जइसे तन धोथस तैं मल के, मन ला कब धोथस गा तन के । तन मा जइसे बड़ रोग लगे, मन मा लगथे बहुते छनके ।। मन देखत दूसर ला जलथे, जइसे जब देह बुखार धरे । मन के सब लालच केंसर हो, मन ला मुरदा कस खाक करे ।। मन के उपचार करे बर तो, दवई धर लौ निक सोच करे । मन के मइले तन ले बड़का, मन ला मल ले भल सोच धरे ।। मन लालच लोभ फसे रहिथे, भइसी जइसे चिखला म धसे । अपने मन सुग्घर तो कर लौ, जइसे तुहरे तन जोर कसे ।।
समृद्ध बस्तर, शोषित बस्तर- श्रीमती शकुंतला तरार
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श्रीमती शकुंतला तरार,एक ऐसी कवयित्री जो बस्तर में जन्मीं और बस्तर को ही
अपनी कलम का केन्द्र बनाया।सोचिए — जिस धरती पर जन्म हुआ, उसी पर इतनी गहराई
से लिखा क...
1 दिन पहले