सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कतका झन देखे हें-

कइसे कहँव किसान ला भुइया के भगवान

कइसे कहँव किसान ला, भुइया के भगवान । लालच के आगी बरय, जेखर छतिया तान ।। जेखर छतिया तान, भरे लालच झांकत हे । खातू माटी डार, रोग हमला बांटत हे ।। खेत म पैरा बार, करे मनमानी जइसे । अपने भर ला देख, करत हे ओमन कइसे ।। घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। नैतिक अउ तकनीक के, कर लौ संगी मेल । मनखे हवय समाज के, खुद ला तैं झन पेल ।। खुद ला तैं झन पेल, अकेल्‍ला के झन सोचव । रहव चार के बीच, समाजे ला झन नोचव । सुनलव कहय ’रमेश’, देश के येही रैतिक । सब बर तैं हर जीय, कहाथे येही नैतिक ।। -रमेश चौहान

सुरहोत्‍ती

सुरहोत्‍ती ये गॉंव के, हवय सरग ले नीक । मंदिर-मंदिर मा जले, रिगबिग दीया टीक ।। रिगबिग दीया टीक, खेत धनहा डोली मा । घुरवा अउ शमशान, बरत दीया टोली मा । सुनलव कहय रमेश, देख तैं चारों कोती । हवय सरग ले नीक, गॉंव के ये सुरहोत्‍ती ।।

आगी लगेे पिटरोल मा,

आगी लगेे पिटरोल मा, बरत हवय दिन राती । मँहगाई भभकत हवय, धधकत हे छाती ।। कोरोना के मार मा, काम-बुता लेसागे । अउ पइसा बाचे-खुचे, अब तो हमर सिरागे ।। मरत हवन हम अइसने, अउ काबर तैंं मारे ।  डार-डार पिटरोल गा, मँहगाई ला बारे ।। सुनव व्‍यपारी, सरकार मन,  हम कइसे के जीबो । मँइगाई के ये मार मा, का हम हवा ल पीबो ।।  जनता मरहा कोतरी,  मँहगाई के आगी । लेसत हे नेता हमर, बांधत कनिहा पागी ।।   कोंदा भैरा अंधरा, राज्‍य केन्‍द्र के राजा । एक दूसर म डार के, हमर बजावत बाजा ।। दुबर ल दू अषाढ़ कस, डहत हवय मँहगाई । हे भगवान गरीब के, तुँही ददा अउ दाई ।। -रमेश चौहान

चल देवारी मनाबो मया प्रीत घाेेर के

घनाक्षरी लिपे-पोते घर-द्वार, झांड़े-पोछे अंगना चुक-चुक ले दिखय, रंगोली खोर के । नवा-नवा जिंस-पेंट, नवा लइका पहिरे, उज्‍जर दिखे जइसे,  सूरुज ए भोर के ।। रिगबिग-रिगबिग, खोर-गली घर-द्वार रिगबिग दीया-बाती, सुरुज अंजोर के । मन भीतर अपन,  तैं ह संगी अब तो, रिगबिग दीया बार, मया प्रीत घाेेर के  ।।

हमू ल हरहिंछा जान देबे

 हमू ल हरहिंछा जान देबे    मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान

तीजा तिहार

तीजा तीज तिहार मा, मांगे हें अहिवात । दिन भर रहे उपास अउ, जागे वो हा रात । जागे वो हा रात, खुशी पति के हे मांगे । पत्नी के ये काम, जगत मा ऊंपर टांगे । सुनलव कहे "रमेश", ठेठरी धर छोड़व पीजा । अपन ह अपने होय, कहत हे हमरे तीजा ।।

