1. अपन बाँह मा भरथंव जेला । जेन खुशी बड़ देथे मोला ।। मन हरियर तन लाली भूरी । का सखि ? भाटो ! नहि रे चूरी ।। 2. बिन ओखर जेवन नई चुरय । सांय-सांय घर कुरिया घुरय ।। जेन कहाथे घर के दूल्हा । का सखि ? भाटो ! नहि रे, चूल्हा ।। 3. दुनिया दारी जेन बताथे । रिगबिग ले आँखी देखाथे । जेखर आघू बइठवं ‘सीवी‘ का सखि ? भाटो ! नहि रे, टीवी ।।
पुस्तक परिचय: कविता रचना की कला
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इस पुस्तक को क्यों पढ़े? कविता रचना की कला: शैली, तकनीक, और सृजन रमेश चौहान
द्वारा रचित एक अनुपम मार्गदर्शिका है, जो नवोदित कवियों को कविता की जादुई
दुनिया...
12 घंटे पहले