बर-पीपर के तुमा-कोहड़ा (समान सवैया छंद) बर-पीपर के ओ रूख राई, धीरे-धरे तो बाढ़त जावय । बाढ़त-बाढ़त ठाड़ खड़ा हो, कई बरस ले तब इतरावय ।। तुमा-कोहड़ा नार-बियारे, देखत-देखत गहुदत जावय । चारे महिना बड़ इतराये, खुद-बा-खुद ओ फेर सुखावय । -रमेशकुमार सिंह चौहान
Protected: जरथुश्त्र: ईरान के महान् पैगम्बर और मज़द-उपासना के प्रवर्तक
-
There is no excerpt because this is a protected post.
1 हफ़्ते पहले