अउ का पसर, मुठ्ठी बोलय झार ।। रहय दूध मा जल मिले, कहां हवय परहेज । पानी पानी दूध मा, दूध रहय निस्तेज ।। ओखर मैना पोसवा, बोलय ओखर गोठ । तोर खीर पातर हवय, ओखर नून ह पोठ ।। करिया कउॅंवा कोइली, दिखथे दूनो एक । बिन बोले गा ऊंखरे, काला कहि हम नेक ।।

आगे देवारी

आगे देवारी, हमर दुवारी, कर तइयारी, जोश भरे । जब सॉफ-सफाई, पाथे दाई, सॅउहे आथे, खुशी धरे ।। ये यचरा-कचरा, घुरवा डबरा, फेकव संगी, तुमन बने । घर-कुरिया पोतव, सुग्‍घर सोचव,  दाई आी, बने ठने।।

मँहगाई म देवारी कइसेे मनावँव

कहां कहां जावंव, कइसे लावंव, दीया बाती, तेल भरे । देख मँहगाई, कइसन भाई, जियरा छाती, मोर जरे ।। आसो देवारी, मोरे दुवारी, कइसे आही, सोच भरे । लइका का जानय, कइसे मानय, मँइगाई मा, ददा मरे ।।

तोर मया ला पाय के

नायक- अपने अचरा छोर मा, बांध मया के डोर। लहर लहर जब ये करय, धड़कन जागय मोर ।। नायिका- तोर मया के झूलना, झूलॅंव अंगना खोर । सपना आंखी हे बसे, देबे झन तैं टोर ।। नायक- फूल असन हाॅसी हवय, कोयल बानी गोठ । चंदा बानी मुॅह हवय, मया हवे बड़ पोठ ।। दरस परय बर तोर मैं, तांकव बने चकोर । अपने अचरा छोर मा... नायिका- तोर देह के छांव कस, रेंगॅंव संगे संग । छाय मया के जब घटा, दूनों एके रंग ।। मोरे तन मन मा चढ़े, रंग मया के तोर ।। सपना आंखी हे बसे... नायक- तोर मोर सपना हवय, जस नदिया अउ कोर । छोर बिना नदिया कहां, नदिया बिन ना छोर ।। नायिका लहर लहर अचरा करय, तोर बांह के छोर । तोर मया ला पाय के, होगे मोरे भोर ।।

छत्तीसगढ़ महतारी के गोहार

करय, छत्तीसगढ़ महतारी, आंसू छलकावत गोहार । मोरे लइका मन हा काबर, कइसन लगथव गा बीमार ।। जब्बर छाती तो तोर रहिस, सह लेत रहे घन के मार। घी दूध छकत ले पी-पी के, बासी चटनी खाये झार ।। ओगराय पथरा ले पानी, सुरूज संग तै करे दुलार । रहय कइसनो बोझा भारी, अलगावस जस नार बियार ।। करे कोखरो भले बिगारी, हाथ अपन ना कभू लमाय जांगर पेरे अपन पेट बर, फोकट मा कभू नई खाय । मोरे तो सेवा कर करके, नाचस कूदस मन बहलास । अइसन कोन बिपत आगे, काबर मोला नई बतास ।। मोर धरोहर काबर छोड़े, छोड़े काबर तैं पहिचान । बोरे बासी बट्टी रोटी, दार भात के संग अथान ।। तरिया नदिया पाटे काबर, पाटे काबर तैं खलिहान । हाथ धरे तैं घूमत रहिबे, आही कइसे नवा बिहान ।। काबर दिन भर छुमरत रहिथस, दारू मंद के चक्कर आय । काम बुता ला छोड़-छाड़ के, दूसर पाछू दूम हलाय ।। काल गांव के गौटिया रहे, गरीबहा काबर आज कहाय । तोर दुवारी मा लिखे हवे, दू रूपया के चाउर खाय । खेत खार तो ओतके हवय, फसल घला तै जादा पाय । काय लचारी अइसे आगे, गरीबहा के बांटा खाय ।। गरीबहा बेटा काबर तैं, धुररा माटी ला डरराय । मोरे कोरा खेले खाये, अब काबर

जबर गोहार लगाबो

अपने ला बिसराय, नशा मा जइसे माते । अपन गांव ला छोड़, शहर ला वो तो भाते ।। नषा ओखरे तोड़, चलव झकझोर जगाबो । बनय गांव हा नेक, जबर गोहार लगाबो ।। जागव संगी मोर, पहाती बेरा आगे । जाके थोकिन देख, खेत मा आगी लागे । हरहा हरही झार, खेत ले मार भगाबो । बाचय हमर धान, जबर गोहार लगाबो ।। दोसा इडली छोड़, फरा चैसेला खाबो । पाप सांग अब छोड़, ददरिया करमा गाबो ।। छत्तीसगढ़ीया आन, जगत ला हमन बताबो । अपन देखावत शान, जबर गोहार लगाबो ।।

मानय पति ला प्राण कस....

सती व्रती के देश मा, नारी हमर महान । मानय पति ला प्राण कस, अपने सरबस जान । भादो मा तीजा रहय, कातिक करवा चौथ । होय निरोगी पति हमर, जीत सकय ओ मौत ।। मया करेजा कस करय, बनय मया के खान । मानय पति ला प्राण कस.... ध्यान रखय हर बात के, अपने प्राण लगाय । छोटे बड़े काम मा, अपने हाथ बटाय । घर ला मंदिर ओ करय, गढ़े मया पकवान । मानय पति ला प्राण कस...... पढ़े लिखे के का अरथ, छोड़ दैइ संस्कार । रूढि़वादी सब मान के, टोर दैइ परिवार ।। श्रद्धा अउ विश्वास ले, मिले सबो अरमान । मानय पति ला प्राण कस....

दामाखेड़ा धाम मा...

दामाखेड़ा धाम मा, हे साहेब कबीर । ज्ञानी ध्यानी मन जिहां, बइठे बने फकीर ।। सद्गुरू के वरदान ले, पाये ब्यालिस वंश । पंथ हुजुर साहेब मा, हे सद्गुरू के अंश ।। सत्यनाम साहेब हा, तोड़य जग जंजीर । दामाखेड़ा धाम मा... जानव अपने रूप ला, परे देह ले ठाढ़ । सत्यनाम साहेब वो, बात बने तैं काढ़ ।। बात धरव सब ध्यान से, देह नही जागीर । दामाखेड़ा धाम मा... मीठा अउ मीठास ला, सरगुन निरगुन मान । कोने काखर ले अलग, ध्यान लगा के जान ।। मनखे के घट घट बसय, सत्यनाम बलबीर । दामाखेड़ा धाम मा..

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