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कतका झन देखे हें-

साल नवा

नवा सोच के नवा साल के बधाई (दुर्मिल सवैया) मनखे मनखे मन खोजत हे,  दिन रात खुशी अपने मन के । कुछु कारण आवय तो अइसे, दुख मेटय जेन ह ये तन के । सब झंझट छोड़ मनावव गा, मिलके  कुछु कांहि तिहार नवा । मन मा भर के सुख के सपना,  सब कोइ मनावव साल नवा ।। -रमेश चौहान

सबला देवव संगी काम

कोने ढिंढोरा पिटत हवय, जात पात हा होगे एक । हमर हमर चिल्लावत हावे, कट्टर होके मनखे नेक ।। एक लाभ बर जात बताये, दूसर बर ओ जात लुकाय । बिन पेंदी के लोटा जइसे, ढुलमूल ढुलमुल ढुलगत जाय ।। दू धारी तलवार धरे हे, हमर देश के हर सरकार । जात पात छोड़व कहि कहि के, खुद राखे हे छांट निमार ।। खाना-पीना एके होगे, टूरा-टूरी घला ह एक । काबर ठाड़े हावे भिथिया, जात-पात के अबले झेक । सबले आघू जेन खड़े हे, कइसे पिछड़ा नाम धराय । सब ला जेन दबावत हावे, काबर आजे दलित कहाय ।। जे पाछू मा दबे परे हे, हर मनखे ला रखव सरेख । मनखे मनखे एके होथे, जात पात ला तैं झन देख ।। काम -धाम जेखर मेरा हे, जग मा होथे ओखर नाम । जेन हवे जरूरत के मनखे,  सबला देवव संगी काम ।।

तोर गुस्सा

तोर गुस्सा तोर आगी, करय तोला खाक । तोर मन हा बरत रहिही, देह होही राख ।। सोच संगी फायदा का, आन के अउ तोर । हाथ दूनो रोज उलचव,  मया मन मा जोर ।। -रमेश चौहान

मया के सुरता

उत्ती के बेरा जइसे सुरता तोरे जागे हे मन के पसरे बादर म सोना कस चमकत हे मोरे काया के धरती म अंग-अंग चहकत हे दरस-परस के सपना मा डेना-पांखी लागे हे सुरता के खरे मझनिया देह लकलक ले तिपे हे अंतस के धीर अटावत मया तोरे लिपे हे अंग-अंग म अगन लगे काया म मन छागे हे तोर हंसी के पुरवाही सुरता म जब बोहाय आँखी के बोली बतरस संझा जइसे जनाय आँखी म आँखी के समाये आँखी म रतिहा आगे हे

सुरूज के किरण संग मन के रेस लगे हे

सुरूज के किरण संग मन के रेस लगे हे छिन मा तोला छिन मा मासा नाना रूप धरे हे काया पिंजरा के मैना हा पिंजरा म कहां परे हे करिया गोरिया सब ला मन बैरी हा ठगे हे सरग-नरक ल छिन मा लमरय सुते-सुते खटिया मा झरर-झरर बरय बुतावय जइसे भूरी रहेटिया मा माया के धुन्धरा म लगथे मन आत्मा हा सगे हे मन के जीते जीत हे हारही कइसे मन ह रात सुरूज दिखय नही हरहिंछा घूमय मन ह ‘मैं‘ जानय न अंतर मन म अइसन पगे हे

बिहनिया के राम-राम

आज के बिहनिया सुग्घर, कहत हंव जय राम । बने तन मन रहय तोरे, बने तोरे काम । मया तोला पठोवत हंव, अपन गोठ म घोर । मया मोला घला चाही,  संगवारी तोर ।

हमर देश कइसन

हमर देश कइसन, सागर जइसन, सबो धरम मिलय जिहां । सुरूज असन बनके, मनखे तन के, गुण-अवगुण लिलय इहां । पर्वत कस ठाढ़े, जगह म माढ़े, गर्रा पानी सहिके । आक्रमणकारी, हमर दुवारी, रहिगे हमरे रहिके ।।

गाँव के हवा

रूसे धतुरा के रस गाँव के हवा म घुरे हे ओखर माथा फूट गे बेजाकब्जा के चक्कर मा येखर खेत-खार बेचागे दूसर के टक्कर मा एक-दूसर ल देख-देख अपने अपन म चुरे हे एको रेंगान पैठा मा कुकुर तक नई बइठय बिलई ल देख-देख मुसवा कइसन अइठय पैठा रेंगान सबके अपने कुरिया म बुड़े हे गाँव के पंच परमेश्वर कोंदा-बवुरा भैरा होगे राजनीति के रंग चढ़े ले रूख-राई ह घला भोगे न्याय हे कथा-कहिनी हकिकत म कहां फुरे हे

//छत्तीसगढ़ी माहिया//

तोर मया ला पाके मोर करेजा मा धड़कन  फेरे जागे तोर बिना रे जोही सुन्ना हे अँगना जिनगी के का होही देत मिले बर किरया मन मा तैं बइठे तैं हस कहां दूरिहा जिनगी के हर दुख मा ये मन ह थिराथे तोर मया के रूख मा सपना देखय आँखी तीर म मन मोरे जावंव खोले पाँखी

जब काल ह हाथ म बाण धरे

दुर्मिल सवैया जब काल ह हाथ म बाण धरे, त जवान सियान कहां गुनथे । झन झूमव शान गुमान म रे, सब राग म ओ अपने सुनथे ।। करलै कतको झगरा लड़ई, चिटको कुछु काम कहां बनथे । मन मूरख सोच भला अब तैं, फँस काल म कोन भला बचथे ।

अब तो हाथ हे तोरे

लिमवा कर या कर दे अमुवा अब तो हाथ हे तोरे मोर तन तमुरा, तैं तार तमुरा के करेजा मा धरे हंव मया‘, फर धतुरा के अपने नाम ल जपत रहिथव राधा-श्याम ला घोरे मोर मन के आशा विश्वास तोर मन के अमरबेल होगे पीयर-पीयर मोर मन अउ पीयर-पीयर मोर तन होगे मोर मया के आगी दधकत हे तोर मया ला जोरे तोर बहिया लहरावत हे जस नदिया के लहरा मछरी कस इतरावत हंव मैं, तोर मया के दहरा तोर देह के छाँव बन के मैं रेंगंव कोरे-कोरे

//घर-घर के दीया बन जाबे//

श्री हरिवंशराय बच्चन के 1955 में प्रकाशित काव्य संग्रह ‘प्रणय पत्रिका‘ में प्रकाशित कविता ‘मेरे अंतर की ज्वाला तुम घर-घर दीप शिखा बन जाओ‘ का छत्तीसगढ़ी अनुवाद- //घर-घर के दीया बन जाबे// मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे । मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे ।। सुरूज करेजा मा अंगार धरे सात रंग बरसाथे धरती म । समुन्दर नुनछुर पानी पी के अमरित बरसाथे धरती म ।। घाव छाती म धरती सहिके महर-महर ममहाथे फूल म.... अपन जात धरम मरजाद, रे मन दुख मा भुला झन जाबे । मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे ।। पुण्य हा जमा होथे जब आगी करेजा मा लगथे । येखर मरम जाने ओही जेखर काया ये सुलगथे ।। अंतस भरे रखथे जेन हा बनथे राख-धुंआ कचरा ... बाहिर निकल नाचथे-गाथे, ताव सकेल परकाश बन जाबे । मोर मन के दहकत आगी, घर-घर के दीया बन जाबे ।। अनुवादक-रमेश चौहान -------------------------- मूल रचना- ‘मेरे अंतर की ज्वाला तुम घर-घर दीप शिखा बन जाओ‘

रद्दा जोहत हे तोरे

शोभान-सिंहिका गाड़ी बने चलावव गा, चारो डहर देख । डेरी बाजू रहे रहव, छोड़व मीन-मेख ।। दारु मंद पीयव मत तुम, हेंडिल धरे हाथ । ओवरटेक करव मत गा, तुम कोखरो साथ ।। जीवन अनमोल हे, येखर समझ मोल । हाथ-पाँव तब सड़क थरव, मन मा नाप-तोल । फिरना हे अपने घर मा, चारो खूट घूम । रद्दा जोहत हे तोरे, लइका करत धूम । -रमेश चौहान

सड़क पैयडगरी दुनो (नवगीत)

सड़क पैयडगरी दुनो गोठ करत हें आज लाखों मोटर-गाड़ी मनखे आके मोर दुवारी सुनव पैयडगरी, करत हवँय दिन भर तोरे चारी सड़क मुछा मा ताव दे करत हवय बड़ नाज मुच-मुच मुस्काय पैयडगरी सुन-सुन गोठ लमेरा आँखी रहिके अंधरा हवय बनके तोरे चेरा (चेरा-चेला) मनखे-मनखे के मुड़ म कोन गिराथे गाज मोर दोष कहां हवय येमा अपने अपन म जाथें आघू-पाछू देखय नहि अउ आँखी मूंद झपाथें मखमल के गद्दा धरे डारे हंव मैं साज करिया हे रूप-रंग तोरे करिया धुँआ पियाथस चिर-चिर मनखे के तैं छाती अपन ल बने बताथस कहय हवा पानी सबो आय न तोला लाज पटर-पटर करत हवस तैं हा अपन ल नई बताये रेंगा-रेंगा के मनखे ला तैं हा बहुत थकाये दर्रा भरका के फुटे काखर करे लिहाज महर-महर पुरवाही धरके अपन संग रेंगाथंव देह-पान बने रहय उन्खर अइसन मन सिरजाथंव हाथ-गोड़ मनखे धरे करंय थोरको काज

