जय-जय रघुराई, रहव सहाई, तैं सुखदाई जगत कहै, मन भगत लहै । गुण तोरे गावय, तेन अघावय, सब सुख पावय दुख न सहै, जब चरण गहै ।। सब मरम लखावत, धरम बतावत, चरित देखावत पाठ गढे़, ये जगत कढ़े । जग रिश्तादारी, करत सुरारी, जगत सम्हारी जगत पढ़े, सब आघु बढ़े ।। -रमेशकुमार सिंह चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
4 हफ़्ते पहले