आठे कन्‍हईया के गीत-भादो के महिना

आठे कन्‍हईया के गीत-भादो के महिना भादो के महीना, घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे, ये रात कारी कारी । कंस के कारागार, बड़ रहिन पहरेदार, चारो कोती चमुन्दा, खुल्ला नइये एकोद्वार । देवकी वासुदेव करे पुकार, हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये, करलव सनाथ । एक-एक करके छै, लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे, कइसे अपभ्रंस । आठवइया के हे बारी, कइसे करिन तइयारी, एखरे बर करे हे, आकाशवाणी ला चक्रधारी । मन खिलखिलावत हे, फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे, के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी-कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट, चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के, हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल, बड़ जोर के नींद आगे । देखत हे देवकी वासुदेव, त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे, ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटिक भर म होइस, उंहला परमपिता के भान, नाना भांति ले, करे लगिन उंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइया, जम्मो जीव के देखइया  धरती के भार हरइया, जीवन नइया के खेवइया । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान, बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान । प्रगट

ये राखी तिहार

 ये राखी तिहार ये राखी तिहार, लागथे अब, आवय नान्हे नान्हे मन के । भेजय राखी, संग मा रोरी, दाई माई लिफाफा मा भर के । माथा लगालेबे, तै रोरी भइया, बांध लेबे राखी मोला सुर कर के । नई जा सकंव, मैं हर मइके, ना आवस तहू तन के । सुख के ससुरार भइया दुख के मइके, रखबे राखी के लाज जब मै आवंह आंसू धर के ।

खेले बिजली खेल

 खेले बिजली खेल (कुण्डलियां) चमनी-कंड़िल हे नहीं, नइ हे माटीतेल । अंधियार तो घर परे, खेले बिजली खेल ।। खेले बिजली खेल, कहत मोला छू लेवव । खेलत छू-छूवाल, दॉव मोरे दे देदव ।। धन-धन हवय ‘रमेश’, टार्च मोबाइल ठिमनी ।। घर मा लाइन गोल, नई हे कंडिल-चिमनी ।।

बेटी-बहू

बेटी-बहू बेटी हमरे आज के, बहू कोखरो काल । बहू गढ़य परिवार ला, राखय जोर सम्हाल ।। राखय जोर सम्हाल, बहू जइसे हे चिरई । तिनका-तिनका जोर, खोंधरा ओखर बनई ।। सास-ससुर मां बाप, मान राखय जी तुहरे । सुग्घर बहू कहाय, मान तब बेटी हमरे ।।

नीति के दोहा

नीति के दोहा करना धरना कुछ नहीं, काँव-काँव चिल्लाय । खिंचे दूसर के पाँव ला, हक भर अपन जताय ।। अपन काम सहि काम नहीं, नाम जेखरे कर्म । छोड़ बात अधिकार के, काम करब हे धर्म ।। कहां कोन छोटे बड़े, सबके अपने मान । अपन हाथ के काम बिन, फोकट हे सब ज्ञान ।। जीये बर तैं काम कर, कामे बर मत जीय । पइसा ले तो हे बडे, अपन मया अउ हीय ।। ए हक अउ अधिकार मा, कोन बड़े हे देख । जान बचावब मारना, अइसन बात सरेख ।। -रमेश चौहान

भागही ये कोरोना

 भागही ये कोरोना (कुण्‍डलियॉं) रहना दुरिहा देह ले, रहि के मन के तीर । कोरोना के काल मा, होये बिना अधीर ।। होय बिना अधीर, संग अपने ला दे ना । दू भाखा तैं बोल, अकेलापन ला ले ना ।। तोर हाथ मा फोन, अपन संगी ला कह ना । हवन संग मा तोर, अकेल्ला मत तैं रहना ।। कोरोना के रोग ले, होबो हम दू-चार । मन ला मन ले जोड़ के, रहिना हे तइयार ।। रहिना हे तइयार, हराना हे जब ओला । तन ले रहिके दूर, खोलबो मन के खोला अपने आप सम्हाल, नई हे हमला रोना । जुरमिल करव उपाय, भागही ये कोरोना ।।

गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद)

 गावत हे फाग रे (घनाक्षरी छंद) आमा मउराये जब, बउराये परसा हा,  भवरा हा मंडरा के, गावत हे फाग रे । झुमर-झुमर झूमे, चुमे गहुदे डारा ल, महर-महर करे, फूल के पराग रे ।। तन ला गुदगुदाये, अउ लुभाये मन ला  हिरदय म जागे हे, प्रीत अनुराग रे । ओ चिरई-चिरगुन, रूख-राई संग मिल, छेड़े हावे गुरतुर, मादर के राग रे ।। -रमेश चौहान

