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कतका झन देखे हें-

साल नवा

नवा सोच के नवा साल के बधाई (दुर्मिल सवैया) मनखे मनखे मन खोजत हे,  दिन रात खुशी अपने मन के । कुछु कारण आवय तो अइसे, दुख मेटय जेन ह ये तन के । सब झंझट छोड़ मनावव गा, मिलके  कुछु कांहि तिहार नवा । मन मा भर के सुख के सपना,  सब कोइ मनावव साल नवा ।। -रमेश चौहान

सबला देवव संगी काम

कोने ढिंढोरा पिटत हवय, जात पात हा होगे एक । हमर हमर चिल्लावत हावे, कट्टर होके मनखे नेक ।। एक लाभ बर जात बताये, दूसर बर ओ जात लुकाय । बिन पेंदी के लोटा जइसे, ढुलमूल ढुलमुल ढुलगत जाय ।। दू धारी तलवार धरे हे, हमर देश के हर सरकार । जात पात छोड़व कहि कहि के, खुद राखे हे छांट निमार ।। खाना-पीना एके होगे, टूरा-टूरी घला ह एक । काबर ठाड़े हावे भिथिया, जात-पात के अबले झेक । सबले आघू जेन खड़े हे, कइसे पिछड़ा नाम धराय । सब ला जेन दबावत हावे, काबर आजे दलित कहाय ।। जे पाछू मा दबे परे हे, हर मनखे ला रखव सरेख । मनखे मनखे एके होथे, जात पात ला तैं झन देख ।। काम -धाम जेखर मेरा हे, जग मा होथे ओखर नाम । जेन हवे जरूरत के मनखे,  सबला देवव संगी काम ।।

तोर गुस्सा

तोर गुस्सा तोर आगी, करय तोला खाक । तोर मन हा बरत रहिही, देह होही राख ।। सोच संगी फायदा का, आन के अउ तोर । हाथ दूनो रोज उलचव,  मया मन मा जोर ।। -रमेश चौहान

मया के सुरता

उत्ती के बेरा जइसे सुरता तोरे जागे हे मन के पसरे बादर म सोना कस चमकत हे मोरे काया के धरती म अंग-अंग चहकत हे दरस-परस के सपना मा डेना-पांखी लागे हे सुरता के खरे मझनिया देह लकलक ले तिपे हे अंतस के धीर अटावत मया तोरे लिपे हे अंग-अंग म अगन लगे काया म मन छागे हे तोर हंसी के पुरवाही सुरता म जब बोहाय आँखी के बोली बतरस संझा जइसे जनाय आँखी म आँखी के समाये आँखी म रतिहा आगे हे

सुरूज के किरण संग मन के रेस लगे हे

सुरूज के किरण संग मन के रेस लगे हे छिन मा तोला छिन मा मासा नाना रूप धरे हे काया पिंजरा के मैना हा पिंजरा म कहां परे हे करिया गोरिया सब ला मन बैरी हा ठगे हे सरग-नरक ल छिन मा लमरय सुते-सुते खटिया मा झरर-झरर बरय बुतावय जइसे भूरी रहेटिया मा माया के धुन्धरा म लगथे मन आत्मा हा सगे हे मन के जीते जीत हे हारही कइसे मन ह रात सुरूज दिखय नही हरहिंछा घूमय मन ह ‘मैं‘ जानय न अंतर मन म अइसन पगे हे

बिहनिया के राम-राम

आज के बिहनिया सुग्घर, कहत हंव जय राम । बने तन मन रहय तोरे, बने तोरे काम । मया तोला पठोवत हंव, अपन गोठ म घोर । मया मोला घला चाही,  संगवारी तोर ।

हमर देश कइसन

हमर देश कइसन, सागर जइसन, सबो धरम मिलय जिहां । सुरूज असन बनके, मनखे तन के, गुण-अवगुण लिलय इहां । पर्वत कस ठाढ़े, जगह म माढ़े, गर्रा पानी सहिके । आक्रमणकारी, हमर दुवारी, रहिगे हमरे रहिके ।।

