देखव शहर के गाँव मा, एके दिखे हे चाल ।। परदेश कस तो देश हा, कइसे कहँव मैं हाल।। अपने अपन मा हे मगन, बड़का खुदे ला मान । मतलब कहां हे आन ले, अपने अपन ला तान ।। फेशन धरे हे आन के, अपने चलन ला टार । अपने खुशी ला देखथे, परिवार ला तो मार ।। दाई ददा बस पोसथे, लइका अपन सिरजाय । बड़का बढ़े जब बेटवा, दाई ददा बिसराय ।। बिगडे़ नई हे कुछु अभी, अपने चलन धर हाथ । जुन्ना अपन संस्कार धर, परिवार के धर साथ ।। भर दे खुशी ला आन के, पाबे खुशी तैं लाख । एही हमर संस्कार हे, एही हमर हे साख ।। -रमेश चौहान
पुस्तक परिचय: कविता रचना की कला
-
इस पुस्तक को क्यों पढ़े? कविता रचना की कला: शैली, तकनीक, और सृजन रमेश चौहान
द्वारा रचित एक अनुपम मार्गदर्शिका है, जो नवोदित कवियों को कविता की जादुई
दुनिया...
4 दिन पहले