तुकांत गज़ल-भीतरे भीतर जरव मत

 भीतरे भीतर जरव मत (तुकांत गज़ल) भीतरे भीतर जरव मत बिन आगी के बरव मत अपन काम ले काम जरूरी फेर बीमरहा कस घर धरव मत जेला जे पूछय तेला ते पूछव राम-राम कहे बिन कोनो टरव मत चार दिन के जिंदगी चारठन गोठ  चार बरतन के ठेस लगे लडव मत काना-फुँसी कानों कान होथे दूसर के कान ला भरव मत आँखी के देखे धोखा हो सकथे अंतस के आँखी बंद करव मत -रमेश चौहान

ददरिया- ये फूल कैयना

 ददरिया- ये फूल कैयना हे गोडे मा चप्पल, अउ चप्पल मा हिल तैं मटकत रेंगत हस जावत हे मोर दिल, ये फूल कैयना हे हाथे मा मोबइल, बाजत हे घंटी हे हाथे मा मोबइल, बाजत हे घंटी स्कूटी मा उड़ावत हस, उड़ावत हे बंडी, ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... खुल्ला चुँदी.....बादर करयिा ....हाँ खुल्ला चुँदी बादर करयिा हाँ बादर करिया खुल्ला चुँंदी बादर करयिा हाँ बादर करिया आँखी मा समाये, मया के तरिया, ओ फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... नवा स्टेटस.... आजेच डारेस... हाँ नवा स्टेटस आजेच डारेस हाँ आजेच डारेस नवा स्टेटस आजेच डारेस हाँ आजेच  डारेस अइसे हे फोटु, कनेखी आँखी च मारे ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मोहत हे ओ... मोरे ये नंबर..... सेवे कर ले...... हाँ मोरे ये नंबर सेवे कर ले हाँ सेवे कर ले मोरे ये नंबर सेवे कर ले हाँ सेवे कर ले रमेशे हे नाम, काने धर ले, ये फूल कैयना हाय ओ फूल कैयना, पातर तोर कनिहा कजरारी ये तोर नैना, अउ कोयलबानी बैना, मो

बसदेवा गीत- देखव कतका जनता रोठ

 बसदेवा गीत-देखव कतका जनता रोठ  (चौपई छंद) फोटो Youtube.com से सौजन्‍य सुनव सुनव गा संगी मोर ।  जेला देखव तेने चोर नेता अउ जनता के गोठ । काला कहि हे दूनों पोठ नेता रहिथे केवल चार । जनता होथे लाख हजार खेत बेच के लड़े चुनाव ।  पइसा बांटे गॉंवों गॉंव ओखर पइसा झोकय कोन । जनता बइठे काबर मोन दारू बोकरा कोने खाय । काला फोकेट ह बड़ भाय देवइया भर कइसे चोर । झोकइया के मंसा टोर देही तेन ह लेही काल । झोकइया के जीजंजाल नेता जनता के हे जाय । ओखर गोठ कोन सिरजाय जब जनता म आही सुधार । मिटजाही सब भ्रष्‍टाचार नेता के छोड़व अब गोठ । देखव कतका जनता रोठ जनतामन के करथन बात । ऊँखर मन मा का  जज्‍बात बीता-बीता ठउर सकेल । गली-खोर मा घर ला मेल खेत तीर के परिया जोत । नदिया-नरवा सब ल रपोट फोकट के पाये बर जेन । झूठ लबारी मारय तेन सरकारी चाउर झोकाय । दू के सोलह ओ ह बनाय नाम गरीबी रेखा देख । बड़हर मन के नाम सरेख सबले ऊँपर ओखर नाम । होथे पहिली ऊँखर काम आघू रहिथे बड़हर चार । पाछू बइठे हे हकदार मरगे नैतिकता के बात । जइसे होगे दिन मा रात काखर-काखर गोठ बतॉंव । काखर-काखर गारी खॉव दिखय न ओला अपने काम । लेथे ओ हर दूसर के नाम

मोर दूसर ब्लॉग