गाँव के हवा

रूसे धतुरा के रस गाँव के हवा म घुरे हे ओखर माथा फूट गे बेजाकब्जा के चक्कर मा येखर खेत-खार बेचागे दूसर के टक्कर मा एक-दूसर ल देख-देख अपने अपन म चुरे हे एको रेंगान पैठा मा कुकुर तक नई बइठय बिलई ल देख-देख मुसवा कइसन अइठय पैठा रेंगान सबके अपने कुरिया म बुड़े हे गाँव के पंच परमेश्वर कोंदा-बवुरा भैरा होगे राजनीति के रंग चढ़े ले रूख-राई ह घला भोगे न्याय हे कथा-कहिनी हकिकत म कहां फुरे हे

//छत्तीसगढ़ी माहिया//

तोर मया ला पाके मोर करेजा मा धड़कन  फेरे जागे तोर बिना रे जोही सुन्ना हे अँगना जिनगी के का होही देत मिले बर किरया मन मा तैं बइठे तैं हस कहां दूरिहा जिनगी के हर दुख मा ये मन ह थिराथे तोर मया के रूख मा सपना देखय आँखी तीर म मन मोरे जावंव खोले पाँखी

जब काल ह हाथ म बाण धरे

दुर्मिल सवैया जब काल ह हाथ म बाण धरे, त जवान सियान कहां गुनथे । झन झूमव शान गुमान म रे, सब राग म ओ अपने सुनथे ।। करलै कतको झगरा लड़ई, चिटको कुछु काम कहां बनथे । मन मूरख सोच भला अब तैं, फँस काल म कोन भला बचथे ।

अब तो हाथ हे तोरे

लिमवा कर या कर दे अमुवा अब तो हाथ हे तोरे मोर तन तमुरा, तैं तार तमुरा के करेजा मा धरे हंव मया‘, फर धतुरा के अपने नाम ल जपत रहिथव राधा-श्याम ला घोरे मोर मन के आशा विश्वास तोर मन के अमरबेल होगे पीयर-पीयर मोर मन अउ पीयर-पीयर मोर तन होगे मोर मया के आगी दधकत हे तोर मया ला जोरे तोर बहिया लहरावत हे जस नदिया के लहरा मछरी कस इतरावत हंव मैं, तोर मया के दहरा तोर देह के छाँव बन के मैं रेंगंव कोरे-कोरे

//घर-घर के दीया बन जाबे//

श्री हरिवंशराय बच्चन के 1955 में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘प्रणय पत्रिका‘ में प्रकाशित कविता ‘मेरे अंतर की ज्वाला तुम घर-घर दीप शिखा बन जाओ‘ का छत्तीसगढ़ी अनुवाद- //घर-घर के दीया बन जाबे// मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे । मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे ।। सुरूज करेजा मा अंगार धरे सात रंग बरसाथे धरती म । समुन्दर नुनछुर पानी पी के अमरित बरसाथे धरती म ।। घाव छाती म धरती सहिके महर-महर ममहाथे फूल म.... अपन जात धरम मरजाद, रे मन दुख मा भुला झन जाबे । मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे ।। पुण्य हा जमा होथे जब आगी करेजा मा लगथे । येखर मरम जाने ओही जेखर काया ये सुलगथे ।। अंतस भरे रखथे जेन हा बनथे राख-धुंआ कचरा ... बाहिर निकल नाचथे-गाथे, ताव सकेल परकाश बन जाबे । मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे ।। अनुवादक-रमेश चौहान -------------------------- मूल रचना- ‘मेरे अंतर की ज्वाला तुम घर-घर दीप शिखा बन जाओ‘

रद्दा जोहत हे तोरे

शोभान-सिंहिका गाड़ी बने चलावव गा, चारो डहर देख । डेरी बाजू रहे रहव, छोड़व मीन-मेख ।। दारु मंद पीयव मत तुम, हेंडिल धरे हाथ । ओवरटेक करव मत गा, तुम कोखरो साथ ।। जीवन अनमोल हे, येखर समझ मोल । हाथ-पाँव तब सड़क थरव, मन मा नाप-तोल । फिरना हे अपने घर मा, चारो खूट घूम । रद्दा जोहत हे तोरे, लइका करत धूम । -रमेश चौहान

