अरे पुरवाही, ले जा मोरो संदेश धनी मोरो बइठे, काबर परदेश अरे पुरवा…ही मोर मन के मया, बांध अपन डोर छोड़ देबे ओखरे , अचरा के छोर सुरुर-सुरुर मया, देवय सुरता के ठेस अरे पुरवा…ही जोहत हंवव रद्दा, अपन आँखी गाढ़े आँखी के पुतरी, ओखर मूरत माढ़े जा-जा रे पुरवाही, धर के मोरे भेस अरे पुरवा…ही मोरे काया इहां, उहां हे परान अरे पुरवाही, होजा मोरे मितान देवा दे ओला, आये बर तेश अरे पुरवा…ही -रमेश चौहान
पुस्तक:छत्तीसगढ़ी काव्यकाव्य एक वृहंगम दृष्टि- रामेश्वर शर्मा
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क्यों पढ़ें यह पुस्तक छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंगम दृष्टि छत्तीसगढ़ की
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल संग्रह है, जो पाठकों को इस
क्षेत्र की समृद्...
15 घंटे पहले