बिन काम-बुता हम तो मरबो (दुर्मिल सवैया) चल रे चल गा चल ना चल जी, कुछु काम-बुता हम तो करबो । पढ़ आखर चार भला दुनिया, हम काम बिना कइसे तरबो । बइठे-बइठे मिलही कुछु का ? पइसा बिन इज्जत का भरबो । पढ़ई-लिखई सब फोकट हे, बिन काम-बुता हम तो मरबो ।। पढ़ई-लिखई जरूरी जग मा, पर हे बिरथा सब काम बिना । पढ़ के हम आखिर का करबो बिन काम-बुता अउ दाम बिना ।। कुछु काम न आवय रे हमला अइसे पढ़ई तन जान बिना । अँखिया अब खोल निटोर बने, धन हे जब आखर ज्ञान बिना ।। -रमेश चौहान
पुस्तक:छत्तीसगढ़ी काव्यकाव्य एक वृहंगम दृष्टि- रामेश्वर शर्मा
-
क्यों पढ़ें यह पुस्तक छत्तीसगढ़ी काव्य: एक विहंगम दृष्टि छत्तीसगढ़ की
साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अनमोल संग्रह है, जो पाठकों को इस
क्षेत्र की समृद्...
3 दिन पहले