श्रृंगारिक फागगीत चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे, मोला करे बिभारे ।।टेक।। चल हां गोरी, तोर नयना म का घुरे हे, अउ का के करथे गोठ।।1।। चल हां गोरी, तोर नयना म मया घुरे हे, अउ मया के करथे गोठ ।।2।। चल हां गोरी, तोर नयना म का लगे हे, अउ दिखय कोने रंग ।।3।। चल हां गोरी, तोर नयना म जादू लगे हे, जेमा दिखय मया के रंग ।।4।। चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव, जेमा बिगड़े मोरे चाल ।।टेक।। चल हां मयारुक, कहां जाके मैं लुकॉंव, अउ कहां पावँव चैन ।।1।। चल हां मयारुक, तोर गली म जाके लुकॉंव, अउ तोर दरस म पावँव चैन ।।2।। चल हां मयारुक, मोला काबर नई लगय पियास, अउ काबर नई लगय भूख।।3।। चल हां मयारुक, तोर दरस बिन नई लगय पियास, अउ मिलन बिन ना लागय भूख ।।4।। -रमेश चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
1 हफ़्ते पहले