-दोहा- सबले पहिले होय ना, गणपति पूजा तोर । परथ हवं मैं पांव गा, विनती सुन ले मोर ।। जय गणपति गणराज जय, जय गौरी के लाल । बाधा मेटनहार तैं, हे प्रभु दीनदयाल ।। चौपाई हे गौरा-गौरी के लाला । हे प्रभू तैं दीन दयाला सबले पहिली तोला सुमरँव । तोरे गुण ला गा के झुमरँव तही बुद्धि के देवइया प्रभु । तही विघन के मेटइया प्रभु तोरे महिमा दुनिया गावय । तोरे जस ला वेद सुनावय देह रूप गुणगान बखानय । तोर पॉंव मा मुड़ी नवावय चार हाथ तो तोर सुहावय । हाथी जइसे मुड़ हा भावय मुड़े सूंड़ मा लड्डू खाथस । लइका मन ला खूबे भाथस सूपा जइसे कान हलावस । सबला तैं हा अपन बनावस चाकर माथा चंदन सोहय । एक दांत हा मन ला मोहय मुड़ी मुकुट के साज सजे हे । हीरा-मोती घात मजे हे भारी-भरकम पेट जनाथे । हाथ जोड़ सब देव मनाथे तोर जनम के कथा अचंभा ।अपन देह ले गढ़ जगदम्बा सुघर रूप अउ देके चोला । अपन शक्ति सब देवय तोला कहय दुवारी पहरा देबे । कोनो आवय डंडा लेबे गौरी तोरे हे महतारी । करत रहे जेखर रखवारी देवन आवय तोल...
मैं सिहावा हूं- श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि और उनका सांस्कृतिक विरासत -श्रीमती
संध्या सुभाष मानिकपुरी
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मैं सिहावा हूं — महानदी का पवित्र उद्गम स्थल, सप्तश्रृंग पर्वतों की छाया
में बसा वह अद्भुत अंचल, जहां ऋषियों की गूंज अब भी हवा में बहती है। मेरी
पहचान…
2 दिन पहले