1. दुनिया ला बनाये तैं, कहाये भगवान गा । दुनिया ला चलाये तैं, मनखे बदनाम गा ।। 2. पत्ता डोलय ना एको, मरजी बिन तोर तो । अपन मन के धुर्रा, उड़ावय न थोरको ।। 3. तहीं हवस काया के, सब मा एक प्राण गा । तहीं हवस माया के, अकेल्ला सुजान गा ।। 4. सबकुछ ह तो तोरे, हमर एक तो तहीं । तैं पतंग के डोरी, हम पतंग के सहीं ।। 5. सब मा तोर माया हे, तोला जउन भात हे । कहां हमर ये बेरा, कुछु अवकात हे ।। 6. मनखे मनखे माने, मनखे मनखे सबो । मनखेपन के देदे, प्रभु तैं वरदान गो ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले