देखव शहर के गाँव मा, एके दिखे हे चाल ।। परदेश कस तो देश हा, कइसे कहँव मैं हाल।। अपने अपन मा हे मगन, बड़का खुदे ला मान । मतलब कहां हे आन ले, अपने अपन ला तान ।। फेशन धरे हे आन के, अपने चलन ला टार । अपने खुशी ला देखथे, परिवार ला तो मार ।। दाई ददा बस पोसथे, लइका अपन सिरजाय । बड़का बढ़े जब बेटवा, दाई ददा बिसराय ।। बिगडे़ नई हे कुछु अभी, अपने चलन धर हाथ । जुन्ना अपन संस्कार धर, परिवार के धर साथ ।। भर दे खुशी ला आन के, पाबे खुशी तैं लाख । एही हमर संस्कार हे, एही हमर हे साख ।। -रमेश चौहान
व्यंग्य:कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे-विनोद नायक
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॥ कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे ॥ झगड़ा हो तो उसकी जड़ भी हो वरना
बिना जड़ के झगड़े ऐसे होते जैसे बिना मतलब के कुत्ते के मुँह में डण्डी
चलाना। जब डण्...
3 दिन पहले