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कतका झन देखे हें-

करम तोर पहिचान हे

अपने ला पहिचान, देह हस के तैं आत्मा । पाँच तत्व के देह, जेखरे होथे खात्मा ।। देह तत्व ले आन, अमर आत्मा हा होथे । करे देह ला यंत्र, करम फल ला वो बोथे ।। रंग-रूप ला छोड़ के, करम तोर पहिचान हे । मनखेपन ला मान,  तोर येही अभिमान हे ।।

कइसे भरही भेट

कइसे भरही भेट, हाथ मा हाथ धरे ले । काम बुता ला देख, मने मन तोर जरे ले । तर तर जब बोहाय, पसीना  देह म तोरे । चटनी मिरचा नून, सुहाही बासी बोरे । फुदक फुदक चिरई घला, दाना पानी खोजथे । जंगल के बघवा कहां, बइठे बइठे बोजथे ।।

भोगथे मोटर गाड़ी

मनखे केे अपराध, भोगथे मोटर गाड़ी । हर थाना मा देख, खड़े हे बने कबाड़ी ।। मोरो मन अभिलाष, सड़क मा घूमव फर फर । मनखे हे आजाद, कैद मा हा हँव काबर ।। कतका साधन देश के, काबर गा बरबाद हे । अंग भंग होके खड़े, खोय अपन मरजाद हे ।।

गांठ बांध ये गोठ ला

छोड़व जुन्ना गोठ, नवा रद्दा गढ़ना हे । लड़ई झगरा छोड़, आघु हमला बढ़ना हे । मोर धरम हे मोर, धर्म तोरे हा तोरे । अपन अपन ला मान, आन ला काबर घोरे । तोर कमाई तोर हे, दूसर के हा आन के । गांठ बांध ये गोठ ला, संगे खेलव तान के ।।

कहय शहिद के बेटवा

बादर करिया छाय, कुलुप लागे घर कुरिया । कब तक रहि धंधाय, खड़े आतंकी ओ करिया ।। केवल छाती तान, शहिद सैनिक मन होये । हम मारे हन चार, बीस सैनिक ला खोये ।। कहय शहिद के बेटवा, बैरी के अब घर घुसर । बिला म घुसरे साप के, मुड ला पथरा मा कुचर ।।

कतका तैं इतराय हस

राम राम कह राम, जगत ले तोला तरना । आज नही ता काल, सबो ला तो हे मरना ।। मृत्युलोक हे नाम, कोन हे अमर जगत मा । जप ले सीताराम, मिले हे जेन फकत मा ।। अपन उमर भर देख ले, का खोये का पाय हस । लइका पन ले आज तक, कतका तैं इतराय हस ।।

गोठ मोरे तै गुनबे

नवा नवा तो जोश, देख हे लइका मन के । भरना मुठ्ठी विश्व, ठान ले हे बन ठन के ।। धर के अंतरजाल, करे हें माथा पच्ची । एक काम दिन रात, करे सब बच्चा बच्ची ।। मोबाईल कम्प्यूटर युग, परे रात दिन फेर मा । पल मा बादर ला अमरथे, सुते सुते ओ ढेर मा ।। होय नफा नुकसान, काम तै कोनो कर ले । करे यंत्र ला दास, फायदा झोली भर ले ।। बने कहूं तै दास, अपन माथा ला धुनबे । आज नही ता काल, गोठ मोरे तै गुनबे ।। अकलमंद खुद ला मान के, करथस तै तो काम रे । अड़हा नइये दाई ददा, खरा सोन हे जान रे ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान

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