बिना मौत के मौत हा

बिना मौत के मौत हा करथे समधी भेट गोल सुरूज के चक्कर काटत हवय ब्याकुल धरती चन्दा चक्कर काटत हावे कहां हवय गा झरती चक्कर खावय जीव हा येखर फसे चपेट मांजे धोय म धोवावय नहि भड़वा बरतन करिया नवा-नवा चेंदरा आज के दूसर दिन बर फरिया घानी के बइला हमन कहां भरे हे पेट कभू आतंकी बैरी मारय कभू रेलगाड़ी हा कभू फीस अस्पताल के अउ कभू डहे ताड़ी हा काखर ले हम का कही बंद पड़े हे नेट

चलन काल के जुन्ना होगे

कांव-कांव कउंवा करे, अँगना आही कोन छोड़ अलाली रतिहा भर के बेरा हा जागे हे लाल-लाल आगी के गोला उत्ती मा छागे हे चम्चम ले चमकत हवय जइसे पीयर सोन करिया नकली नंदा जाही उज्जर के अब आये मनखे-मनखे के तन-मन मा अइसे आसा छाये देखव आँखी खोल के चुप्पा बइठे कोन चलन काल के जुन्ना होगे खड़े नवा बर जोहे नवा गुलाबी नोट मिले हे सबके मन ला मोहे मन हा टूटे कोखरो बदले जब ये टोन

नेता के चरित्र,

नेता के चरित्र, होवय पवित्र, मनखे सबो कहत हे । जनता पुच्छला, हल्ला-गुल्ला, उन्खर रोज सहत हे ।। ओमन चिल्लाथे, देश  लजाथे, देख-देख झगरा ला । हमर नाम लाथे, अपन बताथे, देखव ओ लबरा ला ।।

जुन्ना नोट बंद होगे

सखी छंद (14 मात्रा के चार चरण दो पद पदांत 122) जुन्ना नोट बंद होगे । नवा नोट बर सब भोगे खड़े हवय बेंक दुवारी । जोहत सबो अपन बारी हाथे मा नोट कहां हे । हमरे मन खोट कहां हे बड़का नोट बंद होगे । छोटे नोट चंद होगे कोनो हा दै न उधारी । मैं बोलव नहीं लबारी नान-मून काम परे हे । साँय-साँय जेब करे हे जतका हवय नोट जाली । हो जाही गा सब खाली ओखर कुबड़ टूटही गा । करिया मरकी फूटही गा कहूँ-कहूँ नोट बरे हे । कहूँ-कहूँ नोट सरे हे कोनो फेकत  कचरा मा । कोनो गाड़े डबरा मा आतंकी के धन कौड़ी । कामा लेही अब लौड़ी रोवय सब चोर उचक्का । परे हवय अइसन धक्का मान देश के करबो गा । अपने इज्जत गढ़बो गा पीरा ला हम सहिबो गा । भारत माता कहिबो गा

रिगबिग ले अँगना मा

हाँसत हे जीया, बारे दीया, रिगबिग ले अँगना मा । मिटय अंधियारी, हे उजियारी, रिगबिग ले अँगना मा ।। गढ़ के रंगोली, नोनी भोली, कइसन के हाँसत हे । ले हाथ फटाका, फोर चटाका, लइका हा नाचत हे ।।

डूब मया के दहरा

पैरी चुप हे साटी चुप हे, मुक्का हे करधनिया । चूरी चुप हे झुमका चुप हे, बोलय नही सजनिया ।। चांदी जइसे उज्जर काया, दग-दग ले दमकत हे । माथ बिनौरी ओठ गुलाबी, चम-चम ले चमकत हे ।। करिया-करिया बादर जइसे, चुंदी बड़ इतराये । सोलह अँग ले आरुग ओ हा, नदिया कस बलखाये । मुचुर-मुचुर ओखर हाँसी, जइसे नव बिहनिया । आंखी ले तो भाखा फूटय, जस सागर के लहरा । उबुक-चुबुक हे मोरे मनुवा, डूब मया के दहरा ।। लाख चॅंदैनी बादर होथे, तभो कुलुप अॅधियारे । चंदा एक सरग ले निकलय, जीव म जीव ल डारे ।। जोही बर के छांव जनाथे, जिनगी के मझनिया..

मोर कलम शंकर बन जाही

पी के तोर पीरा मोर कलम शंकर बन जाही तोर आँखी के आँसू दवाद मा भर के छलकत दरद ला नीप-जीप कर के सोखता कागज मा मनखे मन के अपन स्याही छलकाही तर-तर तर-तर पसीना तैं दिन भर बोहावस बिता भर पेट ला धरे कौरा भर नई खावस भूख के अंगरा मा अंगाकर बन ये कड़कड़ ले सेकाही डोकरा के हाथ के लाठी बेटी के मन के पाखी चोर उचक्का के आघू दे के गवाही साखी आँखी मूंदे खड़े कानून ला रद्दा देखाही

दोहा के रंग pdf

दोहा के रंग

‘‘ आँखी रहिके अंधरा‘ pdf

दिनांक 3 अप्रैल 2016 के मुगेली मा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष डॉ. विनय पाठक के शुभ हाथ ले मोर छत्तीसगढ़ी दूसर पुस्तक ‘‘ आँखी रहिके अंधरा‘ (कुण्डलियां छंद के कोठी ) के विमोचन होइस । पुस्तक पढ़व

ऊही ठउर ह घर कहाथे (नवगीत)

झरर-झरर चलत रहिथे जिहां मया के पुरवाही ऊही ठउर ह घर कहाथे ओदरे भले हे छबना फुटहा भिथिया के लाज ला ढाके हे परदा रहेटिया के लइका खेलत रहिथे मारत किलकारी ओही अँगना गजब सुहाथे अपन मुँह के कौरा ला लइका ला खवावय अपन कुरथा ला छोड़ ओखर बर जिन्स लावय पाई-पाई जोरे बर जांगर ला पेर-पेर ददा पसीना मा नहाथे अभी-अभी खेत ले कमा के आये हे बहू ताकत रहिस बेटवा अब चुहकत हे लहू लांघन-भूखन सहिथे लइका ला पीयाय बिन दाई हा खुदे कहां खाथे माटी, ईटा-पथरा के पोर-पोर मा मया घुरे हे माई पिल्ला के पसीना मा लत-फत ले मया हा चुरे हे खड़ा होथे जब अइसन घर-कुरिया के भथिया तभे सब मा मया पिरोथे

हिन्दू के बैरी हिन्दू

हिन्दू ला हिन्दू होय म, आवत हवय लाज । हिन्दू के बैरी हिन्दू, काबर हवय आज ।। सबो धरम दुनिया मा हे, कोनो करे न बैर । हिन्द ह हिन्दू के नो हय, कोन मनाय खैर ।। सबो धरम  हा इहां बढ़य, हमला न विद्वेश । हमर मान ला रउन्द मत, आय हमरो देश ।। हिन्दू कहब पाप लागय, अइसन हे समाज । दुनिया भर घूमत रहिके, नई बाचय लाज ।।

जन्नत ला डहाय

सिंहिका छंद ये बैरी अपने घर मा. आगी तो लगाय । मनखे होके मनखे ला. अब्बड़ के सताय ।। अपने ला धरमी कहिथे. दूसर ला न भाय ।। जन्नत के ओ फेर परे, जन्नत ला डहाय ।।

मन के अंधियारी मेट ले

मन के अंधियारी मेट  ले (सरसी छंद) मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । मनखे मनखे एके होथे, ऊंच-नीच ला टार ।। घर अँगना हे चिक्कन चांदन, चिक्कन-चिक्कन खोर । मइल करेजा के तैं धो ले, बांध मया के डोर । मन के दीया बाती धर के, तेल मया के डार।। मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । जनम भूमि के दाना पानी, हवय तोर ये देह । अपन देष अउ धरम-करम मा, करले थोकिन नेह ।। अपने पुरखा अउ माटी के, मन मा रख संस्कार । मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार । नवा जमाना हे भौतिक युग, यंत्र तंत्र ला मान । येमा का परहेज हवय गा, रखव समय के ध्यान । भौतिक बाहिर दिखवा होथे, अंतस के संस्कार । मन के अंधियारी मेट ले, अंतस दीया बार ।

दाना-दाना अलहोर

अपन सबो संस्कार ला, मान अंध विश्वास । संस्कृति ला कुरीति कहे, मालिक बनके दास । पढ़े लिखे के चोचला, मान सके ना रीति । कहय ददा अढ़हा हवय, अउ संस्कार कुरीति ।। रीति रीति कुरीति हवय, का बाचे संस्कृति । साफ-साफ अंतर धरव , छोड़-छाड़ अपकृति ।। दाना-दाना अलहोर के, कचरा मन ला फेक । दाना कचरा संग मा, जात हवय का देख ।। धरे आड़ संस्कार के, जेन करे हे खेल । दोषी ओही हा हवय, संस्कृति काबर फेल ।। दोषी दोषी ला दण्ड दे, संस्कृति ला मत मार । काली के गलती हवय, आज ल भला उबार ।।

ये जीनगी के काहीं धरे कहां हे

अभी मन हा भरे कहां हे ये जीनगी के काहीं धरे कहां हे चाउर दार निमेर के पानी कांजी भरे हे घर के मोहाटी मा दीया बाती धरे हे अभी चूल्हा मा आगी बरे कहां हे करिया करिया बादर हा छाये हे रूख-राई हा डारा-पाना ल डोलाये हे पानी के बूँद हा अभी धरती मा परे कहां हे काल-बेल के घंटी घनघनावत हे हड़िया के अंधना सनसनावत हे जोहत हे भीतरहिन अभी पैना भरे कहां हे

गाय गरूवा अब पोषय कोन

जुन्ना नागर बुढ़वा बइला पटपर भुईंया जोतय कोन खेत खार के पक्की सड़क म टेक्टर दउड़य खदबद-खदबद बारह नाशी नागर के जोते काबर कोंटा बाचे रदबद बटकी के बासी पानी के घइला संगी के ददरिया होगे मोन पैरा-भूसा  दाना-पानी छेना खरसी गोबर कचरा घुरवा के दिन हा बहुरे हे कोन परे अब येखर पचरा फोकट म घला होगे महंगा गाय गरूवा अब पोषय कोन

नारी नर ले भारी

छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी नर ले भारी । जेन काम मा देखव संगी, लगे हवय गा नारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी नो हय अबला । देखाये हे अपने ताकत, नारी मन हा सब ला । छन्न पकइया छन्न पकइया, सेना मा हे नारी । बैरी मन के छाती फाड़े, मारत हे किलकारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, हवे कलेक्टर नारी । मास्टर डाँक्टर इंजिनियर अउ, हवे पुलिस पटवारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी के का कहना । हावे नेता अउ अधिकारी, अम्मा दीदी बहना । छन्न पकइया छन्न पकइया, नारी बने व्यपारी । हर काउन्टर मा नोनी मन, गोठ करे हे भारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, लगे अचंभा भारी । घर के अपने बुता बिसारे, पढ़े-लिखे कुछ नारी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, वाह रे मोटियारी । बना नई सके चाय कप भर, करे हे होशियारी । छन्न पकइया छन्न पकइया, अब के आन भरोसा । दाई पालनहारी रहिस ग, परसे कई परोसा ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, मनखे चिरई होगे । धरती के कुरिया ला छोड़े, गगन म जाके सोगे ।।

जात.पात ला छोड़व कहिथे

जात.पात ला छोड़व कहिथे, गिनती जे करथे । बाँट-बाँट मनखे के बोटी, झोली जे भरथे ।। गढ़े सुवारथ के परिभाषा, जात बने कइसे । निरमल काया के पानी मा, रंग घुरे जइसे ।। अगड़ी पिछड़ी दलित रंग के, मनखे रंग धरे । रंग खून के एक होय कहि, फोकट दंभ भरे । जात कहां रोटी-बेटी बर, कहिथे जे मनखे । आरक्षण बर जाति बता के, रेंगे हे तनके ।। खाप पंचायत कोरी.कोरी, बनथे रोज नवा । एक बिमारी अइसन बाचे, बाढ़े रोज सवा ।।

काम ये खेती किसानी आय पूजा आरती

   काम ये खेती किसानी, आय पूजा आरती ।     तोर सेवा त्याग ले, होय खुश माँ भारती ।।     टोर जांगर तैं कमा ले, पेट भर दे अब तहीं ।     तैं भुईयां के हवस गा, देव धामी मन सहीं ।। 1।।     तोर ले हे गाँव सुघ्घर, खेत पावन धाम हे ।     तैं हवस गा अन्नदाता, जेन सब के प्राण हे ।।     मत कभू हो शहरिया तैं, कोन कर ही काम ला ।     गोहरावत हे भुईंयां, छोड़ झन ये धाम ला ।।2।।   

चमचा मन के ढेर हे

चमचा मन के ढेर हे बात कहे मा फेर हे गोड़ पखारत देखेंव जेला ओही बने लठैत हे पिरपिट्टी ओखर घर के हमर मन बर करैत हे कुकुर कस पूछी डोलावय कइसे कहिदंव शेर हे हाँक परे मा सकला जथे मंदारी के डमरू सुन बेंदरा भलुवा बन के कइसन नाचथे ओखरे धुन चारा के रहत ले चरिस अब बोकरा कोन मेर हे

अपने डहर मा रेंग तैं

अपने डहर मा रेंग तैं, काटा खुटी ला टार के । कोशिश करे के काम हे, मन के अलाली मार के ।। जाही कहां मंजिल ह गा, तोरे डगर ला छोड़ के । तैं रेंग भर अपने डगर, काया म मन ला जोड़ के ।।

‘मोर गजानन स्वामी बिराजे हे‘ mp3

मोर ये गीत ला स्वर दे हे- -प्रेम पटेल ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ ‘मोर गजानन स्वामी बिराजे हे‘

‘आजा मोरे अँगना‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘आजा मोरे अँगना‘ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ ‘आजा मोरे अँगना‘

‘गढ़ बिराजे हो मइया‘mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤‘गढ़ बिराजे हो मइया‘

‘भादो के महिना‘mp3

‘भादो के महिना‘  कृष्ण जन्म के ये भजन झपताल म आबद्व हे ।  छत्तीसगढ़ी म शास्त्रीय संगीय गायन बहुते सुग्घर हे- मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल  ⇩⇩⇩⇩⇩⇩⇩  सुने बर  येला चपकव- भजन-भादो के महिना

‘हे महामाई दया कर‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल  ‘हे महामाई दया कर‘ ये गीत ला सुने बर ये लिंक मा जावव- ➤ हे महामाई दया कर

‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल ‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3QjhIVmxKSzc3RXM ‘जगमग-जगमग जोत जलत हे‘

‘टाँठ-टाँठ जिन्स पेंट पहिरे‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘टाँठ-टाँठ जिन्स पेंट पहिरे‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3Ui1DdEtqM1MzQnM

‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ mp3

मोर गीत ला आवाज दे हें- प्रेम पटेल अउ स्वाती सराफ ‘छत्तीसगढ़ ला कहिथे भैया‘ https://drive.google.com/open?id=0B_vVk5gISWv3bDUwNnVma0NKMWM

मउत

मउत ह करिया बादर बन चौबीस घंटा छाये हे कभू सावन के बादर बन खेत खार ला हरियावय फल-फूल अन्न-धन्न  उपजाके जीव-जीव ला सिरजावय कभू-कभू गाज बनके आगी ल बरसाये हे ओही बादर ला देख मनखे झूमय नाचय आगी कस दहकत घाम ले मनखे-मनखे बाचय गुस्सा मा जब बादर फाटय पर्वत घला बोहाये हे एक बूँद बरसे न जब बादर चारो कोती हाहाकार मचे हे सृष्टि के हर अनमोल रचना ये चक्कर ले कहां बचे हे आवत-जावत करिया बादर सब ला नाच नचाये हे

मन के परेवना

मन के परेवना उड़ी-उड़ी के दुनिया भर घूमत हे ठोमहा भर मया होतीस सुकुन के पेड़ जेन बोतीस लहर लहर खुषी के लहरा तन मन ला मोर भिगोतीस आँखी मा सपना देखी-देखी के अपने तकिया चूमत हे अरझे सूत ला खोलत-खोलत अपने अपन मा बोलत-बोलत जीनगी के फांदा मा फसे चुरमुरावत हे डोलत-डोलत अपने हाथ ला चाब-चाब के अपने आँखी ला घूरत हे

गीत कोयली लीम करेला

गीत कोयली लीम करेला कउवा बोली आमा उत्ती के सुरूज, बुड़ती उवय बुड़ती के सुरूज उत्ती बुड़य मनखे नवा सोच ला पाये शक्कर मा मिरचा ला गुड़य होगे जुन्ना हा, जहर महुरा आये नवा जमाना डिलवा डिलवा डबरा होगे डबरा डबरा बिल्डिंग पोगे कका बबा के संगे छोड़े दाई ददा हा अलग होगे । माचिस काड़ी छर्री-दर्री समाही अब कामा झूठ लबारी उज्जर दिखय अंधरा मन इतिहास लिखय अपन भाषा हा पर के लागय पर के भाषा मनखे मन सीखय खड़े पेड़ ला टंगिया मा काटय बोये नवा दाना

अंधियारी मेट दे

(गीतिका छंद) ठान ले मन मा अपन तैं, जीतबे हर हाल मा । जोश भर के नाम लिख दे, काल के तैं गाल मा । नून बासी मा घुरे कस, दुख खुशी ला फेट दे । एक दीया बार के तै, अंधियारी मेट दे ।

