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कतका झन देखे हें-

हमू ल हरहिंछा जान देबे

 हमू ल हरहिंछा जान देबे    मैं सुधरहूं त तैं सुधरबे । तै सुधरबे त वो । जीवन खो-खो खेल हे एक-दूसर ल खो ।। सेप्टिक बनाए बने करे, पानी, गली काबर बोहाय । अपन घर के हगे-मूते म हमला काबर रेंगाय ।। गली पाछू के ल सेठस नहीं, आघू बसे हस त शेर होगेस । खोर-गली ल चगलत हवस, अपन होके घला गेर होगेस । अपन दुवारी के खोर-गली कांटा रूंधे कस छेके हस । गाड़ा रवन रहिस हे बाबू, काली के दिन ल देखे हस ।। मनखे होबे कहूं तै ह संगी, हमू ल मनखे मान लेबे । अपन दुवारी के खोर-गली म, हमू ल हरहिंछा जान देबे ।। -रमेश चौहान

ये राखी तिहार

 ये राखी तिहार ये राखी तिहार, लागथे अब, आवय नान्हे नान्हे मन के । भेजय राखी, संग मा रोरी, दाई माई लिफाफा मा भर के । माथा लगालेबे, तै रोरी भइया, बांध लेबे राखी मोला सुर कर के । नई जा सकंव, मैं हर मइके, ना आवस तहू तन के । सुख के ससुरार भइया दुख के मइके, रखबे राखी के लाज जब मै आवंह आंसू धर के ।

तुकांत गज़ल-भीतरे भीतर जरव मत

 भीतरे भीतर जरव मत (तुकांत गज़ल) भीतरे भीतर जरव मत बिन आगी के बरव मत अपन काम ले काम जरूरी फेर बीमरहा कस घर धरव मत जेला जे पूछय तेला ते पूछव राम-राम कहे बिन कोनो टरव मत चार दिन के जिंदगी चारठन गोठ  चार बरतन के ठेस लगे लडव मत काना-फुँसी कानों कान होथे दूसर के कान ला भरव मत आँखी के देखे धोखा हो सकथे अंतस के आँखी बंद करव मत -रमेश चौहान

भाईदूज के दिन

चित्र गुगल से साभार /तुकबंदी/ भाईदूज के दिन , मइके जाहूँ कहिके बाई बिबतियाये रहिस  तिहार-बार के लरब ले झूकब बने अइसे सियानमन सिखाये रहिस जब मैं  पहुँचेवँ ससुरार, गाँव  मातर मा बउराये रहिस । घर मोहाटी देखेंवँ ऊहाँ सारा के सारा आये रहिस । भाईदूज के कलेवा  झड़के, माथा मा चंदन-चोवा लगाये रहिस येहूँ जाके अपन भाई के पूजा कर दू-चारठन रसगुल्ला खवाय रहिस आज कहत हे भाई  मोला सौ रुपया देइस अउ अपन सारा बर पेंट-कुरथा लाये रहिस -रमेश चौहान

मजा आगे आसो के देवारी म

/तुकबंदी/ मजा आगे मजा आगे आसो के देवारी मा देवारी मा जुरे जुन्ना संगवारी मा लइका मन के दाँय-दाँय फटाका मा घर दुवारी पूरे रंगोली के चटाका मा मजा आगे मजा आगे  देख पहटिया के मातर गउठान के साकुर चउक- चाकर गउरा-गउरी के परघौनी मा दरुहा-मंदहा के बचकौनी मा मजा आगे मजा आगे आसो जुँवा के हारे मा आन गाँव के टूरामन ला मारे मा चिहुरपारत  जवनहा मन के झगरा मा दरुहामन के बधिया कस ढलगे डबरा मा मजा आगे सिरतुन मा मजा आगे  आसो के पीये दारु मा गली-गली मंद बाजारु मा देवारी के तिहार मा दारु के बाजार मा -रमेश चौहन

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव

मैं छत्तीसगढ़िया हिन्दूस्तानी अंव महानदी निरमल गंगा के पानी अंव मैं राजीम जगन्नाथ के इटिका प्रयागराज जइसे फुरमानी अंव मैं भोरमदेव उज्जैन खजुराहो काशी के अवघरदानी अंव मैं बस्तर दंतेवाड़ा दंतेश्वरी भारत के करेजाचानी अंव मैं भिलाई फौलादी बाजू भारत भुईंया के जवानी अंव मोर कका-बबा जम्मो पीढ़ी के मैं रोवत-हँसत कहानी अंव जात-पात प्रांतवाद ले परे मैं भारत माता के जुबानी अंव

मूरख हमला बनावत हें

बॉट-बॉट के फोकट म मूरख हमला बनावत हे पढ़े-लिखे नोनी-बाबू के, गाँव-गाँव म बाढ़ हे काम-बुता लइका मन खोजय येखर कहां जुगाड़ हे बेरोजगारी भत्ता बॉट-बॉट वाहवाही तो पावत हे गली-गली हर गाँव के बेजाकब्जा म छेकाय हे गली-गली के नाली हा लद्दी म बजबजाय हे छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया गाना हमला सुनावत हे जात-पात म बाँट-बाँट के बनवात हे सामाजिक भवन गली-खोर उबड़-खाबड़ गाँव के पीरा काला कहन सपना देखा-देखा के वोट बैंक बनावत हे मास्टर पढ़ाई के छोड़ बाकी सबो बुता करत हे हमर लइका घात होषियार आघूच-आघूच बढ़त हे दिमाग देहे बर लइका मन ला थारी भर भात खवावत हे गाँव म डॉक्टर बिन मनखे बीमारी मा मरत हे कोरट के पेशी के जोहा म हमर केस सरत हे करमचारी के अतका कमी अपने स्टाफ बढ़ावत हे महिला कमाण्ड़ो घूम-घूम दरूवहा मन ला डरूवावय गाँव के बिगड़े शांति ल लाठी धर के मनावय जनता के पुलिस ला धर वो हा दारू बेचवावत हे

अब तो बैरी ला मार गिरावव जी

फोकट फोकट झन गोठियाव संगी काम के बात बतावव जी कइसे आतंक के नाम बुताही बने फोर के समझावव जी कोन परदा के पाछू बइठे आतंकी पिला जनमावय जी कोन ओला चारा पानी दे रुखवा कस सिरजावय जी कोन जयचंद विभषण बनके अपने भाई ला मरवावय जी कबतक हम लेसावत रहिबो रद्दा कोनो देखावव जी दूसर मा अतका दम कहां हे अपने घर संभालव जी जुंवा-लिख काहेक पट्टा गे हे अपने मुडी मिंजवावव जी कबतक हम केवल कहत रहिबो अब तो बैरी ला मार गिरावव जी

पटक बैरी ला हटवारा मा

अमरबेल के नार बियार, कइसन छाये तोर डारा मा । अतका कइसे तैं निरबल होगे, नाचे ओखर इसारा मा । कुकरी  मछरी होके कइसे, फसगे ओखर चारा मा । दरूहा  कोडिहा  होके कइसे, अपन पगडी बेचे पै बारा मा । दूसर के हितवार्ती होके, भाई ला बिसारे बटवारा मा । तै मनखे हस के बइला भइसा, बंधे ओखर पछवारा मा । तै छत्तीसगढ़ीया बघवा के जाये, परे मत रह कोलिहा के पारा मा । जान पहिचान अपन आप ला, अपन मुॅह देख दरपण ढारा मा । ओखर ले तैं कमतर कहां हस, पटक बैरी ला हटवारा मा ।।

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी

माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन भात-बासी, दूध-दही सब खाथे-पीथे मुॅह हा, सबो अंग मा एक बराबर, ताकत जगाथे मुॅह हा। देह मा मुॅह हा होथे जइसन.... देह मा मुॅह हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन डारा-पाना, फर-फूलवा सब रूखवा के हरिआये खातू-माटी, पानी-पल्लो, जब बने जर मा पाये रूखवा के जर हा होथे जइसन.... रूखवा के जर हा होथे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन बघवा-भालू, साप-नेवला पानी पिये एक घाट मा गरीब-गुरबा, गौटिया-बड़हर एक लगे हे राम राज मा राजा मा राम हा होय हे जइसन... राजा मा राम हा होय हे जइसन माई मुडी ला होना चाही वइसन । माई मुड़ी, माई मुड़ी, माई मुडी माई मुडी ला होना चाही कइसन

गज़लबानी-गहूँ संग कीरा रमजाजथे

गज़लबानी तुकबंदी गहूँ संग कीरा रमजाजथे  गहूँ संग कीरा रमजाजथे । दूध मा पानी बेचाजथे । संगत के अइसन असर नून मा मिरचा खवाजथे । रेंगत रेंगत नेता संग चम्मच हा नेता कहाजथे । बइठे बइठे जुवा मेरा खेत खार बेचाजथे । धनिया लेना कोन जरूरी छुये मा हाथ ममहाजथे । गुलाब फूल टोरत टोरत काटा मा हाथ छेदाजथे । मया कहूं होय निरमल दिल दिल मा समाजथे । बड़े संग मिले बिरोपान छोटे संग नाक कटाजथे । तैं जान तोर काम जाने गोठ गोठ मा गोठ आजथे ।

गांव-गांव अब तो संगी होवत हे शहर

गांव-गांव अब तो संगी होवत हे शहर । पक्की-पक्की घर-कुरिया पक्की हे डगर ।। पारा-पारा आंगन-बाड़ी स्कूल गे हे सुधर । छोटे-बड़े नोनी-बाबू अब पढ़े हे हमर ।। मोटर-गाड़ी गांव मा घला हवय अड़बड़ । नवा-नवा रद्दा-बाट मा नवा हे सफर ।। हर हाथ मा मोबाइल दिखय सबो डहर हेलो-हेलो सुनय-कहय देवत-लेवत खबर ।। तोरी-मोरी लोग-बाग अब तो गे हें बिसर । अपन-अपन काम -बूता मा मगन हे चारो पहर ।। गली-खोर अब अंजोर हे अब रतिहा पहर । घर-घर बिजली बरे अउ चले हे चवर ।। आनी-बानी गाल मा पोते स्नो अउ पाउडर । टीप-टांप टुरी-टनकी गांव मा ढावत हे कहर ।। -रमेश चौहान

पढ़ई पढ़ई

पढ़ई पढ़ई अइसन पढ़ई ले आखिर का होही । गुदा के अता पता नइये बाचे हवव बस गोही ।। कौड़ी के न काम के जांगर चोर भर तो होही । रात भर जागे हे बाबू, दिन भर अब तो सोही ।। न ओला पुरखा के मान हे न देश धरम के ज्ञान । अंग्रेजियत देखा देखा हमन ला तो अब बिट्टोही ।। विदेसी सिक्षा जगावय विदेसी संस्कृति के अभिमान । अपन धरम ला मानय नही बाबू बनगे अब कुल द्रोही ।। रीति रिवाज संस्कृती ला देवत हे अंधविश्वास के नाम । बिना विश्वास के देश परिवार समाज कइसे के होही ।। लईका पढ़थ हे कहिके, कोनो नई करावय कुछु काम । रूढ़ाय जांगर ले आखीर काम कइसे करके होही ।। लईका पढ़त लिखत हे घाते फेर कढ़त नइये । कढ़े बिना सूजी मा धागा कइसे करके पिरोही ।। पागे कहु नौकरी चाकरी त होगे परदेशिया । बुढ़ाय दाई ददा के डोंगा ला अब कोन खोही ।। नई पाइस कहूं कुछु काम ता घर के ना घाट के माथा धर के बाबू अब तो काहेक के  रोही ।। सिरतुन कहंव चाहे कोनो गारी देवव के गल्ला । गांव-गली नेता अऊ ऊखर चम्मच के अब भरमार होही । इंकरे आये ले होवत हे भ्रष्टाचार के अतका हल्ला । ईखर मन के करम ले अब देश शरमसार तो होही ।।

कृष्ण जन्माष्टमी

आठे कन्हया के लमे बाह भर बधाई भादो के महीना, घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे, ये रात कारी कारी । कंस के कारागार, बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा, खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाषवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अव जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान,

कोनो गांव नई जांव

हमर ममा गांव मा, होवत हे गा बिहाव । दाई अऊ बाई दुनो, कहत हे जाबो गांव ।। दाई कहे बाबू सुन, मोर ममा के नाती के । घात सुघ्घर आदत, का तोला बतांव ।। वो ही बाबू के बिहाव, होवत हे ग ना आज । मुंह झुंझूल ले जाबो, बाढ़ गे हे तांव ।। तोर सारी दुलौरीन, मोर ममा के ओ नोनी । घेरी घेरी फोन करे, भेजे मया ले बुलांव ।। मोटरा जोर मैं हर, करत हंव श्रृंगार । काल संझकेरहे ले, जाबो जोही ममा गांव ।। सियानीन मोटियारी, टूरा होवय के टूरी । सब्बो ला घाते भाथे, अपनेच ममा गांव ।। एके तारीक म हवे, दुनो कोती के बिहाव । सोच मा परे हवंव, काखर संग मैं जांव ।। दाई संग जाहूं मै ता, बाई ह बड़ रिसाही । गाल मुंह ल फुलेय, करही गा चांव चांव ।। बाई संग कहूं जाहूं, दाई रो रो देही गारी । ये टूरा रोगहा मन, डौकीच ला देथे भाव ।। बड़ मुश्किल हे यार, सुझत नई ये कुछु । काखर संग मैं जांव, काला का कहि मनांव ।। नानपन ले दाई के, घात मया पाय हंव । मन ले कहत हंव, दाई जिनगी के छांव ।। अब तो सुवारी बीना, जिनगी लागे बेमोल । जोही बीना जग सुन्ना, लगे जिनगी के दांव ।। छोड़ नई सकव मैं, दाई बाई दुनो ला तो । बि

मोर नोनी

खेलत घरघुन्दिया, गली खोर मोर नोनी । धुर्रा धुर्रा ले बनाय, घर चारो ओर नोनी ।। बना रंधनही खोली, आनी बानी तै सजाय । रांधे गढ़े के समान, जम्मा जोर जोर नोनी ।। माटी के दिया ह बने, तोर सगली भतली । खेल खेल म चुरय, साग भात तोर नोनी ।। सेकत चुपरत हे, लइका कस पुतरी । सजावत सवारत, चेंदरा के कोर नोनी ।। अक्ती के संझा बेरा, अंगना गाढ़े मड़वा । नेवता के चना दार, बांटे थोर थोर नोनी ।। पुतरा पुतरी के हे, आजे तो दाई बिहाव । दे हव ना टिकावन, कहे घोर घोर नोनी ।। कका ददा बबा घला, आवा ना तीर मा । दू बीजा चाऊर टिक, कहय गा तोर नोनी ।। माईलोगीन के बूता, ममता अऊ दुलार । नारीत्व के ये स्कूल मा, रोज पढ़े मोर नोनी

हे गौरी के लाल

बुद्धि के देवइया अऊ पिरा के हरइया हे गज मुख  वाला । सबले पहिली तोला सुमिरव हे षंकर सुत गौरी के लाला ।। वेद पुरान जम्मो तोरे च गुन ल गाय हे, सबले पहिली श्रीगणेष कहव बताय हे । सभो देवता ले पहिली सुमिरन तोरे कहाये हे, हे परभू मोरो अंतस ह तोरे च गुन ल गाये हे । शुरू करत हव तोर नाम ले, ये कारज गृह जंजाला, हे गजानन दया करहू झन होवय कुछु गड़बड़ झाला । हे गौरी के लाला......... जइसे लंबा लंबा सूड़ तोरे, लंबा कर दव सोच ल मोरे । जइसन भारी पेट तोरे, गहरा बना दव विचार ल मोरे । अपन माटी अऊ अपन पुरखा के सेवा गावंव ले सुर लय ताल । हे एकदन्त एक्केच किरपा करहू बुद्धि ले झन रहव मै कंगाल ।। हे गौरी के लाल..... जइसे भाते उमा महेश के मया ह तोला, ओइसने अपन मया दे दव मोला । मिठ मिठ लाडू जइसे भाते तोला, ओइसने गुतुर गुतुर भाखा दे दव मोला । कुमति के नाश कर सुमति ले भर दौव मोरो भाल । हे आखर के देवता मोरो गीत ल लौव सम्हाल ।। हे गौरी के लाल............ दाई ल धरती ददा ल अकास कहिके कहाय गणेश, तोर ये बुद्धि ल जम्मो देवता ले बड़का कहे हे महेश । तोरे च शरण आये नारद अऊ सब देवता संग सुरेश

खुशी मनाओ भई आज खुशी मनाओं

भादो के महीना घटा छाये अंधियारी, बड़ डरावना हे रात कारी कारी । कंस के कारागार बड़ रहिन पहेरेदार, चारो कोती चमुन्दा हे खुल्ला नईये एकोद्वार । देवकी वासुदेव पुकारे हे दीनानाथ, अब दुख सहावत नइये करलव सनाथ । एक एक करके छैय लइका मारे कंस, सातवइया घला होगे कइसे अपभ्रंस । आठवईंया के हे बारी कइसे करव तइयारी, ऐखरे बर होय हे आकाशवाणी हे खरारी । मन खिलखिवत हे फेर थोकिन डर्रावत हे, कंस के काल हे के पहिली कस एखरो हाल हे । ओही समय चमके बिजली घटाटोप, निचट अंधियारी के होगे ऊंहा लोप । बिजली अतका के जम्मो के आंखी कान मुंदागे, दमकत बदन चमकत मुकुट चार हाथ वाले आगे । देवकी वासुदेव के हाथ गोड़ के बेड़ी फेकागे, जम्मो पहरेदारमन ल बड़ जोर के निदं आगे । देखत हे देवकी वासुदेव त देखत रहिगे, कतका सुघ्घर हे ओखर रूप मनोहर का कहिबे । चिटक भर म होइस परमपिता के ऊंहला भान, नाना भांति ले करे लगिन ऊंखर यशोगान । तुहीमन सृष्टि के करइवा अव जम्मो जीव के देखइया अव, धरती के भार हरइया अऊ जीवन नइया के खेवइया अव । मायापति माया देखाके होगे अंतरध्यान, बालक रूप म प्रगटे आज तो भगवान । प्रगटे आज

धरे कलम गुनत हंव का लिखंव

धरे कलम गुनत हंव का लिखंव लइकामन बर संस्कार के गीत लिखंव, कचरा बिनईया लइकामन के चित्र खिचंव । कोनो कोनो लइका विडि़यो गेम खेलय, कोनो कोनो लइका ठेला पेलय । कोनो कोनो कतका महंगा स्कूल म पढ़य, कोनो कोनो बचपन म जवानी ल गढ़य । कोखरो कोखरो के संस्कार ल, ददा दाई मन दे हे बिगाड़। कोखरो कोखरो ददा दाई मन, भीड़ा दे हे जिये के जुगाड़ । बड़ आंगाभारू लइकामन के संसार ऐमा मै नई सकंव, धरे कलम गुनत हंव अब का लिखंव । धरे कलम गुनत हंव का लिखंव लिखथे सब मया मिरीत के बोल, रखदंव महू अपन हिरदय ल खोल । करेन बिहाव तब ले मया करे ल जानेन, ददा दाई कहिदेइस तेने ल अपन मानेन । अब तो बर न बिहाव देखावत हे दिल के ताव, बाबू मन रंग रूप ल त नोनी मन धन दोगानी ल देवत हे कइसन के भाव । जेन भाग के करे बिवाह तेखर मन के दशा ल विचार, न ददा के न दाई के घिरर घिरर के जिये बर लाचार । बड़ आंगाभारू हे मया पिरित के संसार ऐमा मै नई सकंव, धरे कलम गुनत हंव अब का लिखंव । धरे कलम गुनत हंव का लिखंव कतको झन लिखत हे नेतागिरी म व्यंग, महू लिखतेव सोच के रहिगेव दंग । ऐ नेतामन कोन ऐ करिया अक्षर भईंस बरोबर, जम्मो झन

हरेली हे आज

हरेली के गाड़ा गाड़ा बधाई - लइका सियान जुरमिल के खुशी मनाव हरेली हे आज । अब आही राखी तिजा पोरा अऊ जम्मो तिहार हो गे अगाज । चलव संगी धो आईय नागर कुदरा अऊ जम्मो औजार । बोवईय झर गे निदईय झर गे झर गे बिआसी के काज । हमर खेती बर देवता सरीखे नागर गैती हसिया, इखर पूजा पाठ करके चढ़ाबो चिला रोटी के ताज । लिम के डारा ले पहटिया करत हे घर के सिंगार । लोहार बाबू खिला ले बनावत हे मुहाटी के साज ।। ढाकत हे मुड़ी ल मछरी जाली ले गांव के मल्लार । ये छत्तीसगढ़ म हर तिहार के हे छत्तीस अंदाज ।। बारी बखरी दिखय हरियर, हरियर दिखय खेत खार । चारो कोती हरियर देख के हमरो मन हरियर हे आज ।। तरूवा के पानी गोड़इचा म आगे आज । माटी के सोंधी सोंधी महक के इही हे राज । गांव के अली गली म ईखला चिखला । चलव सजाबो गेडी के सुघ्घर साज ।। जम्मो लइका जवान मचलहीं अब तो , बजा बजा के गेड़ी के चर चर आवाज ।। चलो संगी खेली गेड़ी दउड अऊ खेली नरियर फेक, जुर मिल के खेली मन रख के हरियर हरियर आज । ................‘‘रमेश‘‘...........

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