आँखी तोरे फूट गे, दिखत नई हे काम । गोबर-कचरा छोड़ के, करत हवस आराम ।। करत हवस आ-राम दोखई, बइठे-बइठे । सुनत सास के, गारी-गल्ला, बहू ह अइठे ।। नई करँव जा, का करबे कर, मरजी मोरे । बइठे रहिहँव, चाहे फूटय, आँखी तोरे ।।
समृद्ध बस्तर, शोषित बस्तर- श्रीमती शकुंतला तरार
-
श्रीमती शकुंतला तरार,एक ऐसी कवयित्री जो बस्तर में जन्मीं और बस्तर को ही
अपनी कलम का केन्द्र बनाया।सोचिए — जिस धरती पर जन्म हुआ, उसी पर इतनी गहराई
से लिखा क...
4 दिन पहले