सड़क पैयडगरी दुनो (नवगीत)

सड़क पैयडगरी दुनो गोठ करत हें आज लाखों मोटर-गाड़ी मनखे आके मोर दुवारी सुनव पैयडगरी, करत हवँय दिन भर तोरे चारी सड़क मुछा मा ताव दे करत हवय बड़ नाज मुच-मुच मुस्काय पैयडगरी सुन-सुन गोठ लमेरा आँखी रहिके अंधरा हवय बनके तोरे चेरा (चेरा-चेला) मनखे-मनखे के मुड़ म कोन गिराथे गाज मोर दोष कहां हवय येमा अपने अपन म जाथें आघू-पाछू देखय नहि अउ आँखी मूंद झपाथें मखमल के गद्दा धरे डारे हंव मैं साज करिया हे रूप-रंग तोरे करिया धुँआ पियाथस चिर-चिर मनखे के तैं छाती अपन ल बने बताथस कहय हवा पानी सबो आय न तोला लाज पटर-पटर करत हवस तैं हा अपन ल नई बताये रेंगा-रेंगा के मनखे ला तैं हा बहुत थकाये दर्रा भरका के फुटे काखर करे लिहाज महर-महर पुरवाही धरके अपन संग रेंगाथंव देह-पान बने रहय उन्खर अइसन मन सिरजाथंव हाथ-गोड़ मनखे धरे करंय थोरको काज

बिना मौत के मौत हा

बिना मौत के मौत हा करथे समधी भेट गोल सुरूज के चक्कर काटत हवय ब्याकुल धरती चन्दा चक्कर काटत हावे कहां हवय गा झरती चक्कर खावय जीव हा येखर फसे चपेट मांजे धोय म धोवावय नहि भड़वा बरतन करिया नवा-नवा चेंदरा आज के दूसर दिन बर फरिया घानी के बइला हमन कहां भरे हे पेट कभू आतंकी बैरी मारय कभू रेलगाड़ी हा कभू फीस अस्पताल के अउ कभू डहे ताड़ी हा काखर ले हम का कही बंद पड़े हे नेट

चलन काल के जुन्ना होगे

कांव-कांव कउंवा करे, अँगना आही कोन छोड़ अलाली रतिहा भर के बेरा हा जागे हे लाल-लाल आगी के गोला उत्ती मा छागे हे चम्चम ले चमकत हवय जइसे पीयर सोन करिया नकली नंदा जाही उज्जर के अब आये मनखे-मनखे के तन-मन मा अइसे आसा छाये देखव आँखी खोल के चुप्पा बइठे कोन चलन काल के जुन्ना होगे खड़े नवा बर जोहे नवा गुलाबी नोट मिले हे सबके मन ला मोहे मन हा टूटे कोखरो बदले जब ये टोन

नेता के चरित्र,

नेता के चरित्र, होवय पवित्र, मनखे सबो कहत हे । जनता पुच्छला, हल्ला-गुल्ला, उन्खर रोज सहत हे ।। ओमन चिल्लाथे, देश  लजाथे, देख-देख झगरा ला । हमर नाम लाथे, अपन बताथे, देखव ओ लबरा ला ।।

जुन्ना नोट बंद होगे

सखी छंद (14 मात्रा के चार चरण दो पद पदांत 122) जुन्ना नोट बंद होगे । नवा नोट बर सब भोगे खड़े हवय बेंक दुवारी । जोहत सबो अपन बारी हाथे मा नोट कहां हे । हमरे मन खोट कहां हे बड़का नोट बंद होगे । छोटे नोट चंद होगे कोनो हा दै न उधारी । मैं बोलव नहीं लबारी नान-मून काम परे हे । साँय-साँय जेब करे हे जतका हवय नोट जाली । हो जाही गा सब खाली ओखर कुबड़ टूटही गा । करिया मरकी फूटही गा कहूँ-कहूँ नोट बरे हे । कहूँ-कहूँ नोट सरे हे कोनो फेकत  कचरा मा । कोनो गाड़े डबरा मा आतंकी के धन कौड़ी । कामा लेही अब लौड़ी रोवय सब चोर उचक्का । परे हवय अइसन धक्का मान देश के करबो गा । अपने इज्जत गढ़बो गा पीरा ला हम सहिबो गा । भारत माता कहिबो गा

