हमू ल हरहिंछा जान देबे मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान
पुस्तक: मानसिक शक्ति-स्वामी शिवानंद
-
मानसिक शक्ति THOUGHT POWER का अविकल रूपान्तर लेखक श्री स्वामी शिवानन्द
सरस्वती
2 माह पहले