सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

कतका झन देखे हें-

ताते-तात

चामर छंद'-मनखे

मनखे के सुभाव मोर तोर तोर मोर पोर पोर हे घुरे मोर तोर तोर मोर के सुभाव हा चुरे लोभ मोह लोक लाज छोड़ तान अड़े खोर खोर के गली गली ल छेक तैं खड़े
हाल की पोस्ट

श्रृंगारिक फागगीत

 श्रृंगारिक फागगीत चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे चल हां गोरी, तोर नयना म जादू हे, मोला करे बिभारे ।।टेक।। चल हां गोरी, तोर नयना म का घुरे हे, अउ का के करथे गोठ।।1।। चल हां गोरी, तोर नयना म मया घुरे हे, अउ मया के करथे गोठ ।।2।। चल हां गोरी, तोर नयना म का लगे हे, अउ दिखय कोने रंग ।।3।। चल हां गोरी, तोर नयना म जादू लगे हे, जेमा दिखय मया के रंग ।।4।। चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव चल हां मयारुक, तोर मया म बहिया हँव, जेमा बिगड़े मोरे चाल ।।टेक।। चल हां मयारुक, कहां जाके मैं लुकॉंव, अउ कहां पावँव चैन ।।1।। चल हां मयारुक, तोर गली म जाके लुकॉंव, अउ तोर दरस म पावँव चैन ।।2।। चल हां मयारुक,  मोला काबर नई लगय पियास, अउ काबर नई लगय भूख।।3।। चल हां मयारुक, तोर दरस बिन नई लगय पियास, अउ मिलन बिन ना लागय भूख ।।4।। -रमेश चौहान

पारंपरिक फागगीत

 पारंपरिक फागगीत चलो हां यशोदा धीरे झुला दे पालना चलो हो यशोदा धीरे झुला दे पालना तोर ललना उचक न जाय ।।टेक।। चलो हां यशोदा काहेन के पालना बनो है, तोर काहेन लागे डोर ।।1।। चलो हां यशोदा चंदन, काट पालना बनो हैं तोर रेशम लोग डोर ।।2।। चलो हां कदम तरी ठाढ़े भिजगै श्‍यामरो चलो हां कदम तरी ठाढ़े भिजगै श्‍यामरो केशर के उड़ै बहार ।।टेक।। चलो हां कदम तरी कै मन के सरगारो हे, कै मन उडै गुलाल ।।1।। चलो हां कदम तरी नौ मन के सरगारो हे, दस मन उडै गुलाल ।।2।। चलो हां राधा तोर चुनरी के कारन मे चलो हां राधा तोर चुनरी के कारन मे कन्‍हैया ने हो गई चोर ।।टेक।। चलो हां राधा कोन महल चोरी भयो है, तोर कोन महल भई लुट ।।1।। चलो हां राधा रंग महल चोरी भयो है, तोर शीश महल भई लुट ।।2।। चलो हां अर्जुन मारो बाण तुम गहि गहि के चलो हां अर्जुन मारो बाण तुम गहि गहि के, रथ हाके श्रीभगवान ।।टेक।। चलो हां अर्जुन कै मारै कै घायल है, कै परे सगर मैदान ।।1।। चलो हां अर्जुन नौ मारे दस घायल है, कई परे सगर मैदान ।।2।। चलो हां राम दल घेर लियो लंका को चलो हां राम दल घेर लियो लंका को, लंका के दसो द्वार ।। टेक।। चलो हां राम दल काहने के

फागुन महीना

फागुन फगुआ फाग के, रास रचे हे राग । महर-महर ममहाय हे, बगर-बगर के बाग ।। बगर-बगर के बाग, बलावय बसंत राजा । जाग जुड़ावत जाड़ हे, घमावत घमहा बाजा ।। राचय रास रमेश, संग मा संगी सगुआ । सरसो परसा फूल, लजावय फागुन फगुआ ।।

जवानी के जड़काला

जड़काला म जाड़ लगे, गरमी म लगे घाम । बाढ़े लइका मा लगय, मया प्रीत के खाम ।। मया प्रीत के खाम, उमर मा लागे आगी । उडहरिया गे भाग, छोर अपने घर के  पागी ।। सुनलव कहय रमेश, छोड़ पिक्‍चर के माला । मरजादा ला ओढ़, जवानी के जड़काला ।।

कइसे कहँव किसान ला भुइया के भगवान

कइसे कहँव किसान ला, भुइया के भगवान । लालच के आगी बरय, जेखर छतिया तान ।। जेखर छतिया तान, भरे लालच झांकत हे । खातू माटी डार, रोग हमला बांटत हे ।। खेत म पैरा बार, करे मनमानी जइसे । अपने भर ला देख, करत हे ओमन कइसे ।। घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक । अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।। थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया । बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।। ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा । पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।। नैतिक अउ तकनीक के, कर लौ संगी मेल । मनखे हवय समाज के, खुद ला तैं झन पेल ।। खुद ला तैं झन पेल, अकेल्‍ला के झन सोचव । रहव चार के बीच, समाजे ला झन नोचव । सुनलव कहय ’रमेश’, देश के येही रैतिक । सब बर तैं हर जीय, कहाथे येही नैतिक ।। -रमेश चौहान

सुरहोत्‍ती

सुरहोत्‍ती ये गॉंव के, हवय सरग ले नीक । मंदिर-मंदिर मा जले, रिगबिग दीया टीक ।। रिगबिग दीया टीक, खेत धनहा डोली मा । घुरवा अउ शमशान, बरत दीया टोली मा । सुनलव कहय रमेश, देख तैं चारों कोती । हवय सरग ले नीक, गॉंव के ये सुरहोत्‍ती ।।

आगी लगेे पिटरोल मा,

आगी लगेे पिटरोल मा, बरत हवय दिन राती । मँहगाई भभकत हवय, धधकत हे छाती ।। कोरोना के मार मा, काम-बुता लेसागे । अउ पइसा बाचे-खुचे, अब तो हमर सिरागे ।। मरत हवन हम अइसने, अउ काबर तैंं मारे ।  डार-डार पिटरोल गा, मँहगाई ला बारे ।। सुनव व्‍यपारी, सरकार मन,  हम कइसे के जीबो । मँइगाई के ये मार मा, का हम हवा ल पीबो ।।  जनता मरहा कोतरी,  मँहगाई के आगी । लेसत हे नेता हमर, बांधत कनिहा पागी ।।   कोंदा भैरा अंधरा, राज्‍य केन्‍द्र के राजा । एक दूसर म डार के, हमर बजावत बाजा ।। दुबर ल दू अषाढ़ कस, डहत हवय मँहगाई । हे भगवान गरीब के, तुँही ददा अउ दाई ।। -रमेश चौहान

चल देवारी मनाबो मया प्रीत घाेेर के

घनाक्षरी लिपे-पोते घर-द्वार, झांड़े-पोछे अंगना चुक-चुक ले दिखय, रंगोली खोर के । नवा-नवा जिंस-पेंट, नवा लइका पहिरे, उज्‍जर दिखे जइसे,  सूरुज ए भोर के ।। रिगबिग-रिगबिग, खोर-गली घर-द्वार रिगबिग दीया-बाती, सुरुज अंजोर के । मन भीतर अपन,  तैं ह संगी अब तो, रिगबिग दीया बार, मया प्रीत घाेेर के  ।।

हमू ल हरहिंछा जान देबे

 हमू ल हरहिंछा जान देबे    मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान

मोर दूसर ब्लॉग