बर-पीपर के तुमा-कोहड़ा (समान सवैया छंद) बर-पीपर के ओ रूख राई, धीरे-धरे तो बाढ़त जावय । बाढ़त-बाढ़त ठाड़ खड़ा हो, कई बरस ले तब इतरावय ।। तुमा-कोहड़ा नार-बियारे, देखत-देखत गहुदत जावय । चारे महिना बड़ इतराये, खुद-बा-खुद ओ फेर सुखावय । -रमेशकुमार सिंह चौहान
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
-
मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
3 हफ़्ते पहले