दे ना दाई मोला, दे ना दाई मोला, एक सइकमा बासी, अउ अथान चटनी । संग गोंदली दे दे, दे दे लाले मिरचा, रांधे हस का दाई, खेड़हा -खोटनी ।। बासी खाके दाई, काम-बुता मा जाहूँ, जांगर टोर कमाके, दू पइसा लाहूँ । दू-दू पइसा सकेल, सिरतुन मा ओ दाई, ये छितका कुरिया ला, मैं महल बनाहूँ ।। -रमेश चौहान
मैं सिहावा हूं- श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि और उनका सांस्कृतिक विरासत -श्रीमती
संध्या सुभाष मानिकपुरी
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मैं सिहावा हूं — महानदी का पवित्र उद्गम स्थल, सप्तश्रृंग पर्वतों की छाया
में बसा वह अद्भुत अंचल, जहां ऋषियों की गूंज अब भी हवा में बहती है। मेरी
पहचान…
2 दिन पहले