काटा म जब काटा चुभाबे, तभे निकलथे काटा पांव । कटे ल अऊ काटे ल परथे, त जल्दी भरते कटे घांव ।। लोहा ह लोहा ला काटथे, तब बनथे लोहा औजार । दुख दुख ला काटही मनखे, ऐखर बर तै रह तइयार ।। जहर काटे बर दे ल परथे, अऊ जहर के थोकिन डोज । गम भुलाय ल पिये ल परथे, गम के पियाला रोज रोज ।। प्रसव पिरा ला जेन ह सहिथे, तीनो लोक ल जाथे जीत । धरती स्वर्ग ले बड़े बनके, बन जाथे महतारी मीत ।। दरद मा दरद नई होय रे, दरद के होथे अपन भाव । दरद सहे म एक मजा होथे, जब दरद म घला होय चाव ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
2 हफ़्ते पहले