ऐ गोरी मोर, पैरी तोर, रून छुन बाजे ना । सुन मयारू बोल, ढेना खोल, मनुवा नाचे ना । कजरारी नैन, गुरतुर बैन, जादू चलाय ना । चंदा बरन रूप, देखत हव चुप, दिल मा बसाय ना । गोरी तोर प्यार, मोर अधार, जिनगी ल जिये बर । ये जिनगी तोर, गोरी मोर, मया मा मरे बर । कइसन सताबे, कभू आबे, जिनगी गढ़े बर । करव इंतजार, सुन गोहार, तोही ल वरे बर । .............रमेश ......................
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
5 दिन पहले