रिगबिग ले अँगना मा

हाँसत हे जीया, बारे दीया, रिगबिग ले अँगना मा । मिटय अंधियारी, हे उजियारी, रिगबिग ले अँगना मा ।। गढ़ के रंगोली, नोनी भोली, कइसन के हाँसत हे । ले हाथ फटाका, फोर चटाका, लइका हा नाचत हे ।।

डूब मया के दहरा

पैरी चुप हे साटी चुप हे, मुक्का हे करधनिया । चूरी चुप हे झुमका चुप हे, बोलय नही सजनिया ।। चांदी जइसे उज्जर काया, दग-दग ले दमकत हे । माथ बिनौरी ओठ गुलाबी, चम-चम ले चमकत हे ।। करिया-करिया बादर जइसे, चुंदी बड़ इतराये । सोलह अँग ले आरुग ओ हा, नदिया कस बलखाये । मुचुर-मुचुर ओखर हाँसी, जइसे नव बिहनिया । आंखी ले तो भाखा फूटय, जस सागर के लहरा । उबुक-चुबुक हे मोरे मनुवा, डूब मया के दहरा ।। लाख चॅंदैनी बादर होथे, तभो कुलुप अॅधियारे । चंदा एक सरग ले निकलय, जीव म जीव ल डारे ।। जोही बर के छांव जनाथे, जिनगी के मझनिया..

मोर कलम शंकर बन जाही

पी के तोर पीरा मोर कलम शंकर बन जाही तोर आँखी के आँसू दवाद मा भर के छलकत दरद ला नीप-जीप कर के सोखता कागज मा मनखे मन के अपन स्याही छलकाही तर-तर तर-तर पसीना तैं दिन भर बोहावस बिता भर पेट ला धरे कौरा भर नई खावस भूख के अंगरा मा अंगाकर बन ये कड़कड़ ले सेकाही डोकरा के हाथ के लाठी बेटी के मन के पाखी चोर उचक्का के आघू दे के गवाही साखी आँखी मूंदे खड़े कानून ला रद्दा देखाही

दोहा के रंग pdf

दोहा के रंग

‘‘ आँखी रहिके अंधरा‘ pdf

दिनांक 3 अप्रैल 2016 के मुगेली मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक के शुभ हाथ ले मोर छत्तीसगढ़ी दूसर पुस्तक ‘‘ आँखी रहिके अंधरा‘ (कुण्डलियां छंद के कोठी ) के विमोचन होइस । पुस्तक पढ़व

ऊही ठउर ह घर कहाथे (नवगीत)

झरर-झरर चलत रहिथे जिहां मया के पुरवाही ऊही ठउर ह घर कहाथे ओदरे भले हे छबना फुटहा भिथिया के लाज ला ढाके हे परदा रहेटिया के लइका खेलत रहिथे मारत किलकारी ओही अँगना गजब सुहाथे अपन मुँह के कौरा ला लइका ला खवावय अपन कुरथा ला छोड़ ओखर बर जिन्स लावय पाई-पाई जोरे बर जांगर ला पेर-पेर ददा पसीना मा नहाथे अभी-अभी खेत ले कमा के आये हे बहू ताकत रहिस बेटवा अब चुहकत हे लहू लांघन-भूखन सहिथे लइका ला पीयाय बिन दाई हा खुदे कहां खाथे माटी, ईटा-पथरा के पोर-पोर मा मया घुरे हे माई पिल्ला के पसीना मा लत-फत ले मया हा चुरे हे खड़ा होथे जब अइसन घर-कुरिया के भथिया तभे सब मा मया पिरोथे

