हे करिया बादर, बिसरे काबर, तै बरसे बर पानी । करे दुवा भेदी, घटा सफेदी, होके जीवन दानी ।। कहूं हवय पूरा, पटके धूरा, इहां परे पटपर हे । तरसत हे प्राणी, मांगत पानी, कहां इहां नटवर हे ।। हे जीवन दानी, दे-दे पानी, अब हम जीबो कइसे । धरती के छाती, खेती-पाती, तरसे मछरी जइसे ।। पीये बर पानी, आँखी कानी, खोजय चारो कोती । बोर कुँआ तरिया, होगे परिया, कहां बूंद भर मोती ।।
Protected: जरथुश्त्र: ईरान के महान् पैगम्बर और मज़द-उपासना के प्रवर्तक
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2 हफ़्ते पहले