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कतका झन देखे हें-

बिन काम-बुता हम तो मरबो

 बिन काम-बुता हम तो मरबो  (दुर्मिल सवैया) चल रे चल गा चल ना चल जी, कुछु काम-बुता हम तो करबो । पढ़ आखर चार भला दुनिया, हम काम बिना कइसे तरबो । बइठे-बइठे मिलही कुछु का ? पइसा बिन इज्जत का भरबो । पढ़ई-लिखई सब फोकट हे, बिन काम-बुता हम तो मरबो ।। पढ़ई-लिखई जरूरी जग मा, पर हे बिरथा सब काम बिना । पढ़ के हम आखिर का करबो बिन काम-बुता अउ दाम बिना ।। कुछु काम न आवय रे हमला अइसे पढ़ई  तन जान बिना । अँखिया अब खोल निटोर बने, धन हे जब आखर ज्ञान बिना ।। -रमेश चौहान

बेरोजगारी (सुंदरी सवैया)

नदिया-नरवा जलधार बिना, जइसे अपने सब इज्जत खोथे । मनखे मन काम बिना जग मा, दिनरात मुड़ी धर के बड़ रोथे ।। बिन काम-बुता मुरदा जइसे, दिनरात चिता बन के बरथे गा । मनखे मन जीयत-जागत तो, पथरा-कचरा जइसे रहिथे गा ।। सुखयार बने लइकापन मा, पढ़ई-लिखई करके बइठे हे । अब जांगर पेरय ओ कइसे, मछरी जइसे बड़ तो अइठे हे ।। जब काम -बुता कुछु पावय ना, मिन-मेख करे पढ़ई-लिखई मा बन पावय ना बनिहार घला,  अब लोफड़ के जइसे दिखई मा ।। पढ़ई-लिखई गढ़थे भइया, दुनिया भर मा करमी अउ ज्ञानी । हमरे लइका मन काबर दिखते,  तब काम-बुता बर मांगत पानी । चुप-चाप अभे मत देखव गा,  गुण-दोष  ल जाँचव पढ़ई लिखई के । लइका मन जानय काम-बुता, कुछु कांहि उपाय करौ सिखई के ।।

मन के मइल (दुर्मिल सवैया)

जइसे तन धोथस तैं मल के, मन ला कब  धोथस गा तन के । तन मा जइसे बड़ रोग लगे, मन मा लगथे  बहुते छनके ।। मन देखत दूसर ला जलथे, जइसे जब देह बुखार धरे । मन के सब लालच केंसर हो, मन ला मुरदा कस खाक करे ।। मन के उपचार करे बर तो, दवई धर लौ निक सोच करे । मन के मइले तन ले बड़का, मन ला मल ले भल सोच धरे ।। मन लालच लोभ फसे रहिथे, भइसी जइसे चिखला म धसे । अपने मन सुग्घर तो कर लौ, जइसे तुहरे तन जोर कसे ।।

हे गणनायक

हे गणनायक देव गजानन (मत्तगयंद सवैया) हे गणनायक देव गजानन राखव राखव लाज ल मोरे । ये जग मा सबले पहिली प्रभु भक्तन लेवन नाम ल तोरे । तोर ददा शिव शंकर आवय आवय तोर उमा महतारी ।। कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी । राखय शर्त जभे शिवशंकर अव्वल घूमय सृष्टि ल जेने । देवन मा सबले पहिली अब देवन नायक होहय तेने ।। अव्वल फेर करे ठहरे प्रभु सृष्टिच मान ददा महतारी । कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी ।। काम बुता शुरूवात करे बर होवय तोर गजानन पूजा । मेटस भक्तन के सब विध्न ल विघ्नविनाशक हे नहि दूजा ।। बुद्धि बने हमला प्रभु देवव हो मनखे हन मूरख भारी । कोन इहां तुहरे गुण गावय हे महिमा जग मा बड़ भारी ।

तीजा

  मत्तगयंद सवैया हे चहके बहिनी चिरई कस हॉसत गावत मानत तीजा । सोंध लगे मइके भुइया बड़ झोर भरे दरमी कस बीजा ।। ये करु भात ह मीठ जनावय डार मया परुसे जब दाई । लाय मयारु ददा लुगरा जब छांटत देखत हाँसय भाई ।।

मदिरा सवैया

रूप न रंग न नाम हवे कुछु, फेर बसे हर रंग म हे । रूप बने न कभू बिन ओखर, ओ सबके संग म हे ।। नाम अनेक भले कहिथे जग, ईश्वर फेर अनाम हवे । केवल मंदिर मस्जिद मा नहि, ओ हर तो हर धाम हवे ।।

साल नवा

नवा सोच के नवा साल के बधाई (दुर्मिल सवैया) मनखे मनखे मन खोजत हे,  दिन रात खुशी अपने मन के । कुछु कारण आवय तो अइसे, दुख मेटय जेन ह ये तन के । सब झंझट छोड़ मनावव गा, मिलके  कुछु कांहि तिहार नवा । मन मा भर के सुख के सपना,  सब कोइ मनावव साल नवा ।। -रमेश चौहान

जब काल ह हाथ म बाण धरे

दुर्मिल सवैया जब काल ह हाथ म बाण धरे, त जवान सियान कहां गुनथे । झन झूमव शान गुमान म रे, सब राग म ओ अपने सुनथे ।। करलै कतको झगरा लड़ई, चिटको कुछु काम कहां बनथे । मन मूरख सोच भला अब तैं, फँस काल म कोन भला बचथे ।