हिन्दू के बैरी हिन्दू

हिन्दू ला हिन्दू होय म, आवत हवय लाज । हिन्दू के बैरी हिन्दू, काबर हवय आज ।। सबो धरम दुनिया मा हे, कोनो करे न बैर । हिन्द ह हिन्दू के नो हय, कोन मनाय खैर ।। सबो धरम  हा इहां बढ़य, हमला न विद्वेश । हमर मान ला रउन्द मत, आय हमरो देश ।। हिन्दू कहब पाप लागय, अइसन हे समाज । दुनिया भर घूमत रहिके, नई बाचय लाज ।।

जन्नत ला डहाय

सिंहिका छंद ये बैरी अपने घर मा. आगी तो लगाय । मनखे होके मनखे ला. अब्बड़ के सताय ।। अपने ला धरमी कहिथे. दूसर ला न भाय ।। जन्नत के ओ फेर परे, जन्नत ला डहाय ।।

मन के अंधियारी मेट ले

मन के अंधियारी मेट  ले (सरसी छंद) मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । मनखे मनखे एके होथे, ऊंच-नीच ला टार ।। घर अँगना हे चिक्कन चांदन, चिक्कन-चिक्कन खोर । मइल करेजा के तैं धो ले, बांध मया के डोर । मन के दीया बाती धर के, तेल मया के डार।। मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । जनम भूमि के दाना पानी, हवय तोर ये देह । अपन देष अउ धरम-करम मा, करले थोकिन नेह ।। अपने पुरखा अउ माटी के, मन मा रख संस्कार । मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । नवा जमाना हे भौतिक युग, यंत्र तंत्र ला मान । येमा का परहेज हवय गा, रखव समय के ध्यान । भौतिक बाहिर दिखवा होथे, अंतस के संस्कार । मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।

दाना-दाना अलहोर

अपन सबो संस्कार ला, मान अंध विश्वास । संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास । पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति । कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।। रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति । साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।। दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक । दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।। धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल । दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।। दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार । काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।

ये जीनगी के काहीं धरे कहां हे

अभी मन हा भरे कहां हे ये जीनगी के काहीं धरे कहां हे चाउर दार निमेर के पानी कांजी भरे हे घर के मोहाटी मा दीया बाती धरे हे अभी चूल्हा मा आगी बरे कहां हे करिया करिया बादर हा छाये हे रूख-राई हा डारा-पाना ल डोलाये हे पानी के बूँद हा अभी धरती मा परे कहां हे काल-बेल के घंटी घनघनावत हे हड़िया के अंधना सनसनावत हे जोहत हे भीतरहिन अभी पैना भरे कहां हे

गाय गरूवा अब पोषय कोन

जुन्ना नागर बुढ़वा बइला पटपर भुईंया जोतय कोन खेत खार के पक्की सड़क म टेक्टर दउड़य खदबद-खदबद बारह नाशी नागर के जोते काबर कोंटा बाचे रदबद बटकी के बासी पानी के घइला संगी के ददरिया होगे मोन पैरा-भूसा  दाना-पानी छेना खरसी गोबर कचरा घुरवा के दिन हा बहुरे हे कोन परे अब येखर पचरा फोकट म घला होगे महंगा गाय गरूवा अब पोषय कोन

नारी नर ले भारी

छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी नर ले भारी । जेन काम मा देखव संगी, लगे हवय गा नारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी नो हय अबला । देखाये हे अपने ताकत, नारी मन हा सब ला । छन्न पकइया छन्न पकइया, सेना मा हे नारी । बैरी मन के छाती फाड़े, मारत हे किलकारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, हवे कलेक्टर नारी । मास्टर डाँक्टर इंजिनियर अउ, हवे पुलिस पटवारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी के का कहना । हावे नेता अउ अधिकारी, अम्मा दीदी बहना । छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी बने व्यपारी । हर काउन्टर मा नोनी मन, गोठ करे हे भारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, लगे अचंभा भारी । घर के अपने बुता बिसारे, पढ़े-लिखे कुछ नारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, वाह रे मोटियारी । बना नई सके चाय कप भर, करे हे होशियारी । छन्न पकइया छन्न पकइया, अब के आन भरोसा । दाई पालनहारी रहिस ग, परसे कई परोसा ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, मनखे चिरई होगे । धरती के कुरिया ला छोड़े, गगन म जाके सोगे ।।

