कर मान बने धरती के  (खरारी छंद)   कर मान बने, धरती के, देश प्रेम ला, निज धर्म बनाये ।  रख मान बने, धरती के, जइसे खुद ला, सम्मान सुहाये ।।  उपहास करे, काबर तैं, अपन देश के, पहिचान भुलाये ।  जब मान मरे, मनखे के, जिंदा रहिके, वो लाश कहाये ।।   -रमेशकुमार सिंह चौहान     
माँ, मिट्टी और मेहनत : रामेश्वर शर्मा की रचनाएँ
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ग़ज़ल जो जनहित में सृजन हो बस वही पुरनूर होता हैसृजक का लेख हो या गीत वह 
मशहूर होता है हक़ीक़त में अगर तुम प्यार करते हो सुनों यारोंजो दिल में प्यार 
बस जाए न फ...
1 दिन पहले
