घनाक्षरी लिपे-पोते घर-द्वार, झांड़े-पोछे अंगना चुक-चुक ले दिखय, रंगोली खोर के । नवा-नवा जिंस-पेंट, नवा लइका पहिरे, उज्जर दिखे जइसे, सूरुज ए भोर के ।। रिगबिग-रिगबिग, खोर-गली घर-द्वार रिगबिग दीया-बाती, सुरुज अंजोर के । मन भीतर अपन, तैं ह संगी अब तो, रिगबिग दीया बार, मया प्रीत घाेेर के ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले