झेल घाम बरसात ला, चमड़ी होगे पोठ । नाती ले कहिथे बबा, मान सियानी गोठ ।। चमक दमक ला देख के, बाबू झन तैं मात । चमक दमक धोखा हवय, मानव मोरे बात ।। मान अपन संस्कार ला, मान अपन परिवार । झूठ लबारी छोड़ के, अपने अंतस झार ।। मनखे अउ भगवान के, हवय एक ठन रीत । सबला तैं हर मोह ले, देके अपन पिरीत ।। बाबू मोरे बात मा, देबे तैं हर ध्यान । सोच समझ के हे कहत, तोरे अपन सियान ।। कहि दे छाती तान के, हम तोरे ले पोठ । चाहे कतको होय रे, कठिनाई हा रोठ ।।
पुस्तक समीक्षा:शोधार्थियों के लिए बहुपयोगी प्रबंध काव्य “राजिम सार”-अजय
‘अमृतांशु’
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मनीराम साहू मितान द्वारा सृजित “राजिम सार” छत्तीसगढ़ी छन्द प्रबंध काव्य
पढ़ने को मिला। छत्तीसगढ़ी में समय-समय पर प्रबंध काव्य लिखे जाते रहे है।
पंडित सुंदर...
2 हफ़्ते पहले