आँखी तोरे फूट गे, दिखत नई हे काम । गोबर-कचरा छोड़ के, करत हवस आराम ।। करत हवस आ-राम दोखई, बइठे-बइठे । सुनत सास के, गारी-गल्ला, बहू ह अइठे ।। नई करँव जा, का करबे कर, मरजी मोरे । बइठे रहिहँव, चाहे फूटय, आँखी तोरे ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले