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सितंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

मुकतक (पीये बर पानी मिलत नई हे)

ऊपर वाले हा ढिलत नई हे हमरे भाखा ओ लिलत नई हे सेप्टिक बर आवय कहां ले पीये बर पानी मिलत नई हे -रमेश चौहान

मुक्तक (दूसर ला राखे बर चूरत हस)

अपने भाई ला बेघर करके बैरी माने तैं बंदूक धरके दूसर ला राखे बर चूरत हस अपने भेजा मा भूसा भरके -रमेश चौहान

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