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जनवरी, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

फोकट मा

फोकट मा कुछु पाय बर, हे खड़े एक गोड़ । स्वाभिमान ला बेच के, बइठे माड़ी मोड़ ।। बइठे माड़ी मोड़, चहेटय आनी बानी । अपन आप ला बेच, करव मत ग सियानी ।। नेता अउ सरकार, नाक रगड़े हे चैखट मा । स्वाभिमान हे जान, झोक मत कुछु फोकट मा ।। -रमेश चौहान

सिपाही

जीना मरना देश बर, जेखर हे पहिचान । डटे सिपाही रात दिन, धरे हाथ मा जान ।। धरे हाथ मा जान, लड़य सीमा मा जाके । रखय देश मा शांति, जान अपने गंवाके । अमर होबे ‘रमेश‘, काम अइसन तै करना । जिनगी का हे यार, एक दिन जीना मरना ।।

रूखवा चिखय न फर अपन

रूखवा चिखय न फर अपन, फर मा जावय टूट । नदिया पानी ले भरे, पिये न एको घूट। पिये न एको घूट, गाय हर दूध ल अपने । धर मनखे के जात, कोन हर करे अइसने ।। सब जानथे ‘रमेश‘, मिले हे ऐमा दुखवा । सब झन खोजे छांव, बने ना कोनो रूखवा ।।

तिवरा भाजी

तिवरा भाजी रांध ओ, सुघ्घर भुंज बघार । हरियर मिरचा डार दे, बने रहय ना झार ।। बने रहय ना झार, बुरक दे धनिया पत्ती । अइसन भाजी भात, मिठाथे मोला अत्ती । तै अउ लाबे टोर, खेत मा लहसे भाजी । चुरकी रख बे जोर,सूखसा तिवरा भाजी ।।

चुनई

चुनई आगे गांव मा, मौका हे अदभूत । पंच बने बर गांव के, धरे महूॅं ला भूत । धरे महूॅं ला भूत, जीतना हे कइसनो । टूरा मन बर दारू, छोकरी मन बर इसनो लुगरा साटी बांट, छोड़ देना हे गुनई । रूपया पइसा बांट, जीत जाना हे चुनई ।।

मोर छत्तीसगढ़ के नारी

     मोर छत्तीसगढ़ के नारी । दया मया के हे चिन्हारी     नारी तो परिवार बनाथे । जेखर ले घर कुरिया भाथे        बेटी दुलौरीन मइके के  । बहू लाजवंती ससुरे के     पति के ओ हर परम पियारी । नोनी बाबू के महतारी     पग पग मा पति ला सम्हारय । लइका मन बर जिनगी हारय     सास ससुर के जतन बजावय । नाता दारी सबो निभावय     सुत उठ के बड़े बिहनिया । महतारी अउ बेटी धनिया     छर्रा छिटा गली मा देवय । जब गोबर कचरा कर लेवय     बहरय बटोरय लिपय कुरिया । बरतन भड़वा मांजय करिया     तब रांधय गढ़य बने जेवन । खवा पिया लय त खाय एमन     सबो काम बूता ओ करथे । घर के लक्ष्मी कोठी भरथे     भीतर बाहिर बूता करथे । देख काम टूरा मन जरथे     खेतहारिन ह खेत कमाथे । बनिहारिन दू पैसा लाथे     मास्टरिन बने हे बहुते झन । डाक्टरिन घला हे ऐही मन     हवे कलेक्टर अउ इंजिनियर । इखरे ले देष बने हरियर     करय मरद जउन जउन बूता । नारी मन घला करय बहुता     एमन चाहे कुछु काम करय । घर परिवारे बर जियय मरय     त्याग तपस्या इखरे भारी  । तब कहाय एमन महतारी

दरूहा

दरूहा हे भवरा असन, दारू हवय रस फूल । भवरा चूसय फूल ला, चाहे गड़जय शूल ।। चाहे गड़जय शूल, चिथा जय चाहे डेना । करे कहां परवाह, पिये से मतलब हे ना ।। पिअय नही ‘रमेश‘, कथे मोला सब करूहा । गांव गांव हर सहर, सबे घर होगे दरूहा ।।

मत्तगयंद सवैया

पूस धरे जुड़ कापत आवत, देखत घाम लजावत भागे । बादर हे बरसे कुहरा जब, सूरज देव लुकाय लजाके ।। फूल झरे अइलावत जाड़ म डार सफेद करा जब छागे । सोवत हे मनखे मुड़ तोपत, लात सकेलत जाड़ ल पाके । -रमेश चौहान

अनदेखी

देखा देखी के चलन, अनदेखी ग कहाय । अपने मन अनदेखना, कइसे तोला भाय ।। कइसे तोला भाय, पेट मा पीरा होथे । ओ रद्दा मा तोर, लुका के काटा बोथे ।। करत हे गा ‘रमेश‘, ओखरो लेखा लेखी । आज नही ता काल, करे बर देखा देखी ।।

ठउर घूमे के तरिया

तरिया नरवा गांव के, हिल स्टेसन तो आय । लइका बच्चा मन जिहां, घूमे बर तो जाय ।। घूमे बर तो जाय, रोज संझा सब जहुंरिया । जुरमिल बइठे पार, धरे मोबाइल करिया ।। आनी बानी गोठ, ओरसावय सब चरिया । निस्तारी के संग, ठउर घूमे के तरिया ।।

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