गुमान मन करथे, मैं हा हवँव चलायमान ।  स्वभाव काया के, का हे देखव तो मितान ।।  बिना टुहुल-टाहल, काया हे मुरदा समान ।  जभेच तन ठलहा, मन हा तो घूमे जहाँन ।।   जहान घूमे बर, मन हा तो देथे फरमान ।  चुपे बइठ काया, गोड़-हाथ ला अपन तान ।।  निटोर देखत हस, कुछ तो अब अक्कल लगाव ।  विचार के देखव, ये काखर हावे स्वभाव ।।     
माँ, मिट्टी और मेहनत : रामेश्वर शर्मा की रचनाएँ
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ग़ज़ल जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता हैसृजक का लेख हो या गीत वह 
मशहूर होता है हक़ीक़त में अगर तुम प्यार करते हो सुनों यारोंजो दिल में प्यार 
बस जाए न फ...
1 दिन पहले
