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कतका झन देखे हें-

फागुन महीना

फागुन फगुआ फाग के, रास रचे हे राग । महर-महर ममहाय हे, बगर-बगर के बाग ।। बगर-बगर के बाग, बलावय बसंत राजा । जाग जुड़ावत जाड़ हे, घमावत घमहा बाजा ।। राचय रास रमेश, संग मा संगी सगुआ । सरसो परसा फूल, लजावय फागुन फगुआ ।।

चुन्दी : हेयर स्‍टाइल पर कविता

 चुन्दी (कुण्‍डलियां) चुन्दी बगरे हे मुड़ी, जस कोनो फड़बाज। लम्बा-लम्बा ठाढ़ हे, जइसे के लठबाज ।। जइसे के लठबाज, तने हे ठाढ़े-ठाढ़े । कंघी के का काम, सरत हे माढ़े-माढ़े ।। मुसवा दे हे चान, खालहे ला जस बुन्दी । आज काल के बात, मुड़ी मा बगरे चुन्दी ।। -रमेश चौहान

जेखर बल परताप, टिके हे धरती तरिया

 कुण्‍डलियां तरिया भीतर तउरथे, जिंदा मछरी लाख । चार मरे मछरी लखत, डोलय काबर साख ।। डोलय काबर साख, देख बिगड़े ओ चारे । बिगड़े रद्दा रेंग, जेन रहिथे सब ला मारे । मनखे कई हजार, नई हे मन के करिया । जेखर बल परताप, टिके हे धरती तरिया ।। -रमेश चौहान

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