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कतका झन देखे हें-

चामर छंद'-मनखे

मनखे के सुभाव मोर तोर तोर मोर पोर पोर हे घुरे मोर तोर तोर मोर के सुभाव हा चुरे लोभ मोह लोक लाज छोड़ तान अड़े खोर खोर के गली गली ल छेक तैं खड़े

श्रृंगारिक फागगीत

 श्रृंगारिक फागगीत चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे, मोला करे बिभारे ।।टेक।। चल हां गोरी, तोर नयना म का घुरे हे, अउ का के करथे गोठ।।1।। चल हां गोरी, तोर नयना म मया घुरे हे, अउ मया के करथे गोठ ।।2।। चल हां गोरी, तोर नयना म का लगे हे, अउ दिखय कोने रंग ।।3।। चल हां गोरी, तोर नयना म जादू लगे हे, जेमा दिखय मया के रंग ।।4।। चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव, जेमा बिगड़े मोरे चाल ।।टेक।। चल हां मयारुक, कहां जाके मैं लुकॉंव, अउ कहां पावँव चैन ।।1।। चल हां मयारुक, तोर गली म जाके लुकॉंव, अउ तोर दरस म पावँव चैन ।।2।। चल हां मयारुक,  मोला काबर नई लगय पियास, अउ काबर नई लगय भूख।।3।। चल हां मयारुक, तोर दरस बिन नई लगय पियास, अउ मिलन बिन ना लागय भूख ।।4।। -रमेश चौहान

पारंपरिक फागगीत

 पारंपरिक फागगीत चलो हां यशोदा धीरे झुला दे पालना चलो हो यशोदा धीरे झुला दे पालना तोर ललना उचक न जाय ।।टेक।। चलो हां यशोदा काहेन के पालना बनो है, तोर काहेन लागे डोर ।।1।। चलो हां यशोदा चंदन, काट पालना बनो हैं तोर रेशम लोग डोर ।।2।। चलो हां कदम तरी ठाढ़े भिजगै श्‍यामरो चलो हां कदम तरी ठाढ़े भिजगै श्‍यामरो केशर के उड़ै बहार ।।टेक।। चलो हां कदम तरी कै मन के सरगारो हे, कै मन उडै गुलाल ।।1।। चलो हां कदम तरी नौ मन के सरगारो हे, दस मन उडै गुलाल ।।2।। चलो हां राधा तोर चुनरी के कारन मे चलो हां राधा तोर चुनरी के कारन मे कन्‍हैया ने हो गई चोर ।।टेक।। चलो हां राधा कोन महल चोरी भयो है, तोर कोन महल भई लुट ।।1।। चलो हां राधा रंग महल चोरी भयो है, तोर शीश महल भई लुट ।।2।। चलो हां अर्जुन मारो बाण तुम गहि गहि के चलो हां अर्जुन मारो बाण तुम गहि गहि के, रथ हाके श्रीभगवान ।।टेक।। चलो हां अर्जुन कै मारै कै घायल है, कै परे सगर मैदान ।।1।। चलो हां अर्जुन नौ मारे दस घायल है, कई परे सगर मैदान ।।2।। चलो हां राम दल घेर लियो लंका को चलो हां राम दल घेर लियो लंका को, लंका के दसो द्वार ।। टेक।। चलो हां राम दल काहने के

फागुन महीना

फागुन फगुआ फाग के, रास रचे हे राग । महर-महर ममहाय हे, बगर-बगर के बाग ।। बगर-बगर के बाग, बलावय बसंत राजा । जाग जुड़ावत जाड़ हे, घमावत घमहा बाजा ।। राचय रास रमेश, संग मा संगी सगुआ । सरसो परसा फूल, लजावय फागुन फगुआ ।।

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