अमृतध्वनि-कुण्डलियां कतका दुकला हे परे, दुल्हा मन के आज । पढ़े लिखे बाबू खिरत, आवत मोला लाज ।। आवत मोला, लाज बहुत हे, आज बतावत । दस नोनी मा, एके बाबू, पढ़ इतरावत ।। बाबू मन हा, पढ़...
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले