गुमान मन करथे, मैं हा हवँव चलायमान । स्वभाव काया के, का हे देखव तो मितान ।। बिना टुहुल-टाहल, काया हे मुरदा समान । जभेच तन ठलहा, मन हा तो घूमे जहाँन ।। जहान घूमे बर, मन हा तो देथे फरमान । चुपे बइठ काया, गोड़-हाथ ला अपन तान ।। निटोर देखत हस, कुछ तो अब अक्कल लगाव । विचार के देखव, ये काखर हावे स्वभाव ।।
हिन्दी दिवस पर विशेष -भाषा, संस्कृति और आत्मगौरव का उत्सव
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डुमन लाल ध्रुव हिन्दी :राष्ट्र की विविधताओं को जोड़ने वाली सेतु हिन्दी केवल
एक भाषा नहीं बल्कि भारत की आत्मा, संस्कृति, परंपरा और राष्ट्र की विविधताओं
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18 घंटे पहले