पढ़े काबर चार आखर,

रूपमाला छंद पढ़े काबर चार आखर, इहां सोचे कोन । डालडा के बने गहना, होय चांदी सोन ।। पेट पूजा करे भर हे, बने ज्ञानी पोठ । सबो पढ़ लिख नई जाने, गाँव के कुछु गोठ ।। मोर लइका मोर बीबी, मोर ये घर द्वार । छोड़ दाई ददा भाई, करे हे अत्याचार ।। सोंध माटी नई जाने, डगर के चिखला देख । पढ़े अइसन दिखे ओला, गांव मा मिन मेख । ज्ञान दीया कहाथे जब, कहां हे अंजोर । नौकरी बर लगे लाइन, अपन गठरी जोर ।।

गांव

मधुमालती छंद सुन गोठ ला, ये धाम के। पहिचान हे, जे काम के हम आन के, खाये सुता । धर खांध ला, करथन बुता छोटे बड़े, देथे मया । सब आदमी,  करथे दया सुख आन के, मन मा धरे । दुख आन के, सब झन भरे काकी कका, भइया कहे । दाई बबा, सब बर सहे हर बात ला, सब मानथे । सब नीत ला, भल जानथे चल खेत मा, हँसिया धरे । हे धान मा, निंदा भरे दाई कहे, चल बेटवा ।  मत घूम तै, बन लेठवा ये देष के, बड़ शान हे । जेखर इहां तो मान हे जेला कहे, सब गांव हे । जे स्वर्ग ले निक ठांव हे

//मुक्तक//

सीखव सीखव बने सीखव साँव चेत होय । आशा पैदा करव खातूहार खेत होय ।। बदरा बदरा निमारव छाँट बीज भात पानी बादर सहव संगी नदी रेत होय ।। -रमेश चौहान

कतका दिन ले सहिबो

जे चोरी लुका करय, अड़बड़ घात । अइसन बैरी ला अब, मारव लात ।। कतका दिन ले सहिबो, अइसन बात । कब तक बिरबिट करिया, रहिही रात ।। नई भुलाये हन हम, पठान कोट । फेर उरी मा कइसे, होगे चोट ।। बीस मार के बैरी, मरथे एक । अब तो बैरी के सब, रद्दा छेक । कठपुतली के डोरी, काखर हाथ । कोन-कोन देवत हे, उनखर साथ ।। छोलव चाचव अब तो , कचरा कांद । बैरी हा घुसरे हे, जेने मांद ।।

//भ्रष्टाचार// (नवगीत)

घुना किरा जइसे कठवा के भ्रष्टाचार धसे हे लालच हा अजगर असन मनखे मन ला लिलत हे ठाठ-बाट के लत लगे दारू-मंद कस पियत हे पइसा पइसा मनखे चिहरय जइसे भूत कसे हे दफ्तर दफ्तर काम बर टेक्स लगे हे एक ठन खास आम के ये चलन बुरा लगय ना एक कन हमर देश के ताना बाना हा  अपने जाल फसे हे रक्तबीज राक्षस असन सिरजाथे रक्सा नवा चारो कोती हे लमे जइसे बगरे हे हवा अपन हाथ मा खप्पर धर के अबतक कोन धसे हे ।

प्रभु ला हस बिसराये

चवपैया छंद काबर तैं संगी, करत मतंगी, प्रभु ला हस बिसराये। ये तोरे काया, प्रभु के दाया, ओही ला भरमाये ।। धर मनखे चोला, कइसे भोला, होगे खुद बड़ ज्ञानी । तैं दुनिया दारी, करथस भारी, जीयत भर मन मानी ।। रमेश चौहान

कहस अपन ला मनखे तैं हा

तोर करेजा पथरा होगे । जागे जागे कइसे सोगे । आँखी आघू कुहरा छागे अपन सुवारथ आघू आगे कहस अपन ला मनखे तैं हा तोरे सेती दूसर भोगे । बेजा कब्जा घात करे हस जगह जगह मा मात करे हस खोर-गली अउ तरिया परिया जेती देखव एके रोगे । पर के बांटा अपने माने फोकट बर तैं पसर ल ताने एको लाज न तोला आवय ये गौटिया भिखारी होगे ।

छत्तीसगढ़ी नवगीत: नाचत हे परिया

(नवगीत म पहिली प्रयास) नाचत हे परिया गावत तरिया घर कुरिया ला, देख बड़े । सुन्ना गोदी अब भरे दिखे आदमी पोठ अब सब झंझट टूट गे सुन के गुरतुर गोठ सब नरवा सगरी अउ पयडगरी सड़क शहर के, माथ जड़े । सोन मितानी हे बदे, करिया लोहा संग कांदी कचरा घाट हा देखत हे हो दंग चौरा नंदागे, पार हरागे बइला गाड़ी, टूट खड़े । छितका कोठा गाय के पथरा कस भगवान पैरा भूसा ले उचक खाय खेत के धान नाचे हे मनखे बहुते तनके खटिया डारे, पाँव खड़े ।।

ये बरखा रानी विनती सुनलव

ये बरखा रानी, सुनव कहानी, मोर जुबानी, ध्यान धरे । तोरे बिन मनखे, रहय न तनके, खाय न मनके, भूख मरे ।। बड़ चिंता करथें, सोच म मरथे, देखत जरथे, खेत जरे । कइसे के जीबो, काला पीबो, बूंद न एको, तोर परे ।। थोकिन तो गुनलव, विनती सुनलव, बरसव रद्-रद्, एक घड़ी । मानव तुम कहना, फाटे धनहा, खेत खार के, जोड़ कड़ी ।। तरिया हे सुख्खा, बोर ह दुच्छा, बूंद-बूंद ना, हाथ धरे । सुन बरखा दाई, करव सहाई, तोर बिना सब, जीव मरे ।।

भौजी

ये सुक्सा भाजी, खाहव काजी, पूछय भौजी, साग धरे  । ओ रांधत जेवन, खेवन-खेवन, डारत फोरन, मात करे ।। ओखर तो रांधे, सबो ल बांधे, मया म फांदे, जोर मया । जब दाई खावय, हाँस बतावय, बहुत सुहावय, देत दया ।

रदिफ, काफिया,बहर

221/ 222/ 212/ 2222 आखिर म घेरी-बेरी जउन आखर आथे । ओ हा गजल मुक्तक के रदिफ तो बन जाथे । तुक काफिया हा होथे रदिफ के आघू मा, एके असन मात्रा क्रम बहर बन इतराथे  । -रमेश चौहान

हमर इज्जत ला लूटत हवे

122 222 212 कुकुर माकर कस भूकत हवे । शिकारी कस तो टूटत हवे ।। बने छैला टूरा मन इहां हमर इज्जत ला लूटत हवे ।

सुन रे भोला

ये मनखे चोला, सुन रे भोला, मरकी जइसे, फूट जथे । ये दुनियादारी, चार दुवारी, परे परे तो, छूट जथे ।। मनखेपन छोड़े, मुँह ला मोड़े, सबो आदमी, ठाँड़ खड़े । अपने ला माने, छाती ताने, मारत शाने, दांव लड़े ।।

देख महंगाई

ये चाउर आटा, भाजी भाटा, आही कइसे, दू पइसा । देखव महँगाई, बड़ करलाई, मनखे होगे, जस भइसा ।। वो दिन अउ राते, काम म माते, बस पइसा के, चक्कर मा । माथा ला फोरे, जांगर टोरे, अपन पेट के, टक्कर मा ।

मुक्तक

मुक्तक 122 222, 221 121 2 सुते मनखे ला तै, झकझोर उठाय हस । गुलामी के भिथिया, तैं टोर गिराय हस ।। उमा सुत लंबोदर, वो देश ल देख तो । भरे बैरी मन हे, तैं आज भुलाय हस । -रमेश चौहान

मुक्तक

मुक्तक 222 212, 211 2221 आखर के देवता, ज्ञान भरव महराज । बाधा के हरइया, कष्ट हरव महराज ।। जग के गण राज तैं, राख हमर गा मान । हम सब तोरे शरण, हाथ धरव महराज ।। -रमेश चौहान

जस चश्मा के रंग होय

जस चश्मा के रंग होय । तइसे मनखे दंग होय भाटा कइसे हवय लाल । पड़े सोच मा खेमलाल चश्मा ला मन मा चढ़ाय । जग ला देखय हड़बड़ाय करिया करिया हवय झार । ओ हा कहय मन ला मार अपन सोच ले दुनिया देख । मनखे जग के करे लेख तोर मोर हे एक रंग । कहिथे जब तक रहय संग दुनिया हा तो हवय एक । दिखथे घिनहा कभू नेक दुनिया के हे अपन हाल । तोरे मन के अपन चाल दस अँगरी हे तोर हाथ । छोटे बड़े हवे एक साथ मुठ्ठी बनके रहय संग । काबर होथव तुमन तंग

बादर पानी मा कभू

बादर पानी मा कभू, चलय न ककरो जोर । कब होही बरखा इहां, जानय वो चितचोर ।। जानय वो चितचोर, बचाही के डूबोही । वोही लेथे मार, दया कर वो सिरजोही । माथा धरे रमेश, छोड़ बइठे हे मादर । कइसे करय उमंग, दिखय ना पानी बादर ।।

