टोकब न भाये (करखा दंडक छंद) काला कहिबे, का अउ कइसे कहिबे, आघू आके, चिन्हउ कहाये । येही डर मा, आँखी-कान ल मूंदे, लोगन कहिथे, टोकब न भाये ।। भले खपत हे, मनखे चारों कोती, बेजा कब्जा, मनभर सकेले । नियम-धियम ला, अपने खुद के इज्जत, धरम-करम ला, घुरवा धकेले ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान
व्यंग्य:कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे-विनोद नायक
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॥ कायेको झगड़ा भैया,करो सबसे प्रीत रे ॥ झगड़ा हो तो उसकी जड़ भी हो वरना
बिना जड़ के झगड़े ऐसे होते जैसे बिना मतलब के कुत्ते के मुँह में डण्डी
चलाना। जब डण्...
1 दिन पहले