सुमुखी सवैया

मया बिन ये जिनगी मछरी जइसे तड़पे दिन रात गियां । मया बिन ये तन हा लगथे जइसे ठुड़गा रूख ठाड़ गियां।। मया बरखा बन के बरसे तब ये मन नाचय मोर गियां । मया अब सावन के बरखा अउ राज बसंत बयार गियां

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया) खेलत कूदत नाचत गावत हाथ धरे लइका जब आये । जा तरिया नरवा परिया अउ खार गलीन म खेल भुलाये । खेलत खेलत वो लइका मन गोकुल के मन मोहन लागे । गांव जिहां लइका सब खेलय गोकुल धाम कहावन लागे ।

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन, तैं मन भीतर राख मया । अब हे अपने दुनिया गढना, भर ले मन मा सुख आस नवा ।। मइके घर हा पहुना अब तो ससुरार नवा घर द्धार हवे । बिटिया भल मानव ओ ससुरार म जीवन के रस धार हवे ।।

घाम करे अतका (मदिरा सवैया)

घाम करे अतका अब तो धरती अॅंगरा कस लागय गा । हो ठुड़गा अब ठाढ़ खड़े रूखवा नॅंगरा कस लागय गा ।। बंजर  हे नदिया नरवा तरिया अउ बोर कुॅंआ नल हा।। हे तड़पे मछरी कस कूदत नाचत ये मनखे दल हा ।

नाचत गात मनावत होरी (सवैया)

नाचत गात मनावत होरी (सवैया) ढोलक मादर झांझ बजावत हाथ लमावत गावत फागे। मोहन ओ छलिया नट नागर रास रचावव रंग जमाके । आवव आवव भक्त बुलावत। गावत फाग उडावत रोरी । फागुन मा रसिया रस लावत नाचत गात मनावत होरी ।। हे सकलावत आवत जावय छांट निमार बनावत टोली । भांग धरे छलकावत जावत बांटत बांटत ओ हमजोली। रंगत संगत के दिखथे जब रंग लगाय करे मुॅह-जोरी छोट बड़े सब भेद भुलावत नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ धरे पिचका लइका मन रंग भरे अउ मारन लागे । आवय जावय जेन गलीन म ओहर तो मुॅह तोपत भागे । मारत हे पिचका मुॅह ऊपर ओ लइका मन हा बरजोरी  । आज बुरा मत मानव जी कहि नाचत गात मनावत होरी ।। हाथ गुलाल धरे दउडावत नंनद देखत भागत भौजी । भागत देखत साजन आवय रंग मले मुॅह मा मन मौजी । रंगय साजन रंग म हाॅसत लागय ओ जस चांद चकोरी रंगय रंग दुनों इतरावत नाचत गात मनावत होरी ।।

गांव बसे हमरे दिल मा

गांव बसे हमरे दिल मा हम तो लइका अन एखर संगी । गांवन मा सबके ममता मिलथे कुछु बात म होय न तंगी ।। जोतत नागर खेत किसान धरे मुठिया कहिथे त तता जी । खार अऊ परिया बरदी म चरे गरूवा दिखथे बढि़या जी ।।

कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर

हे मइया महिमा तुहरे जग चार जुगे त्रिय काल समाये । वो तइहा अउ आज घला सब भक्त मिले तुहरे जस गाये । पार न पावय देवन सृष्टि म नेति कहे सब माथ नवाये । ये मनखे कइसे तुइरे जस फेर भला कुछु बात बताये ।। कोन रचे जग सृष्टिन सुंदर, लालन पालन कोन करे हे । कोन इहां उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कोन धरे हे ।। जेखर ले उपजे विधि शंकर, जेन रमापति ला उपजाये । आदि अनंत न जेखर जानन, शक्ति उही हर काय कहाये ।। शैल सुता ह रचे जग सुंदर, लालन पालन गौरि करे हे । आदि उमा उपजावय जीवन, काल धुरी भुज कालि धरे हे ।। आदिच शक्ति ह तो विधि शंकर राम रमापति ला उपजाये । आदि अनंत पता नइ जेखर, शक्ति उही हर मातु कहाये ।। -रमेश चौहान मिश्रापारा, नवागढ जिला-बेमेतरा

झूमत नाचत फागुन आगे (मत्तगयंद सवैया)

हे गमके महुवा जब पीयर, पाय नशा जड़ चेतन जागे । हो बहिया भवरा जब मातय, रंग बिरंग कली हर छागे ।। हे मउरे अमुवा सरसो जब, ये धरती हर दुल्हन लागे । कोयल हे कुहके जब बागन झूमत नाचत फागुन आगे ।। छाय बने परसा कलगी बन, झूम बसंत ले पगड़ी मुड बांधे । घाम न जाड़ जनावत हे जब मंद सुगंध बयार ह आगे।। पाय नवा जिनगी बुढ़वा रूख डोलत वो लइका कस लागे । झूमय रे तितली जब फूलन झूमत नाचत फागुन आगे ।। गावय फाग धरे टिमकी सब लेत बलावत मोहन राधे । हाथ गुलाल धरे मुह पोतय, मान बुरा मत बोलय साधे ।। हाथ धरे पिचका लइका हर रंग भरे अउ डारन लागे । रंग गुलाल उड़े जब बादर झूमत नाचत फागुन आगे ।।

हे जिबरावत गोरी

काजर आंजत मुंह सजावत देख लजावत दर्पण छोरी । केस सजावत फूल लगावत खुद ल देखत भावत छोरी । आवत जावत रेंगत कूदत नाचत गावत देखत गोरी । काबर मुंह बनावत मुंह लुकावत हे जिबरावत गोरी । ......................रमेश.....................

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