तीजा

करू करेला तैं हर रांध । रहिबो तीजा पेट ल बांध तीजा मा निरजला उपास । नारीमन के हे विश्वास छत्तीसगढ़ी ये संस्कार । बांधय हमला मया दुलार धरके श्रद्धा अउ विश्वास । दाई माई रहय उपास सीता के हे जइसे राम । लक्ष्मी के हे जइसे श्याम गौरी जइसे भोला तोर । रहय जियर-जाँवर हा मोर अमर रहय हमरे अहिवात । राखव गौरी हमरे बात मांघमोति हा चमकय माथ । खनकय चूरी मोरे हाथ नारी बर हे पति भगवान । मांगत हँव ओखर बर दान काम बुता ला ओखर साज । रख दे गौरी हमरे लाज

मुक्तक

डगर मा पांव अउ मंजिल मा आँखी होवय । सरग ला पाय बर तोरे मन पाँखी होवय ।। कले चुप हाथ धर के बइठे मा का होही । बुता अउ काम हा तुहरे अब साँखी होवय ।।

यशोदा के ओ लाला

नंदलाल के लाल, यशोदा के ओ लाला । बासुरिया धुन छेड़, जगत मा घोरे हाला ।। माखन मटकी फोर, डहर मा छेके ग्वाला । बइठ कदम के डार, बलावत हस तैे काला । ओ बंशी के तान, सुने बर मोहन प्यारे । जड़ चेतन सब जीव, अपन तन मन ला हारे ।। सुन लव मोर पुकार, फेर ओ बंशी छेड़व । भरे देह मा पीर, देह ले कांटा हेरव ।।

जीबो मरबो देश बर

एक कसम ले लव सबो, जीबो मरबो देश बर । करब देश हित काम सब, गढ़ब चरित हम देश बर ।। मरना ले जीना कठिन,  जी के हम तो देखबो । तिनका तिनका देश बर, चिरई असन सरेखबो ।। भरबो मरकी देश के, बूँद-बूँद पानी होय के । जुगुनू जस बरबो हमन, जात-पात अलहोय के ।। अपन गरब सब छोड़ के, गरब करब हम देश बर । एक कसम ले लव सबो देश धरम सबले बड़े, जेला पहिली मानबो । पाछू अल्ला राम ला,  हमन देवता जानबो ।। भाषा-बोली  के साज मा, गाबो एके तान  रे । दुनिया भर मा देश के, हमन बढ़ाबो शान रे ।। अपने घर परिवार कस, करब मया हम देश बर ।।एक कसम ले लव सबो बैरी हा काहीं करय, फसन नहीे हम चाल मा । सधे पाँव ले रेंगबो, अपन डगर हर हाल मा । बेजाकब्जा छोड़बो, छोड़ब भ्रष्टाचार ला । करब अपन कर्तव्य ला, चातर करब विचार ला । मिल जाही अधिकार हा, करम करब जब देश बर ।।एक कसम ले लव सबो

धन धन तुलसी दास ला,

धन धन तुलसी दास ला, धन धन ओखर भक्ति ला। रामचरित मानस रचे,  कहिस चरित के शक्ति ला ।। मरयादा के डोर मा, बांध रखे हे राम ला । गढ़य चरित मनखे अपन, देख राम के काम ला । जीवन जीये के कला, बांटे तुलसी दास हा । राम बनाये राम ला, मरयादा के परकाश हा ।। रामचरित मानस पढ़व, सोच समझ के लेख लव । कइसे होथे संबंध हा, रामचरित ले देख लव ।। राम राज के सोच हा, कइसे पूरा हो सकत । कोनो न सुधारे चरित, बोलत रहिथें बस फकत ।।

आगे आगे सावन आगे

आगे आगे सावन आगे, जागे भाग हमार । अपन मनौती मन मा लेके, जाबो शिव दरबार ।। धोवा धोवा चाउर धर ले, धर ले धतुरा फूल । बेल पान अउ चंदन धर ले, धर ले बाती फूल ।। दूध रिको के पानी डारब, अपन मया ला घोर । जय जय महादेव शिव शंकर, बोलब हाथे जोर ।। सोमवार दिन आये जतका, रहिबो हमन उपास । मन के पीरा हमरे मिटही, हे हमला विश्वास ।। मन मा श्रद्धा के जागे ले, मिल जाथे भगवान । नाम भले हे आने आने, नो हय कोनो आन ।।

आज हरेली हाबे

छन्न पकइया छन्न पकइया, आज हरेली हाबे । गउ माता ला लोंदी दे के, बइला धोये जाबे । छन्न पकइया छन्न पकइया, दतिया नांगर धोले । झउहा भर नदिया के कुधरी, अपने अॅगना बो ले ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, कुधरी मा रख नागर । चीला रोटी भोग लगा के, खा दू कौरा आगर ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, ये पारा वो पारा । राउत भइया हरियर हरियर, खोचे लिमवा डारा । छन्न पकइया छन्न पकइया, घर के ओ मोहाटी । लोहारे जब खीला ठोके, लागे ओखर साटी ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, केवट भइया आगे । मुड़ मा डारे मछरी जाली, लइका मन डररागे ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, नरियर फेके जाबो । खेल खेल मा जीते नरियर, गुड़ मा भेला खाबो ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, गेड़ी चर-चर बाजे । चढ़य मोटियारी गेड़ी जब, आवय ओला लाजे ।। छन्न पकइया छन्न पकइया, सबले पहिली आथे । परब हरेली हमरे गढ़ के, सब झन ला बड़ भाथे ।।

मोर गांव हे सुख्खा

चारो कोती पूरा पानी, मोर गांव हे सुख्खा । सबके मरकी भरे भरे हे, मोरे मरकी दुच्छा।। खेत खार के गोठ छोड़ दे, मरत हवन पीये बर । पानी पानी बर तरसत हन, घिर्रत हन जीये बर ।। नरवा तरिया सुख्खा हावे, सब्बो कुॅआ पटागे । हेण्ड़ पम्प मोटर सुते हवय, जम्मो बोर अटागे ।। घर के बाहिर जे ना जाने, भरत हवय ओ पानी । पानी टैंकर जोहत रहिथे, मोरे घर के रानी ।। धुर्रा गली उड़ावत हावे, सावन के ये महिना । घाम जेठ जइसे लागे हे, मुड़ धर के सहिना ।। काबर गुस्साये हे बादर, लइका कस ललचाथे । कभू टिपिर टापर नई करय, बस आथे अउ जाथे ।। सोचव सोचव जुरमिल सोचव, काबर अइसन होथे । काबर सावन भादो महिना, घाम उमस ला बोथे ।। बेजाकब्जा चारो कोती, रूख राई ला काटे । परिया चरिया घेरे हावस, कुॅआ बावली पाटे ।। भरे हवय लालच के हण्ड़ा, पानी मांगे काबर । अपन अपन अब हण्ड़ा फोरव,  लेके हाथे साबर ।।

हरेली

सुख के बीजा बिरवा होके, संसो फिकर ल मेटय । धनहा डोली हरियर हरियर, मनखे मन जब देखय ।। धरती दाई रूप सजावय, जब आये चउमासा । हरियर हरियर चारो कोती, बगरावत हे आसा ।। सावन अम्मावस हा लावय, अपने संग हरेली । हॅसी खुशी ला बांटत हावय, घर घर मा बरपेली । कुदरी रपली हॅसिया नागर, खेती के हथियारे । आज देव धामी कस होये, हमरे भाग सवारे ।। नोनी बाबू गेड़ी मच-मच, कूद-कूद के नाचय ।। बबा खोर मा बइठे बइठे, देख देख के हाॅसय ।।

बरस बरस ओ बरखा रानी

धान पान के सुघ्घर बिरवा, लइका जस हरषाावय । जब सावन के बरखा दाई, गोरस अपन पियावय । ठुमुक ठुमुक लइका कस रेंगय, धान पान के बिरवा । लहर लहर हवा संग खेलय, जइसे लइका हिरवा ।। खेत खार हे हरियर हरियर, हरियर हरियर परिया । झरर झरर जब बरसे पानी, भरे लबालब तरिया ।। नदिया नरवा छमछम नाचय, गीत मेचका गावय । राग झिुंगुरा छेड़े हावय, रूखवा ताल मिलावय ।। भरे भरे हे बारी बखरी, नार बियारे छाये । तुमा कोहड़ा छानही चढ़य, भाजी पाला लाये ।। जानय नही महल वाले हा, कइसे गिरते पानी । गरीबहा मन के जिनगी के, कइसन राम कहानी ।। घात डहे हवय बेंदरा हा, परवा खपरा फोरे । कूद कूद के नाचत रहिथे, कभू न रेंगे कोरे ।। झरे ओरवाती झिमिर झिमिर, घर कुरिया बड़ चूहे । हवय गाय कोठा मा पानी, तभो पहटिया दूहे ।। परछी अॅंगना एके लागे, ओधे भले झिपारी । घर कुरिया हे तरई आंजन, सिढ़ ले परे किनारी ।। मन के पीरा मन मा राखे, गावय गीत ददरिया । बरस बरस ओ बरखा रानी, बरसव बादर करिया ।। दाई परसे मेघा बरसे, तभे पेट हा भरथे । कभू कहूं ओ गुस्सा होवय, सबके जियरा जरथे ।।

मनखे ओही बन जाथे

कुकुभ छंद जेन पेड़ के जर हे सुध्घर, ओही पेड़ ह लहराथे। जर मा पानी डारे ले तो, डारा पाना हरियाथे ।। नेह पोठ होथे जे घर के, ओही घर बहुत खटाथे । उथही होय म नदिया तरिया, मांघे फागुन म अटाथे ।। ढेला पथरा ला ठोके मा, राईं-झाईं हो जाथे । कच्चा माटी के लोंदा ले, करसी मरकी बन जाथे । जेन पेड़ ठांढ़ खड़े रहिथे, झोखा पाये गिर जाथे । लहर लहर हवा संग करके, नान्हे झांड़ी इतराथे ।। करू कस्सा कस बोली बतरस, जहर महूरा कस होथे । मीठ गोठ के बोली भाखा, सिरतुन अमरित रस बोथे। जिहां चार ठन भड़वा बरतन, धोये मांजे मा चिल्लाथे । संगे जुरमिल एक होय के, रंधहनी कुरिया मा जाथे ।। जेन खेत के मेढ़ साफ हे, ओही हा खेत कहाथे । मनखे ला जे मनखे मानय, मनखे ओही बन जाथे ।।

कब तक हम सब झेलत रहिबो

कब तक हम सब झेलत रहिबो, बिखहर सांप गला लपेट । कभू जैष अलकायदा कभू, कभू नवा इस्लामिक स्टेट ।। मार काट करना हे जेखर, धरम करम तो केवल एक । गोला बारूद बंदूक धरे, सबके रसता राखे छेक ।। मनखे मनखे जेती देखय, गोला बारूद देथे फोड़ । अपन जुनुन मा बइहा होके, उधम मचावत हें घनघोर ।। चिख पुकार अउ रोना धोना, मचे हवय गा हाहाकार । बिना मौत कतको मरत हंवय, देखव इन्खर अत्याचार ।। नाम धरम के बदनाम करत, खेले केवल खूनी खेल । मनखे होके राक्षस होगे, मनखेपन ला घुरवा मेल ।।

पढ़ई के नेह

होथे गा पढ़ई जिहां, काबर चूरे भात । पढ़ई लिखई छोड़ के, करे खाय के बात । बस्ता मा थारी हवय, लइका जाये स्कूल । गुरूजी के का काम हे, रंधवाय म मसगूल ।। मन हा तो काहीं रहय, बने रहय गा देह । बने रहय बस हाजरी, येही पढ़ई के नेह ।। अइसन शिक्षा नीति हे, काला हे परवाह । राजनीति के फेर मा, करत हें वाह-वाह ।। प्रायवेट वो स्कूल मा, कतका लूट-घसोट । गुरूजी हे पातर दुबर, कोन धरे हे नोट ।। करथें केवल चोचला, आन देश के देख । अपन देश के का हवय, पढ़व आन के लेख । हवय कमई जेखरे, पढ़ई म देत फूक । छोड़-छाड़ संस्कार ला, देखय केवल ‘लूक‘ । -रमेश चैहान

राग द्वेष ला छोड़ दे

राग द्वेष ला छोड़ दे, जेन नरक के राह । कोनो ला खुश देख के, मन मा मत भर आह ।। त्याग प्रेम के हे परख, करव प्रेम मा त्याग । स्वार्थ मोह के रंग ले, रंगव मत अनुराग ।। जनम जनम के पुण्य ले, पाये मनखे देह । करले ये जीवन सफल, मनखे ले कर नेह ।। अमर होय ना देह हा, अमर हवे बस जीव । करे करम जब देह हा, होय तभे संजीव ।। रोक छेक मन हा करय, पूरा करत मुराद । मजा मजा बस खोज के, करय बखत बरबाद ।।

नोनी बाबू एक हे

चंडिका छंद 13 मात्रा पदांत 212 नोनी बाबू एक हे । नारा हा बड़ नेक हे करके जग के काम ला । नोनी करथे नाम ला काम होय छोटे बड़े । हर काम म नोनी अड़े घर अउ बाहिर के बुता । नोनी हा देथे़ कुता येमा का परहेज हे । नोनी खुदे दहेज हे नोनी ला बड़ मान दौ । आघू ओला आन दौ नोनी नोनी के षोर मा । नवा चलन के जाोर मा बाबू मन पछुवाय हे । नोनी मन अघुवाय हे बाबू होगे छोट रे । जइसे सिक्का खोट रे नोनी बहुते हे पढ़े । बाबू बहुते हे कढ़े ताना बाना देश के । हर समाज परिवेश के तार तार झन होय गा । सोचव मन धोय गा

कहमुकरिया

1. मोरे कान जेन हा धरथे। आॅंखी उघार उज्जर करथे ।। दुनिया देखा करे करिश्मा । का सखि ? जोही । नहि रे चश्मा । 2. बइला भइसा जेखर संगी । खेत जोत जे करे मतंगी । काम करे ले थके न जांगर । का सखी ? किसान नही रे, नांगर ।

बरसात

चढ़ बादर के पीठ मा, बरसत हवय असाढ़ । धरती के सिंगार हा, अब तो गे हे बाढ़ ।। रद-रद-रद बरसत हवय, घर कुरिया सम्हार । बांध झिपारी टांग दे, मारत हवय झिपार ।। चिखला हे तोरे गोड़ मा, धोके आना गोड़ । चिला फरा घर मा बने, खाव पालथी मोड़ ।। सिटिर सिटिर सावन करय, झिमिर झिमिर बरसात । हरियर लुगरा ला पहिर, धरती गे हे मात ।।

मान सियानी गोठ

झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ । नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।। चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात । चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।। मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार । झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।। मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत । सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।। बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान । सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।। कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ । चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।

भौतिकवाद के फेर मनखे मन करय ढेर

भौतिकवाद के फेर । मनखे मन करय ढेर सुख सुविधा हे अपार । मनखे मन लाचार मालिक बने विज्ञान । मनखे लगे नादान सबो काम बर मशीन । मनखे मन लगय हीन हमर गौटिया किसान । ओ बैरी ये मितान जांगर के बुता छोड़ । बइठे पालथी मोड़ बइठे बइठे ग दिन रात । हम लमाय हवन लात अइसन हे चमत्कार । देखत मरगेन यार पढ़े लिखे हवे झार । नोनी बाबू हमार जोहत हे बुता काम । कइसे के मिलय दाम लूटे बांटा हमार । ये मशीन मन ह झार मशीन हा करय काम । मनखे मन भरय दाम सुख सुविधा बरबादी । जेखर हवन हम आदि करना हे तालमेल । छोड़ सुविधा के खेल बड़े काम बर मशीन । छोट-मोट हम करीन मशीन ल करबो दास । नई रहन हम उदास

काठी के नेवता

काठी के नेवता कोने जानय जिंनगी, जाही कतका दूर तक । बेरा उत्ते बुड़ जही, के ये जाही नूर तक ।। टुकना तोपत ले जिये, कोनो कोनो ठोकरी । मोला आये ना समझ, कइसे मरगे छोकरी ।। अभी अभी तो जेन हा, करत रहिस हे बात गा । हाथ करेजा मा धरे, सुते लमाये लात गा ।। रेंगत रेंगत छूट गे, डहर म ओखर प्राण गा । सजे धजे मटकत रहिस, मारत ओहर शान गा ।। देख देख ये बात ला, मैं हा सोचॅव बात गा । मोर मौत पक्का हवय, जिनगी के सौगात गा । मोला जब मरने हवय, मरहूॅ मैं हा शान ले । जइसे मैं जीयत हॅवव, तुहर मया के मान ले ।। भेजत हवॅव मैं हा अपन, अब काठी के नेवता । दिन बादर ला जान के, आहू बनके देवता ।। अपने काठी के खबर मैं हा आज पठोत हंव। जरहूं सब ला देख के , सपना अपन सजोत हंव ।।

छोड़ नशा पानी के चक्कर

छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । माखुर बिड़ी दारू गांजा के, नुकसानी अड़बड़ हे ।। रिकिम-रिकिम के रोगे-राई, नशा देह मा बोथे । मानय नही जेन बेरा मा, पाछू मुड़ धर रोथे ।। उठ छैमसी निंद ले जल्दी, अपने आंखी खोलव । सोच समझ के पानी धरके, अपने मुॅह ला धोलव ।। नही त टूट जही रे संगी, जतका तोर अकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । धन जाही अउ धरम नशाही, देह खाख हो जाही । मन बउराही बइहा बानी, कोने तोला भाही । संगी साथी छोड़ भगाही, तोर कुकुर गति करके । जादा होही घर पहुॅंचाही, मुरदा जइसे धरके ।। तोर हाथ ले छूट जही रे, जतका तोर पकड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे । छेरी पठरू जइसे तैं हर, चाबत रहिथस गुटका। गांजा के भरे चिलम धर के, मारत रहिथस हुक्का । फुकुर-फुकुर तैं बिड़ी सिजर के, लेवत रहिथस कस ला । देशी महुॅवा दारू विदेशी, चुहकत रहिथस रस ला ।। कभू नई तो सोचे तैं हर,  ये लत हा गड़बड़ हे । छोड़ नशा पानी के चक्कर, नशा नाश के जड़ हे ।

रीत-नीत के दोहावली

जीयत भर खाये हवन, अपन देश के नून । छूटे बर कर्जा अपन, दांव लगाबो खून ।। जीवन चक्का जाम हे, डार हॅसी के तेल । सुख-दुख हे दिन रात कस, हॅसी-खुशी ले झेल ।। चल ना गोई खाय बर, चुर गे हे ना भात । रांधे हंव मैं मुनगा बरी, जेला तैं हा खात ।। महर महर ममहात हे, चुरे राहेर दार । खाव पेट भर भात जी, घीव दार मा डार ।। परोसीन हा पूछथे, रांधे हस का साग । हमर गांव के ये चलन, रखे मया ला पाग ।। दाई ढाकय मुड़ अपन, देखत अपने जेठ । धरे हवय संस्कार ला, हे देहाती ठेठ ।। खेती-पाती बीजहा, लेवव संगी काढ़ । करिया बादर छाय हे, आगे हवय असाढ़ ।। बइठे पानी तीर मा, टेर करय भिंदोल । अगन-मगन बरसात मा, बोलय अंतस खोल ।। बइला नांगर फांद के, जोतय किसान खेत । टुकना मा धर बीजहा,  बावत करय सचेत ।। मुंधरहा ले जाग के, जावय खेत किसान । हॅसी-खुशी बावत करत, छिछत हवय गा धान ।। झम झम बिजली हा करय, करिया बादर घूप । कारी चुन्दी बगराय हे, धरे परी के रूप ।। आज काल के छोकरा, एती तेती ताक । अपन गांव परिवार के, काट खाय हे नाक ।। मोरे बेटा कोढ़िया, घूमत मारय शान । काम-बुता के गोठ ला, एको धरय न कान ।। जानय न

करिया बादर (घनाक्षरी छंद)

करिया करिया घटा, उमड़त घुमड़त बिलवा बनवारी के, रूप देखावत हे । सरर-सरर हवा, चारो कोती झूम झूम, मन मोहना के हॅसी, ला बगरावत  हे । चम चम चमकत, घेरी बेरी बिजली हा, हाॅसत ठाड़े कृश्णा के, मुॅह देखावत हे । घड़र-घड़र कर, कारी कारी बदरी हा, मोहना के मुख परे, बंषी सुनावत हे ।

सुमुखी सवैया

मया बिन ये जिनगी मछरी जइसे तड़पे दिन रात गियां । मया बिन ये तन हा लगथे जइसे ठुड़गा रूख ठाड़ गियां।। मया बरखा बन के बरसे तब ये मन नाचय मोर गियां । मया अब सावन के बरखा अउ राज बसंत बयार गियां

का करबे आखर ला जान के

का करबे आखर ला जान के का करबे दुनिया पहिचान के । घर के पोथी धुर्रा खात हे, पढ़थस तैं अंग्रेजीस्तान के । मिलथे शिक्षा ले संस्कार हा, देखव हे का हिन्दूस्तान के । सपना देखे मिल जय नौकरी चिंता छोड़े निज पहिचान के । पइसा के डारा मा तैं चढ़े ले ना संदेशा खलिहान के जाती-पाती हा आरक्षण बर शादी बर देखे ना छान के । मुॅह मा आने अंतस आन हे कोने जानय करतब ज्ञान के ।

बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ

गजल बहर-212, 212, 212 बेटी ला शिक्षा संस्कार दौ । जिनगी जीये के अधिकार दौ ।। बेटी होथे बोझा जे कहे, मन के ये सोचे ला टार दौ । दुनिया होथे जेखर गर्भ ले, अइसन नोनी ला उपहार दौ । मन भर के उड़ लय आकाश मा, ओखर डेना पांखी झार दौ । बेटी के बैरी कोने हवे, पहिचानय अइसन अंगार दौ । बैरी मानय मत ससुरार ला अतका जादा ओला प्यार दौ । टोरय मत फइका मरजाद के, अइसन बेटी ला आधार दौ । ताना बाना हर परिवार के, बाचय अइसन के संस्कार दौ ।

.ये नोनी के दाई सुन तो

.ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, बात कहंत हंव तोला । जब ले आये तैं जिनगी मा, पावन होगे चोला ।। तोर मया ले मन बउराये, जग के छोड़ झमेला । अंग अंग मा हवस समाये, जस छाये नर बेला ।। ये बाबू के ददा बता ना, गोठ मया मा बोरे । सुख दुख के मोर संगवारी, ये जिनगी हे तोरे ।। तन मन हा अब मोरे होगे, तोर मया के दासी । दुख पीरा सब संगे सहिबो, मन के छोड़ उदासी ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना, ये नोनी के दाई सुन तो, दिल के धड़कन बोले । काली जइसे आज घला तैं, मन मंदिर मा डोले । जस जस दिनन पहावत जावय, मया घला हे बाढ़े । तन के मोह छोड़ मन बैरी, मया देह धर ठाढ़े ।। ये बाबू के ददा बता ना, काबर जले जमाना । मोर देह के तैं परछाई, नो हय ये हा हाना ।। तैं मोरे हर सॉस समाये, अंतस करे बसेरा । तोर मया के चढ के डोला, पहुॅचे हंव ये डेरा ।। ये नोनी के दाई सुन तो, ये नोनी के दाई सुन तो, ये बाबू के ददा बता ना, ये बाबू के ददा बता ना,

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया)

खेलत कूदत नाचत गावत (मत्तगयंद सवैया) खेलत कूदत नाचत गावत हाथ धरे लइका जब आये । जा तरिया नरवा परिया अउ खार गलीन म खेल भुलाये । खेलत खेलत वो लइका मन गोकुल के मन मोहन लागे । गांव जिहां लइका सब खेलय गोकुल धाम कहावन लागे ।

रखबे बात ल काढ़

ले मनखेपन सीख । नोनी देवय भीख  कोनो मरय न भूख । होय न भले रसूख उघरा के तन ढाक । नंगरा ल झन झाक भूखाये  बर  भात । रोवइया बर बात हमरे देश सिखाय । नोनी सुघर निभाय देखत बबा अघाय । दूनो हाथ लमाय देवय बने अशीष । दिल के रहव रहीस नोनी करय सवाल । काबर अइसन हाल मांगे काबर भीख । सुनके लागय बीख बबा हा गुनमुनाय । चेथी ला खजुवाय का नोनी ल बतांव । कइसे के समझांव मोरो  तो  घरद्वार । रहिस एक परिवार बेटा बहू हमार । हवय बड़ होशियार पढ़े लिखे जस भेड़ । हे खजूर कस पेड़ ओ बन सकय न छांव । छोड़ रखे अब गांव न अपन तीर बलाय । न मन मोर बहलाय जांगर मोर सिराय । कइसे देह कमाय करथे बवाल पेट । तभे धरे हंव प्लेट नोनी तैं हर बाढ़ । रखबे बात ल काढ़ जाबे जब ससुरार । धरबे बात हमार

सुरूज के आभा

नकल के माहिर ह, नकल करय जब, झूठ लबारी ह घला, कहा जथे असली । सोन पानी के चलन, होथे अब्बड़ भरम, चिन्हावय न असल, लगथे ग नकली ।। हीरा ह लदकाये हे, रेती के ओ कुड़ुवा मा, येला जाने हवे वोही, जेन होथे जौहरी । करिया बादर तोपे, सच के सुरूज जब, सुरूज के आभा दिखे, बादर के पौतरी ।

दरत हवय छाती मा कोदो

देश के बाहरी दुश्मन ले बड़े घर के भीतर के बैरी मन हे

दिखय ना कोनो मेर

"अपन अभिव्यक्ति के सुघ्घर मंच"

बाबू के ददा हा दरूहा होगे ओ

"अपन अभिव्यक्ति के सुघ्घर मंच"

एक रहव न यार

दाई हमर आय । जेखर हमन जाय छत्तीसगढ़ मोर । देखव सब निटोर हे जंगल पहाड़ । कइसन कइसन झाड़ नदिया नहर धार । धनहा अउ कछार काजर असन कोल । काहेक अनमोल हीरा धर खदान । बइठे हन नदान माटी म धनवान। छत्तीसगढ़ जान लूटे बर ग आय । रूप अपन बनाय झोला अपन खांध । आये रहिन बांध आके ग परदेष  । ओमन करत एष मालिक असन होय । मही हमर बिलोय घी ला कहय मोर । बाकी बचत तोर बासी महिर खाय । हमन रहन भुलाय उन्खर गजब षोर । हमला रखय टोर मोर सुनव पुकार । एक रहव न यार रख अपन पहिचान । मान अपन परान जब रहब हम एक । लगबो सुघर नेक करबो अपन राज । बैरी मन ल मार

