नीति के दोहा करना धरना कुछ नहीं, काँव-काँव चिल्लाय । खिंचे दूसर के पाँव ला, हक भर अपन जताय ।। अपन काम सहि काम नहीं, नाम जेखरे कर्म । छोड़ बात अधिकार के, काम करब हे धर्म ।। कहां कोन छोटे बड़े, सबके अपने मान । अपन हाथ के काम बिन, फोकट हे सब ज्ञान ।। जीये बर तैं काम कर, कामे बर मत जीय । पइसा ले तो हे बडे, अपन मया अउ हीय ।। ए हक अउ अधिकार मा, कोन बड़े हे देख । जान बचावब मारना, अइसन बात सरेख ।। -रमेश चौहान
पुस्तक:छत्तीसगढ़ी काव्यकाव्य एक वृहंगम दृष्टि- रामेश्वर शर्मा
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क्यों पढ़ें यह पुस्तक छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंगम दृष्टि छत्तीसगढ़ की
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल संग्रह है, जो पाठकों को इस
क्षेत्र की समृद्...
1 दिन पहले