छाती ठोक के, मांग करव अब, काम के अधिकार । हर हाथ मा तो, काम होवय, रहब न हम लचार ।। हर काम के तो, दाम चाही, नई लन खैरात । हो दाम अतका, पेट भर के, मिलय हमला भात ।। खुद गुदा खाथे, देत हमला, फोकला ला फेक । सरकार या, कंपनी हा, कहां कोने नेक ।। अब काम के अउ, दाम के तो, मिलय गा अधिकार । कानून गढ़ दौ, एक अइसन, देश के सरकार ।।
मैं सिहावा हूं- श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि और उनका सांस्कृतिक विरासत -श्रीमती
संध्या सुभाष मानिकपुरी
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मैं सिहावा हूं — महानदी का पवित्र उद्गम स्थल, सप्तश्रृंग पर्वतों की छाया
में बसा वह अद्भुत अंचल, जहां ऋषियों की गूंज अब भी हवा में बहती है। मेरी
पहचान…
1 दिन पहले