पेट के पूजा

पेट बर जीना । मौत रोजीना पेट भर खाना । जी भर कमाना पेट के चिंता । करथे मुनिंता कहां ले पाबे । कइसे कमाबे जब जनम पाये । दाई पियाये दूध म अघाये । पिये बउराये थोरकुन बाढ़े । अॅंगना म माढ़े मुॅह ला जुठारे ।  दाई सवारे खाई खजेना । हाथ भर लेना ददा जब देथे । गोदी म लेथे लइका कहाये । खेल म भुलाये कई घा खाये । घूमत पहाये कभू ना सोचे । पेट भर नोचे काखर भरोसा । पांचे परोसा आये जवानी । परे हैरानी ददा अउ दाई । मांगे कमाई काम ला खोजे । दिन रात रोजे पर के सपेटा । खाये चपेटा तभे तो जाने । सब ल पहिचाने काम ले कोने । बड़े हे जोने जब घर बसाये । स्वामी कहाये दिन रात फेरे । जांगर ल पेरे पेट के सेती । करे तैं खेती परिवार पोशे । करम ना कोसे बेरा पहागे । जांगर सिरागे डोकरा खासे । छोकरा हासे बहू अउ बेटा । लगय गरकेटा पेट हे खाली । टूरा मवाली मरे के पारी । लोटा न थारी पेट के पूजा । करे ना दूजा

कहमुकरिया

1. जेखर आघू  मा मैं जाके । देखंव अपने रूप लजा के । अपने तन ला करके अर्पण । का सखि ? जोही ।़ नहि रे दर्पण । 2. जेखर खुषबू तन मन छाये । जेला पा के मन हरियाये । मगन करय ओ, जेखर रूआब का सखि ? जोही ।़ नहि रे गुलाब । 3. तोर मांग सब पूरा करहू। कहय जेन हा बिपत ल हरहू । कर न सकय कुछु, बने चहेता का सखि ? जोही ।़ नहि रे नेता ।

टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के

नायक - गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । फूल बुटा बनवाय हंव, गोरी तोरे नाम के ।। नायिका- टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के । खोर गिंजरा सेखिया, नई हवस कुछु काम के ।। नायक- तैं डारे हस मोहनी, मुखड़ा ला देखाय के । होगे तैं दिल जोगनी, दिल म मया जगाय के । तोर मया ला पाय बर, घूट पियें बदनाम  के । गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । नायिका- रूप रंग ला तैं अपन, दरपन धर के देख ले । आधा चुन्दी ठेकला, गाल दिखे हे पेच ले । कोने तोला भाय हे, फूल कहे गुलफाम के । टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के । नायक- तोरे मुॅह ला देख के, चंदा लुकाय लाज मा । मुच मुच हॉसी तोर ओ, भगरे हे सब साज मा । तैं मोरे दिल मा बसे, जइसे राधा ष्याम के । गोदवाय हंव गोदना, गोरी तोरे नाम के । नायिका- काबर तैं घूमत हवस, पढ़ई लिखई छोड़ के । आथस काबर ये गली, अइसन नाता जोर के । धरे मया के भूत हे, तोला मोरे नाम के । टूरा बहिया भूतहा, नई हवस कुछु काम के ।

सोच

हवय भोर अउ सांझ मा, एक सुरूज के जात । बेरा ऊये मा दिन चढ़य, बेरा बुड़े म रात । सुघ्घर घिनहा सोच हा, बसे हवे मन तोर । घिनहा घिनहा सोच के, जाथस तैं हा मात ।।

मया के रंग

खरे मझनिया जेठ के, सावन अस तो भाय । ठुड़गा ठुड़गा रूख घला, पुरवाही बरसाय ।। तोर मया के रंग ले, जब रंगे मन मोर । फांदा के चारा घला, मोला गजब मिठाय ।

लगे देश मा रोग

जब तक जागय न मनखे, सबकुछ हे बेकार । सबो नियम कानून अउ, चुने तोर सरकार । मांगय भर अधिकार ला, करम ल अपन भुलाय । । लोक लाज ला छोड़ के, छोड़े हे संस्कार ।। धरे कटोरा हे खड़े, एक गोड़ मा लोग । फोकट मा सब बांटही, दुनिया के हर भोग । हमर देश सरकार हे, फोकट हा अधिकार । खास आम के सोच ले, लगे देश मा रोग ।।

परय पीठ मा लोर

मुॅह बांधे रहिके ददा, चीज रखे हे जोर । जोर जोर पइली पसर, कोठी राखे घोर ।। घोर घोर जब बेटवा, थुक मा लाडू बांध । मांगे बाटा बाप ले, परय पीठ मा लोर ।।

केत

बहरा भर्री बन जथे, परता रहे म खेत। खेत खार बर कोढि़या, बन जाथे गा केत ।। केत एक अउ दारू हे, जेन रखय गा पेर । पेर पेर हमला रखय, दारू कोढि़या नेत ।

बेचे रिश्ता रोज

घर घर मा दुकान हवे, बेचे रिश्ता रोज । रोज खरीदे कोन हा, कर लव एखर खोज ।। खोज कोन हा टोरथे, तोरे घर परिवार । लालच मा जे आय के, देथे पैरा बोज ।।

सही म ओही रोठ

लाठी जेखर हाथ मा, लहिथे ओखर गोठ । गोठ होय बदरा भले, पर मानय सब पोठ ।। पोठ गोठ लदकाय हे, बोल सके ना बोल । बोल पोठ जे बोलथे, सही म ओही रोठ ।।

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन

मइके अचरा अब छोड़ दुलौरिन, तैं मन भीतर राख मया । अब हे अपने दुनिया गढना, भर ले मन मा सुख आस नवा ।। मइके घर हा पहुना अब तो ससुरार नवा घर द्धार हवे । बिटिया भल मानव ओ ससुरार म जीवन के रस धार हवे ।।

घाम करे अतका (मदिरा सवैया)

घाम करे अतका अब तो धरती अॅंगरा कस लागय गा । हो ठुड़गा अब ठाढ़ खड़े रूखवा नॅंगरा कस लागय गा ।। बंजर  हे नदिया नरवा तरिया अउ बोर कुॅंआ नल हा।। हे तड़पे मछरी कस कूदत नाचत ये मनखे दल हा ।

कइसे भरही भेट

कइसे भरही भेट, हाथ मा हाथ धरे ले । काम बुता ला देख, मने मन तोर जरे ले । तर तर जब बोहाय, पसीना  देह म तोरे । चटनी मिरचा नून, सुहाही बासी बोरे । फुदक फुदक चिरई घला, दाना पानी खोजथे । जंगल के बघवा कहां, बइठे बइठे बोजथे ।।

छत्तीसगढ़ दाई के

छत्तीसगढ़ दाई के, परत हंन पांव ला । जेखर लुगरा छोरे, बांटे हे सुख छांव ला । पथरा कोइला हीरा, जेन भीतर मा भरे । सोंढुर अरपा पैरी, छाती मा अपने धरे ।। जिहां के रूख राई मा, बनकठ्ठी गढ़े हवे । जिहां के पुरवाही मा, मया घात घुरे हवे ।। अनपढ़ भले लागे, इहां के मनखे सबे । फेर दुलार के पोथी, ओखर दिल मा दबे ।। छत्तीसगढि़या बेटा, भुईंया के किसान हे। जांगर टोर राखे जे, ओही हमर शान हे ।।

भोगथे मोटर गाड़ी

मनखे केे अपराध, भोगथे मोटर गाड़ी । हर थाना मा देख, खड़े हे बने कबाड़ी ।। मोरो मन अभिलाष, सड़क मा घूमव फर फर । मनखे हे आजाद, कैद मा हा हँव काबर ।। कतका साधन देश के, काबर गा बरबाद हे । अंग भंग होके खड़े, खोय अपन मरजाद हे ।।

चिंता होथे देख के

चिंता होथे देख के, टूटत घर परिवार । पढ़े लिखे पति पत्नि मन, झेल सहे ना भार ।। जानय ना कर्तव्य ला, चाही बस अधिकार । बात बात मा हो अलग, मेट डरे परिवार ।। मांग भरण पोषण अलग, नोनीमन बउराय । टूरा मन हा दारू पी, अपने देह नसाय ।। राम लखन के देश मा, रावण के भरमार । गली गली मा हे भरे, सूर्पनखा हूंकार ।। कहे कहां मंदोदरी, रावण, बन तैं राम । बात नई माने कहूं, जाहूं मयके धाम ।। सूर्पनखा ला देख के, राम कहे हे बात । बसे हवय मुड़ गोड़ ले, सीता के जज्बात ।। रोठ रोठ किताब पढ़े, राम कथा ला छोड़ । अपन सुवारथ मा जिये, अपने नाता तोड़ ।।

भोमरा मा जर मरय

घाट सुन्ना बाट सुन्ना, खार सुन्ना गांव मा । झांझ झोला झेल झर झर, छांव मिलय न छांव मा ।। गाय गरूवा होय मछरी, रोय तड़पत पार मा । आदमी बेहाल होगे, घाम के ये मार मा ।। बूॅंद भर पानी नई हे, बोर नल सुख्खा परे । ओ कुॅआ अउ बावली हा, का पता कबके मरे । छोड़ मनखे गोठ तैं हर,जीव जोनी ले तरय । पेड़ रूख के जर घला हा, भोमरा मा जर मरय ।

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