जात.पात ला छोड़व कहिथे

जात.पात ला छोड़व कहिथे, गिनती जे करथे । बाँट-बाँट मनखे के बोटी, झोली जे भरथे ।। गढ़े सुवारथ के परिभाषा, जात बने कइसे । निरमल काया के पानी मा, रंग घुरे जइसे ।। अगड़ी पिछड़ी दलित रंग के, मनखे रंग धरे । रंग खून के एक होय कहि, फोकट दंभ भरे । जात कहां रोटी-बेटी बर, कहिथे जे मनखे । आरक्षण बर जाति बता के, रेंगे हे तनके ।। खाप पंचायत कोरी.कोरी, बनथे रोज नवा । एक बिमारी अइसन बाचे, बाढ़े रोज सवा ।।

काम ये खेती किसानी आय पूजा आरती

   काम ये खेती किसानी, आय पूजा आरती ।     तोर सेवा त्याग ले, होय खुश माँ भारती ।।     टोर जांगर तैं कमा ले, पेट भर दे अब तहीं ।     तैं भुईयां के हवस गा, देव धामी मन सहीं ।। 1।।     तोर ले हे गाँव सुघ्घर, खेत पावन धाम हे ।     तैं हवस गा अन्नदाता, जेन सब के प्राण हे ।।     मत कभू हो शहरिया तैं, कोन कर ही काम ला ।     गोहरावत हे भुईंयां, छोड़ झन ये धाम ला ।।2।।   

चमचा मन के ढेर हे

चमचा मन के ढेर हे बात कहे मा फेर हे गोड़ पखारत देखेंव जेला ओही बने लठैत हे पिरपिट्टी ओखर घर के हमर मन बर करैत हे कुकुर कस पूछी डोलावय कइसे कहिदंव शेर हे हाँक परे मा सकला जथे मंदारी के डमरू सुन बेंदरा भलुवा बन के कइसन नाचथे ओखरे धुन चारा के रहत ले चरिस अब बोकरा कोन मेर हे

अपने डहर मा रेंग तैं

अपने डहर मा रेंग तैं, काटा खुटी ला टार के । कोशिश करे के काम हे, मन के अलाली मार के ।। जाही कहां मंजिल ह गा, तोरे डगर ला छोड़ के । तैं रेंग भर अपने डगर, काया म मन ला जोड़ के ।।

‘मोर गजानन स्वामी बिराजे हे‘ mp3

मोर ये गीत ला स्वर दे हे- -प्रेम पटेल ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ ‘मोर गजानन स्वामी बिराजे हे‘

‘आजा मोरे अँगना‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘आजा मोरे अँगना‘ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ ‘आजा मोरे अँगना‘

‘गढ़ बिराजे हो मइया‘mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤‘गढ़ बिराजे हो मइया‘

‘भादो के महिना‘mp3

‘भादो के महिना‘  कृष्ण जन्म के ये भजन झपताल म आबद्व हे ।  छत्तीसगढ़ी म शास्त्रीय संगीय गायन बहुते सुग्घर हे- मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल  ⇩⇩⇩⇩⇩⇩⇩  सुने बर  येला चपकव- भजन-भादो के महिना

‘हे महामाई दया कर‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल  ‘हे महामाई दया कर‘ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ हे महामाई दया कर

‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल ‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3QjhIVmxKSzc3RXM ‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘

‘टाँठ-टाँठ जिन्स पेंट पहिरे‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘टाँठ-टाँठ जिन्स पेंट पहिरे‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3Ui1DdEtqM1MzQnM

‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3bDUwNnVma0NKMWM

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